Home
← पिछला
अगला →

दिलानेवाला है॥ १--११॥

प्राणियोंकी सृष्टि दो प्रकारकी है-'दैवी'

और “आसुरी'। जो भगवान्‌ विष्णुकी भक्तिमें

लगा हुआ है, वह 'दैवी सृष्टि 'के अन्तर्गत है तथा

जो भगवानूसे विमुख है, वह * आसुरी सृष्टि 'का

मनुष्य है--असुर है। यह अग्निपुराण, जिसका

मैंने तुम्हें उपदेश किया है, परम पवित्र, आरोग्य

एवं धनका साधक, दुःस्वप्नका नाश करनेवाला,

मनुष्योंकों सुख और आनन्द देनेवाला तथा भव-

बन्धनसे मोक्ष दिलानेवाला है। जिनके घरोंमें

हस्तलिखित अग्निपुराणकी पोथी मौजूद होगी,

वहाँ उपद्रवोंका जोर नहीं चल सकता। जो मनुष्य

प्रतिदिन अग्निपुराण-श्रवण करते हैं, उन्हें तीर्थ-

सेवन, गोदान, यज्ञ तथा उपवास आदिकी क्या

आवश्यकता है? जो प्रतिदिन एक प्रस्थ तिल

और एक माशा सुवर्ण दान करता है तथा जो

अग्निपुराणका एक ही श्लोक सुनता है, उन

दोनोंका फल समान है। श्लोक सुनानेवाला पुरुष

तिल और सुवर्ण-दानका फल पा जाता है। इसके

एक अध्यायका पाठ गोदानसे बढ़कर है। इस

पुराणकों सुननेकी इच्छामात्र करनेसे दिन-रातका

किया हुआ पाप नष्ट हो जाता है। वृद्धपुष्कर-

तीर्थे सौ कपिला गौओंका दान करनेसे जो फल

मिलता है, वही अग्निपुराणका पाठ करनेसे मिल

जाता है। “प्रवृत्ति! और “निवृत्ति'रूप धर्म तथा

"परा" और “अपरा' नामवाली दोनों विद्याएँ इस

“अग्निपुराण' नामक शास्त्रकी समानता नहीं कर

सकतीं। वसिष्ठजी! प्रतिदिन अग्निपुराणका पाठ

अथवा श्रवण करनेवाला भक्त-मनुष्य सब पापोंसे

छुटकारा पा जाता है। जिस घरमें अग्निपुराणकी

पुस्तक रहेगी, वहाँ विध्न-बाधाओं, अनर्थो तथा

चोरों आदिका भय नहीं होगा। जहाँ अग्निपुराण

रहेगा, उस घरमें गर्भपातका भय न होगा,

बालकोंको ग्रह नहीं सतायेंगे तथा पिशाच आदिका

भय भी निवृत्त हो जायगा। इस पुराणका श्रवण

करनेवाला ब्राह्मण वेदवेत्ता होता है, क्षत्रिय

पृथ्वीका राजा होता है, वैश्य धन पाता है, शुद्र

नीरोग रहता है। जो भगवान्‌ विष्णुम मन लगाकर

सर्वत्र समानदृष्टि रखते हुए ब्रह्मस्वरूप अग्निपुराणका

प्रतिदिन पाठ या श्रवण करता है, उसके दिव्य,

आन्तरिक्ष ओर भौम आदि सारे उपद्रव नष्ट हो

जाते हैं। इस पुस्तकके पढ़ने-सुनने और पूजन

करनेवाले पुरुषके और भी जो कुछ पाप होते हैं,

उन सबको भगवान्‌ केशव नष्ट कर देते हैं। जो

मनुष्य हेमन्त-ऋतुमें गन्ध और पुष्प आदिसे पूजा

करके श्रीअग्निपुराणका श्रवण करता है, उसे

अग्निष्टोम यज्ञका फल मिलता है। शिशिर-ऋतुमें

इसके श्रवणसे पुण्डरीकका तथा वसन्त-ऋतुमे

अश्वमेध यज्ञका फल प्राप्त होता है। गर्मामें

वाजपेयका, वर्षामें राजसूयका तथा शरदू-ऋतुमें

इस पुराणका पाठ और श्रवण करनेसे एक हजार

गोदान करनेका फल प्राप्त होता है। वसिष्ठजी ! जो

भगवान्‌ विष्णुके सम्मुख बैठकर भक्तिपूर्वक

अग्निपुराणका पाठ करता है, वह मानो ज्ञानयज्ञके

द्वारा श्रीकेशवका पूजन करता है। जिसके घरमें

हस्तलिखित अग्निपुराणकी पुस्तक पूजित होती

है, उसे सदा ही विजय प्राप्त होती है तथा भोग

और मोक्ष-दोनों ही उसके हाथमे रहते हैं--यह

बात पूर्वकाले कालाग्निस्वरूप श्रीहरिने स्वयं ही

मुझसे बतायी थी । आग्नेय पुराण ब्रह्मविद्या एवं

अद्रैतज्ञान रूप है ॥ १२-३१॥

वसिष्ठजी कहते हैं--व्यास! यह अग्निपुराण

"परा-अपरा'-- दोनों विद्याओंका स्वरूप है । इसे

विष्णुने ब्रह्मासे तथा अग्िदेवने समस्त देवताओं

और मुनियोकि साथ बैठे हुए मुझसे जिस रूपमेँ

सुनाया, उसी रूपमें मैंने तुम्हारे सामने इसका

← पिछला
अगला →