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काण्ड-८ सूक्त- १४ ३9

[ १४-विराद्‌. सूक्त (१०-ङ) |

{ ऋषि" अधर्वाचार्य । देवता- विराट्‌ । छन्द- १, १३ चतुष्यदा साम्नी जगती, २, ३ साम्नी उष्णिक्‌, ४, १६

आर्ची अनुष्टुप्‌, ५ चतुष्पदा प्राजापत्या जगती, ६ साप्नौ त्रिष्टपु ७, ११ विराट्‌ गायत्री, ८ आच त्रिष्टुप्‌, ९

चतुष्पदा उष्णिक्‌, १०. १४ साम्नी वृहत, १२ त्रिपदा ब्राह्मी भुरिक्‌ गायत्री, १५ साप्नो अनुष्टप ।]

२३०४. सोदक्रामत्‌ सा देवानागच्छत्‌ तां देवा उपाह्वयन्तो्जं एहीति ॥१ ॥

वह शक्ति पुनः देवताओं के समीप पहुँची । हे ऊर्जें आप पधारें, ऐसा कहते हुए देवों ने उसे समीप बुलाया ॥

२३०५. तस्या इन्द्रो वत्स आसीच्चमसः पात्रम्‌॥२॥

तब इन्द्रदेव उनके वेत्सरूप और चमस-पात्ररूप बने ॥२ ॥

२३०६. तां देवः सविताधोक्‌ तामूर्जामेवाधोक्‌ ॥।३॥

सर्वप्रेरक सवितादेव उनके दोहनकर्ना बने ओर उससे बल की प्रप्ति हुई ॥३ ॥

२३०७. तामूर्जां देवः उप जीवन्त्युपजोवनीयो भवति य एवं वेद्‌ ॥४ ॥

उसो बल से देवगण अपना जौदगया.प करते है, जो इस के ज्ञाता है वे आजोविका निर्वाह वाले बनते हैं ॥४॥

२३०८. सोदक्रामत्‌ सा गन्धर्वाप्सरस आगच्छत्‌ तां गन्धर्वाप्सरस

उपाह्वयन्त पुण्यगन्ध एहीति ॥५ ॥

उस विराट्‌ शक्ति द्वारा पुनः उत्थान किये जरे पर वह गन्धर्व तथा अप्सराओं के समीप पहुँची । गन्धर्व और

अप्सराओं > ऐसा कहते हुए उन्हें समीप आपन्त्रित किया कि "हे उत्तम सुगन्धवांली धपुण्यगन्ये) आप पधार" ॥५॥

२३०९. तस्थाश्नित्ररथ: सौर्यवर्चसो वत्स आसीत्‌ पुष्करपर्णं पात्रम्‌॥६ ॥

सूर्यवर्चस के पुत्र चित्ररथ उसके वत्सरूप हुए और पुष्कर पर्णं (कमल पत्र) पात्र रूप बने ॥८६ ॥

२३१०. तां वसुरुचिः सौर्यवर्चसो ऽधो तां पुण्यमेव गन्थमथोक्‌ ॥॥७ ॥

उसका सूर्यवर्चस के पुत्र वसुरुचि ने दोहन किया और उससे पवित्र सुगन्ध की प्राप्ति हुई ॥७ ॥

२३११. तं पुण्यं गन्धं गन्धर्वाप्सरस उप जीवन्ति पुण्यगन्थिरुपजीवनीयो

भवति य एवं वेद्‌ ॥८ ॥

उस पवित्र सुगन्ध से अप्सरा ओर गन्धर्वं जोवन- निर्वाह करते रै । जो इस रहस्य के ज्ञाता है वे पवित्र

सुगन्धिमय होकर दूसरे प्राणियों के आजीविका के निर्वाहक होते है ॥८ ॥

२३१२. सोदक्रामत्‌ सेतरजनानागच्छत्‌ तामितरजना उपाह्नयन्त तिरोध एहीति ॥९ ॥

विराट्‌ शक्ति पुनः उत्वान के साथ इतरजनों के समीप पहुँची । इतरजनों ने उन्हे समीप बुलाया कि "ठे तिरोधे !

[अन्तर्धान शक्ति) आप यहाँ पदार्पण करें" ॥९ ॥

२३१३. तस्याः कुबेरो वैश्रवणो वत्स आसीदापपात्रं पत्रम्‌ ॥९०॥

विश्रवा के पुत्र कुबेर वत्सरूप बने और पात्ररूण मे आमपात्र प्रयुक्त हुआ ॥१० ॥

२३१४. तां रजतनाभि: काबेरको5शोक्‌ तां तिरोधामेवाधोक्‌ ॥११ ॥

काबेरक के पुत्र रजतनाभि ने दोहन किया और उससे तिरोधा (अन्तर्थान) शक्ति की प्राप्ति की ॥११ ॥

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