समिद्भ्याम् (तृ०, च० एवं पं०-द्वि०), समिधि | "दिव्" शब्दके रूप ये हैं-छोौः (प्र०-ए०),
(स०--ए०) । " सीमन्" शब्दके रूप इस प्रकार
हैं--सीमा (प्र०--ए०), सीम्ति-सीसनि (स०--
ए०)। तृ०, च० एवं पं० के द्विवचनमें 'दामनी'
शब्दका दामनीभ्याम्, 'ककुभ्' शब्दका ककुब्भ्याम्
रूप होता है। 'का'--'किम्' शब्द प्र०--ए०
इयम्- (इदम् शब्द प्र०--ए०), आभ्याम् (तृ०,
च० एवं पं०-द्वि०), “इदम्” शब्दके सप्तमीके
बहुवचनमें 'आसु' रूप होता है।, “ गिर्" शब्दके
रूप ये हैं--गी्भ्याम् (तृ०, च० एवं पं०-्वि०)
गिरा (तृ०--ए०), गीर्षु (स०-ब०)। प्रथमाके
एकवचनमें 'सुभू:” और “सुपू:' रूप सिद्ध होते
हैं। 'पुर' शब्दका तृतीयाके एकवचनमें “पुरा'
और सप्तमीके एकवचनमें 'पुरि' रूप होता है।
चुभ्याम् (तृ०, च० एवं पं०--द्वि०), दिवि (स०--
ए०), ब्युषु (स०-ब०)। तादृश्या (त०-ए०),
तादृशी (प्र०--ए०)--ये “तादृशी ' शब्दके रूप हैं।
"दिश्" शब्दके रूप दिक्-दिग् दिशौ दिशः
इत्यादि हैं। यादृश्याम् (स०-ए०), यादृशी
(प्र०-ए०)- ये "यादृशी" शब्दके रूप है ।
सुवचोभ्याम् (तृ०, च० एवं पं०--द्वि) सुवचस्सु
(स०--ब०)-ये "सुवचस्' शब्दके रूप है ।
स्त्रीलिङ्गपे अदस्" शब्दके कतिपय रूप ये हैं-
असौ (प्र०-ए०), अम् (प्र° द्वि०--द्वि०), अमम्
(द्वि०-ए०), अपू: (प्र०, द्विए-ब०), अपूभिः
(तृ०--ब०), अमुया (तृ०--ए०), अमुयोः (ष०,
स०-द्वि०) ॥ ८--१३॥
इस प्रकार आदि आग्नेव महापुराणमें 'स्त्रीलिड्र शब्दोंके सिद्ध रूपोंका कथन” नामक
तीन सौ बावनवाँ अध्याय पूरा हुआ॥ ३५२ #
4
तीन सौ तिरपनवाँ अध्याय
नपुंसकलिङ्ग शब्दके सिद्ध रूप
भगवान् स्कन्द कहते है-- नपुंसकलिङ्गे * किम्!
शब्दके ये रूप होते है- (प्रथमा) किम्, के,
कानि। (द्वितीया) किम्, के, कानि। शेष रूप
पुदिङ्गवत् है । जलम् (प्र ए०), सर्वम् (प्र
ए०)। पूर्व, पर, अवर, दक्षिण, उत्तर, अपर,
अधर, स्व और अन्तर--इन सब शब्दोंके रूप
इसी प्रकार होते हैं। सोमपम् (प्र० द्वि° ए०),
सोमपानि (प्र० द्वि० ब०)--ये 'सोमप' शब्दके
रूप हैं। 'ग्रामणी' शब्दके नपुंसकलिङ्गे इस
प्रकार रूप होते हैं-ग्रामणि (प्र० द्वि०-ए०),
ग्रामणिनी (प्र० द्वि०-द्वि०), ग्रामणीनि (प्र०,
द्वि०-ब०) । इसी प्रकार 'वारि' शब्दके रूप होते
हैं--बारि (प्र० द्वि०-ए०), वारिणी (प्र, द्वि०-
द्वि०), वारीणि (प्र० द्वि०-ब०), वारीणाम् (ष०-
ब०), वारिणि (स० ए०) | शुचये-शुचिने ( च०-
ए०) और मृदुने-मृदवे (च०-ए०) ये क्रमसे
"शुचि" और ' मृदु ' शब्दके रूप हैं। त्रपु (प्र०,
द्वि०-ए०), त्रपुणी (प्र०, द्वि०-द्वि०), त्रपूणाम्
(घ०-ब० )--ये 'त्रपु" शब्दके कतिपय रूप हैं।
"खलपुनि' तथा 'खलप्वि'--ये दोनों नपुंसक
"खलपू" शब्दके सप्तमौ, एकवचनके रूप है ।
कर््रा--कर्तृणा (तृ०-ए०), कर्तुणे- कतरे (च०
ए०)-ये कर्तृ" शब्दके रूप हैं। अतिरि (प्र०
द्वि०-ए०), अतिरिणी (प्र, द्व०-द्वि०) -ये " अतिरि"
शब्दके रूप है । अभिनि (प्र०, द्वि०-ए०),
अभिनिनी (प्र०, द्वि° -द्वि०) -ये * अभिनि ' शब्दके
रूप है । सुवचांसि (प्र०, द्विए-ब०), यह 'सुवचस्'
शब्दका रूप है । सुवाक्षु (स०-ब ०) यह ' सुवाच्!