ये चार अमावास्यके नाम हैं। यदि सबेरे
चतुर्दशीका योग होनेसे अमावास्याके प्रातःकाल
चन्द्रमाका दर्शन हो जाय तो उस अमावास्याको
"सिनीवाली ' कहते हैं। किंतु चन्द्रोदयकालमें
अमावस्याका योग हो जानेसे यदि चन्द्रमाकी
कला बिलकुल न दिखायी दे तो वह अमा "कुहू '
कहलाती है॥ २२--४० ॥
संवर्त, प्रलय, कल्प, क्षय और कल्पान्त--
ये पाँच प्रलयके नाम हैं। कलुष, वृजिन, एनस्,
अघ, अंहस्, दुरित और दुष्कृत शब्द पापके
वाचक हैँ । धर्म शब्दका प्रयोग पुलिङ्ग ओर
नपुंसक दोनोंमें होता है । इसके पर्याय है-- पुण्य,
श्रेयस्, सुकृत ओौर वृष। (इनमें आरम्भके तीन
नपुंसक और वृष शब्द पिङ्ग है ।) मुत्, प्रीति,
प्रमद, हर्ष, प्रमोद, आमोद, सम्मद, आनन्दथु,
आनन्द, शर्म्म, शात और सुख-ये सुख एवं
हर्षके नाम है । स्वःश्रेयस, शिव, भद्र, कल्याण,
मङ्गल, शुभ, भावुक, भविक, भव्य, कुशल
और क्षेम-ये कल्याण-अर्थका बोध करानेवाले
हैं। ये सभी शब्द केवल स्त्रीलिङ्गमें नहीं प्रयुक्त
होते। दैव, दिष्ट, भागधेय, भाग्य, नियति और
विधि-ये भाग्यके नाम हैं। इनमें तियति-शब्द
स्त्रीलिङ्गं है (और विधि पिङ्ग तथा आरम्भके
चार शब्द नपुंसकलिङ्ग है) । क्षेलज्ञ, आत्मा और
पुरुष--ये आत्माके पर्याय हैं। प्रकृति या मायाके
दो नाम ह~ प्रधान और प्रकृति। इनमें प्रकृति
स्त्रीलिङ्गं है और प्रधान नपुंसकलिङ्ग। हेतु,
कारण और बीज--ये कारणके वाचक हैँ । इनमें
पहला पुल्लिद्भ ओर शेष दो शब्द नपुंसकलिङ्ग है ।
कार्यकी उत्पत्ति प्रधान हेतुके दो नाम हैं--
निदान और आदिकारण। चित्त, चेतस्, हृदय,
स्वान्त, हत्, मानस और मनस्-ये चित्तके
पर्याय हैं। बुद्धि, मनीषा, धिषणा, धी, प्रज्ञ,
ज्ञसि ओर चेतना-ये बुद्धिके वाचकं शब्द है।
धारणाशक्तिसे युक्त बुद्धिको ' मेधा" कहते हैं और
मानसिक व्यापारका नाम संकल्प है। संख्या,
विचारणा और चर्चा-ये विचारके, विचिकित्सा
और संशय संदेहके तथा अध्याहार, तर्क और
ऊह--ये तर्क-वितर्कके नाम हैं। निश्चित विचारको
निर्णय और निश्चय कहते हैं। “ईश्वर ओर परलोक
नहीं है'- एसे विचारको मिथ्यादृष्टि और नास्तिकता
कहते है । भ्रान्ति, मिथ्यामति और भ्रम-ये तीन
भ्रमात्मक ज्ञानके वाचक है । अड्रीकार, अभ्युपगम,
प्रतिश्रव और समाधि--ये स्वीकार अर्थका बोध
करानेवाले हैं। मोक्षविषयक बुद्धिको ज्ञान और
शिल्प एवं शास्त्रके बोधको विज्ञान कहते है ।
मुक्ति, कैवल्य, निर्वाण, श्रेयस्, निःश्रेयस, अमृत,
मोक्ष ओर अपवर्ग -ये मोक्षके वाचक शब्द हैं।
अज्ञान, अविद्या ओर अहम्मति- ये तीन अज्ञानके
पर्याय हैं। इनमें पहला नपुंसक और शेष दो शब्द
स्त्रीलिङ्ग हैं। एक-दूसरेकी रगड़से प्रकट हुई
मनोहारिणी गन्धके अर्थमें 'परिमल' शब्दका प्रयोग
होता है। वही गन्ध जब अत्यन्त मनोहर हो तो
उसे 'आमोद' कहते हैं। प्राणेन्द्रियको तृप्त करनेवाली
उत्तम गन्धका नाम "सुरभि" है। शुभ्र, शुक्ल,
शुचि, श्वेत, विशद, श्येत, पाण्डर, अवदात, सित,
गौर, वलक्ष, धवल और अर्जुन-ये श्वेत वर्णके
वाचक हैं। कुछ पीलापन लिये हुए सफेदीको
हरिण, पाण्डुर और पाण्डु कहते हैं। यह रंग भी
बहुत हलका हो तो उसे धूसर कहते हैं। नील,
असित, श्याम, काल, श्यामल और मेचक-ये
कृष्णवर्ण (काले रंग) के बोधक हैं। पीत, गौर
तथा हरिद्राभ--ये पीले रंगके और पालाश, हरित
तथा हरित्-ये हरे रंगके वाचक हैं। रोहित,
लोहित और रक्त--ये लाल रंगका बोध करानेवाले
हैं। रक्त कमलके समान जिसकी शोभा हो, उसे
'शोण' कहते हैं। जिसकी लालिमा जान न पड़ती