Home
← पिछला
अगला →

आवाज होती है, उसे मर्मर कहते हैं। आभूषणोंकी

ध्वनिका नाम शिञ्जित है। वीणाके स्वरको निक्कण

और कराण कहते हैं तथा पक्षियोंक कलरवका

नाम वाशित है। एक समूहकी आवाजको कोलाहल

और कलकल कहते हैं। गीत और गान--ये

दोनों समान अर्थके बोधक हैँ! प्रतिश्रुत्‌ ओर

प्रतिध्वान - ये प्रतिष्वनिके वाचक हैं। इनमें

पहला स्त्रीलिङ्ग (और दूसरा नपुंसकलिङ्ग) है ।

वौणाके कण्ठसे निषाद आदि स्वर प्रकट होते

है ॥ ५७--६९ ॥

मधुर एवं अस्फुट ध्वनिको कल ' कहते हैं

और सूक्ष्म कलका नाम काकली है। गम्भीर

स्वरको " मन्द्र" तथा बहुत ऊँची आवाजको " तार”

कहते हैं। कल, मन्द्र॒ ओर तार--इन तीनों

शब्दोंका तीनों ही लिङ्गे प्रयोग होता है। गाने

ओर बजानेकी मिली हुई लयको एकताल कहते

हैं। वीणाके तीन नाम हैं-वीणा, वल्लकी और

विपञ्ची । सात तारोंसे बजनेवाली वीणाका (जिसे

हिंदीमें सतार या सितार कहते हैं) परिवादिनी

नाम है। (बाजोंके चार भेद हैं-तत, आनद्ध,

सुषिर और घन। इनमें) वीणा आदि बाजेको तत,

ढोल और मृदङ्ग आदिको आनद्ध, बाँसुरी आदिको

सुषिर और काँसकी झाँझ आदिको घन कहते हैं

इन चारों प्रकारके बाजोंका नाम वाद्य, वादित्र

ओर आतोद्य है। ढोलके दो नाम है- मृदङ्गं और

मुरज। उसके तीन भेद है -- अङ्क, आलिङ्गय

ओर ऊर्ध्व । सुयशका ढिंढोरा पीटनेके लिये जो

डंका होता है, उसे यशःपटह और ढक्का कहते है ।

भेरीके अर्थम आनक और दुन्दुभि शब्दोंका प्रयोग

होता है । आनक और पटह--ये दोनों पर्यायवाची

शब्द है । इरी (झाँश) और डिण्डिम (ढिंढोरा)

आदि बाजोंके भेद हैं। मर्दल और पणव-ये

दोनों समानार्थक हैं (इन्हें भी एक प्रकारका बाजा

ही समझना चाहिये)। जिससे गाने-बजानेकी

क्रिया और कालका विवेक हो, उस गतिका नाम

"ताल" है। गीत और वाद्य आदिका समान

अवस्थामें होना "लय" कहलाता है। ताण्डव,

नाट, लास्य और नर्तन-ये सब “नृत्य 'के

वाचक है । नृत्य, गान और वाद्य-इन तीनोंको

+तौर्यत्रिक' एवं “नाट्य” कहते हैँ । नाटके

राजाको भट्टारक और देव कहा जाता है तथा

उनके साथ जिसका अभिषेक हुआ हो, उस

महारानीको देवी कहते ह । शृङ्गार, वीर, करुण,

अद्भुत, हास्य, भयानक, बीभत्स तथा रौद्र-ये

आठ रस हैं। इनमें श्रृज्भार-रसके तीन नाम हैं--

शृङ्गार, शुचि ओर उज्वल। वीर-रसके दो नाम

है --उत्साहवर्धन और वीर। करुणका बोध

करानेवाले सात शब्द हैँ - कारुण्य, करुणा, घृणा,

कृषा, दया, अनुकम्पा तथा अनुक्रोश । हस, हास

ओर हास्य-ये हास्यरसके तथा बीभत्स और

विकृत शब्द बीभत्स -रसके वाचक है । ये दोनों

शब्द तीनों लिङ्गे प्रयु होते है । अद्भुतका

बोध करानेवाले चार शब्द हैं--विस्मय, अद्भुत,

आश्चर्य और चित्र । भैरव, दारुण, भीष्म, घोर,

भीम, भयानक, भयंकर और प्रतिभय--ये भयानक

अर्थका बोध करानेवाले हैँ । रौद्रका पर्याय है--

उग्र। ये अद्भूत आदि चौदह शब्द तीनों लिब्रॉमें

प्रयुक्त होते है। दर, त्रास, भीति, भी, साध्वस

ओर भय-ये भयके वाचक है । रति आदि

मानसिक विकारोको भाव कहते हैं। भावको

व्यक्त करनेवाले रोमाञ्च आदि कार्योका नाम

अनुभाव है। गर्व, अभिमान और अहंकार-ये

घमंडके नाम है । ' मेरे समान दूसरा कोई नहीं है '

ऐसी भावनाको मान और चित्तसमुत्नति कहते ह ।

अनादर, परिभव, परिभाव और तिरस्क्रिया-ये

अपमानके वाचक हैं। व्रीडा, लज्जा, तरपा और

← पिछला
अगला →