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* अध्याय ३५९ «

७ड५

कुण्डभर दूध देनेवाली गायको "कुण्डोध्नी" | वाचक है। इसके रूप इस प्रकार जानने

कहते है । 'सर्वम्‌'--यह “सर्व' शब्दका एकवचनान्त

रूप है, इसका अर्थं हैं सम्पूर्ण या सब। इसके

प्रथमा और द्वितीया विभक्तयो नपुंसकलिङ्ग -

सम्बन्धी रूप इस प्रकार होते हैँ सर्वम्‌ सर्वे

सर्वाणि । शेष पंलिङ्गवत्‌। 'सोमपम्‌/--सोम पान

करनेवाला कुल (ब्राह्मणकुल या देवकुल) ।

चाहिये-१,२-- मधु मधुनी मधूनि। ३--मथुना

मधुभ्याम्‌ सथुभिः। ४-मथुने मधुभ्याम्‌

मधुभ्यः। ५-मथुनः: मधुभ्याम्‌ मधुभ्यः।

६-मधुनः मधुनोः मधूनाम्‌। ७-मधुनि

मधुनोः मथुषु। सं० हे मधो, हे मधु हे मधुनी

है मधूनि!। "त्रपु" शब्द रागाका वाचक है।

इसके भी प्रथम दो विभक्तियोंमें सोमपम्‌ | इसके प्रथम दो विभक्तियोंके रूप इस प्रकार

सोमपे सोमपानि इत्यादि रूप होगे। शेष पुलिड्र

रापवत्‌। "दधि ' ओर " वारि" शब्द क्रमशः दही

ओर जलके वाचक हैं। ये नित्य नपुंसकलिङ्ग

हैं। अतः इनके सम्पूर्ण रूप यहाँ उद्धृत किये

जाते हैं। प्र०, द्वि० विभक्ति्ोमिं--दधि दधिनी

दधीनि। तृ०-दध्ना, दधिभ्याम्‌, दधिभिः।

च०--दध्ने दधिभ्याम्‌ दधिभ्यः। पं०-दष्तः

दधिभ्याम्‌ दधिध्यः। ष०--दध्नः, दध्नोः,

दध्नाम्‌। स०--दध्नि-दधनि, दध्नोः, दधिषु। ' वारि"

शब्दके सातां विभक्तियोके रूप इस

प्रकार जानने चाहिये-१,२-वारि वारिणी

व्रारीणि। ३--वारिणा वारिभ्याम्‌ वारिभिः

४--वारिणे वारिभ्याम्‌ वारिभ्यः। ५--वारिणः

वारिभ्याम्‌ बारिभ्यः। ६-खारिण: वारिणोः

वारीणाम्‌। ७-- वारिणि, वारिणोः, वारिषु । ' खलपु'

का अर्थं है- खलिहानको स्वच्छ करनेवाला

साधन, ` खुरपा' आदि। इसके रूप विशेष्यके

अनुसार स्त्रीलिङ्ग और पुल्लिज्ञमें भी होते हैं।

यहाँ नपुंसकलिङ्गमे इसके रूप उद्धत किये

जाते हैं। १,२-खलपु खलपुनी खलपूनि।

३--खलप्वा, खलपुना खलपूभ्याम्‌ खलपूभि:।

४--खलप्वे-खलपुने खलपुभ्याम्‌ खलपूभ्य:

इत्यादि। 'मधु' शब्द शहद और मदिराका

हैं--त्रपु, त्रपुणी, त्रपूणि। शेष मधुवत्‌। कर्त"

(करनेवाला), ' भर्तृ" (भरण-पोषण करनेवाला),

*अतिभर्तृ" (भर्ताको भी अतिक्रमण करनेवाला

कुल)--इन तीनों शब्दके प्रथमा ओर द्वितीया

विभक्तियोंमें रूप क्रमशः इस प्रकार हैं--

कर कतृणी कर्तृणि। भृ तृणी भर्तेणि। अतिभं

अतिभर्ृणी अतिभर्तृणि। तृतीया आदि विभक्तियोंमें

जो अजादि प्रत्यय हैं, उनमें दो-दो रूप होंगे।

यथा--कर्त्रां, कर्तुणा। भरत, भर्तृणा । अतिभव्रा,

अतिभर्तुणा इत्यादि । 'पयस्‌' शब्द जलका वाचक

है । इसके रूप इस प्रकार हैं--१,२--पय: पयसी

पयांसि। तृतीया आदिमे पयसा पयोभ्याम्‌ पयोभिः

इत्यादि । 'पुरस्‌' शब्द सकरन्त अव्यय है । इसका

अर्थं है- पहले या आगे। अव्यय शब्दोंका कोई

रूप नहीं चलता; क्योंकि “अव्यय 'का यह लक्षण

है-- ॥ २०॥

सदशं त्रिषु लिङ्गेषु सवासु च विभक्तिषु।

वचनेधु च सर्वेषु यत्न व्येति तदव्ययम्‌ ॥

प्राक्‌ (पूर्व), प्रत्यक्‌ (अंदर या पश्चिम),

तिर्यक्‌ (तिरछी दिशाकी ओर चलनेवाले

पशु-पक्षी आदि), उदक्‌ (उत्तर)--इन शब्दोंके

प्रथम दो विभक्तियोंमें रूप इस प्रकार जानने

चाहिये। प्राक्‌ प्राची प्राञ्चि। प्रत्यक्‌ प्रतीची

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