आदिकी विधि, प्रतिमाके लक्षण आदि तथा
मन्दिरके लक्षण आदिका वर्णन है। साथ ही भोग
और मोक्ष देनेवाले मन्त्रोंका भी उल्लेख है। शैव-
आगम और उसके प्रयोजन, शाक्त-आगम,
सूर्यसम्बन्धी आगम, मण्डल, वास्तु और भाँति-
भाँतिके मन्त्रोंका वर्णन दै । प्रतिसर्गका भी परिचय
कराया गया है । ब्रह्माण्ड-मण्डल तथा भुवनकोषका
भी वर्णन है। द्रीप, वर्ष आदि और नदियोंका भी
उल्लेख है। गङ्गा तथा प्रयाग आदि तीर्थोकी
महिमाका वर्णन किया गया है। ज्योतिश्वक्र
(नक्षत्र-मण्डल), ज्यौतिष आदि विद्या तथा
युद्धजयार्णवका भी निरूपण है। मन्वन्तर आदिका
वर्णन तथा वर्ण और आश्रम आदिके धर्मोका
प्रतिपादन किया गया है। साथ ही. अशौच,
द्रव्यशुद्धि तथा प्रायश्वित्तका भी ज्ञान कराया गया
है। राजधर्म, दानधर्म, भाँति-भाँतिके व्रत, व्यवहार,
शान्ति तथा ऋग्वेद आदिके विधानका भी वर्णन
है। सूर्यवंश, सोमवंश, धनुर्वेद, बैद्यक,
गान्धर्वं वेद, अर्थशास्त्र, मीमांसा, न्यायविस्तार,
पुराण-संख्या, पुराण- माहात्म्य, छन्द्, व्याकरण,
अलंकार, निघण्टु, शिक्षा ओर कल्प आदिका भी
इसमें निरूपण किया गया है ॥ ५२-६१॥
नैमित्तिक, प्राकृतिक और आत्यन्तिक लयका
वर्णन है । वेदान्त, ब्रह्मज्ञान और अष्टाङ्गयोगका
निरूपण है । स्तोत्र, पुराण-महिमा और अष्टादश
विद्याओंका प्रतिपादन है। ऋग्वेद आदि अपरा
विद्या, परा विद्या तथा परम अक्षरतत््वका भी
निरूपण है। इतना ही नहीं, इसमें ब्रह्मके
सप्रपञ्च ( सविशेष) और निष्प्रपञ्च (निर्विशेष)
रूपका वर्णन किया गया है। यह पुराण
पंद्रह हजार श्लोर्कोका है । देवलोके इसका
विस्तार एक अरब श्लोकों है। देवता
सदा इस पुराणका पाठ करते हैं। सम्पूर्ण
लोकोंका हित करनेके लिये अग्निदेवने इसका
संक्षेपसे वर्णन किया है। शौनकादि मुनियो।
आप इस सम्पूर्ण पुराणको ब्रह्ममय ही समझें।
जो इसे सुनता या सुनाता, पढ़ता या पदाता,
लिखता या लिखवाता तथा इसका पूजन और
कीर्तन करता है, वह परम शुद्ध हो सम्पूर्ण
मनोर्थोको प्राप्त करके कुलसहित स्वर्गको जाता
है ॥ ६२-६६ ३ ॥
राजाको चाहिये कि संयमशील होकर पुराणके
वक्ताका पूजन करे। गौ, भूमि तथा सुवर्ण
आदिका दान दे, वस्त्र ओर आभूषण आदिसे तृत
करते हुए वक्ताका पूजन करके मनुष्य पुराण-
श्रवणका पूरा-पूरा फल पाता है । पुराण-श्रवणके
पश्चात् निश्चय ही ब्राह्य्णोको भोजन कराना
चाहिये । जो इस पुस्तकके लिये शरयन््र (पेटी),
सूत, पत्र (पन्ने), काठकी पट्टी, उसे बाँधनेकी
रस्सी तथा वेष्टन-वस्त्र आदि दान करता है,
बह स्वर्गलोकको जाता है। जो अग्निपुराणकी
पुस्तकका दान करता है, वह ब्रह्मलोकमें जाता
है। जिसके घरमें यह पुस्तक रहती है, उसके
यहाँ उत्पातका भय नहीं रहता। वह भोग और
मोक्षकों प्राप्त होता है। मुनियो! आपलोग इस
अग्निपुराणको ईश्वररूप मानकर सदा इसका
स्मरण रखें॥ ६७ --७१६॥
व्यासजी कहते है - तत्पश्चात् सूतजी मुनियोंसे
पूजित हो वहाँसे चले गये ओर शौनक आदि
महात्मा भगवान् श्रीहरिको प्राप्त हुए्॥७२॥
इस प्रकार आदि आग्नेय महापुराणमें “अलिपुराणमें वर्णित संक्षि विषय तथा. इस पुराणके
माहात्प्यका वर्णन” नामक तीन सौ तिरासीवाँ अध्याय पूरा हुआ#॥ २८२ ॥
॥
॥ अग्निपुराण सम्पूर्ण ॥