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हो, उस हलकी लालीका नाम 'अरुण' है। सफेदी | अर्थमें आते हैं। वाणीके आरम्भको "उपन्यास

लिये हुए लाली अर्थात्‌ गुलाबी रंगको “पाटल

कहते हैं। जिसमें काले और पीले--दोनों रंग

मिले हों वह 'श्याव” और 'कपिश' कहलाता है।

जहाँ कालेके साथ लाल रंगका मेल हो, उसे धूम्र

तथा धूमल कहते हैं। कडार, कपिल, पिङ्ग, पिशङ्ग,

कटु तथा पिङ्गल-ये भूरे रंगके वाचक हैं। चित्र,

किर्मीर, कल्माष, शबल, एत और कर्बुर--ये

चितकबरे रेगका बोध करनेवाले ह ॥ ४१--५६ ‡ ॥

व्याहार, उक्ति तथा लपित-ये वचनके

समानार्थक शब्द हैं । व्याकरणके नियमोंसे च्युत--

अशुद्ध शब्दको "अपभ्रंश" तथा * अपशब्द" कहते

है । सुबन्त पदोंका समुदाय ("चैत्रेण शयितव्यम्‌ '

इत्यादि), तिङन्त पदोंका समूह ("पश्य पश्य

गच्छति" इत्यादि), सुबन्त और तिङन्त- दोनों

पदोंका समुदाय (* चैत्रः पचति इत्यादि) अथवा

कारकसे अन्वित क्रियाका बोध करानेवाला पद-

समूह ('घटमानय') इत्यादि-ये सभी “वाक्य '

कहलाते हैं | पूर्वकालमे बीती हुई सच्ची घटनाओंका

वर्णन करनेवाले ग्रन्थको 'इतिहास' तथा पुरावृत्त"

कहते हैं। (सर्ग, प्रतिसर्ग, वंश, मन्वन्तर और

वंशानुचरित--इन) पाँच लक्षणोंसे युक्त व्यासादि

मुनियोकि ग्रन्थका नाम "पुराण' है। सच्ची

घटनाको लेकर लिखी हुई पुस्तक 'आख्यायिका'

कहलाती है। कल्पित प्रबन्धको 'कथा' कहते हैं।

संग्रहके वाचक दो शब्द हैं--समाहार तथा संग्रह।

अबूझ पहेलीको “प्रवल्लिका' और “प्रहेलिका'

कहते हैं। पूर्ण करनेके लिये दी हुई संक्षिप्त

पदावलीका नाम " समस्या" और “समासार्था' है।

वेदार्थक स्मरणपूर्वक लिखे हुए धर्मशास्त्रको

"स्मृति" और “धर्मसंहिता' कहते हैं। आख्या,

आह्वा और अभिधान-ये नामके वाचक हैं।

"वार्ता" और 'वृत्तान्त'--दोनों समानार्थक शब्द

हैं। हूति, आकारणा और आह्वान--ये पुकारनेके

362 अग्नि पुराण २६

और “वाड्मुख' कहते हैं। विवाद और व्यवहार

मुकदमेबाजीका नाम है। प्रतिवाक्य और उत्तर--

ये दोनों समानार्थक शब्द हैं। उपोद्धात और

उदाहार-ये भूमिकाके नाम हैं। झूठा कलङ्क

लगानेको मिथ्याभिशंसन और अभिशाप कहते

हैं। यश और कीर्ति-ये सुयशके नाम हैं। प्रश्न,

पृच्छा ओर अनुयोग--इनका पूछनेके अर्थमें प्रयोग

होता है। एक ही शब्दके दो-तीन बार उच्चारण

करनेको “आग्रेडित' कहते हैं। परायी निन्दाके

अर्थमें कुत्सा, निन्दा ओर गर्हण शब्दका प्रयोग

होता है। साधारण बातचीतको आभाषण और

आलाप कहते है । पागलोंकौ तरह कहे हुए

असम्बद्ध या निरर्थक वचनका नाम प्रलाप है।

बारंबार किये जानेवाले वार्तालापको अनुलाप

कहते है । शोकयुक्त उद्गारका नाम विलाप और

परिदेवनं है । परस्पर विरुद्ध बातचीतको विप्रलाप

ओर विरोधोक्ति कहते है । दो व्यक्तियोकि पारस्परिक

वार्तालापका नाम संलाप है। सुप्रलाप और

सुवचन -ये उत्तम वाणीके वाचक हैँ । सत्यको

छिपानेके लिये जिस वाणीका प्रयोग किया जाता

है, उसे अपलाप तथा निहव कहते है । अमङ्गलमयी

चाणीका नाम उशती है। हदयमें बैठनेवाली

युक्तियुक्तं बातको संगत और हदयंगम कहते है ।

अत्यन्त मधुर वाणीमें जो सान्त्वना दी जाती है,

उसे सान्त्व कहते हैँ । जिन बातोंका परस्पर कोई

सम्बन्ध न हो, वे अबद्ध ओर निरर्थक कहलाती

हैं। निष्ुर ओर परुष शब्द कठोर वाणीके तथा

अश्लील ओर ग्राम्य शब्द गंदी बातोकि बोधक

हैं। प्रिय लगनेवाली वाणीको सूनृत कहते है ।

सत्य, तथ्य, ऋत और सम्यक्‌-ये यथार्थं वचनका

बोध करानेवाले हैं। नाद, निस्वान, निस्वन,

आरव, आराव, संराव और विराव -ये अव्यक्त

शब्दके वाचक हैं। कपड़ों और पत्तोंसे जो

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