प्रकार राम, देव, इन्द्र, वरुण, भव आदि शब्दोंके | रूप होता है। “ चरम' आदि शब्दोंके लिये भी
रूप जानने चाहिये। 'देव' आदि शब्दोंके तृतीयाके | यही बात है। 'द्वितीय' तथा “तृतीय ' शब्द चतुर्थी,
एकवचनमें 'देवेन' तथा षष्ठीके बहुवचनमें 'देवानाम्'
इत्यादि रूप होते हैं। वहाँ 'न' के स्थानमें 'ण'
नहीं होता। रेफ और षकारके बाद जो "न! हो,
पञ्चमी तथा सप्तमीके एकवचनमें विकल्पसे
सर्वनामवत् रूप धारण करते हैं। यथा-द्वितीयस्मै
द्वितीयाय। तृतीयस्मै तृतीयाय--इत्यादि शेष रूप
उसीके स्थानमें 'ण' होता है। अकारान्त शब्दोंमें | वृक्षवत् होते हैं।
जो सर्वनाम हैं, उनके रूपें कुछ भिन्नता होती
अब आकारान्त शब्दका एक रूप उपस्थित
है। उस भिन्नताका परिचय देनेके लिये सर्वनामका | करते हैं--खड्गपा:--खड़्गं पातीति खड़गपाः
*प्रथम' या ` नायक" जो ' सर्व" शब्द है, उसके रूप
यहाँ दिये जाते हैं; उसी तरह अन्य सर्वनामेकि भी
रूप होंगे। यथा-१--सर्व: सर्वौ सर्वे। २-
सर्वम् सर्वा सर्वान् ३-- सर्वेण सर्वाभ्याम् सर्वैः ।
अर्थात् * खड्ग -रक्षक' । इसका रूप यों समझना
चादिये-१--खङ्गपाः, खड्गपौ, खड्गपाः। २--
खड्गपाभ्याम्, खड्गपाभिः। ४-- ॥
४--सर्वस्मै सर्वाभ्याम् सर्वेभ्यः। ५~- सर्वस्मात् | खड्गपाभ्याम्, खड्गपाभ्यः। ५--खड्गपः
सर्वाभ्याम् सर्वेभ्यः । ६-- सर्वस्य सर्वयोः सर्वेषाम् ।
७- सर्वस्मिन् सर्वयोः सर्वेषु । सम्बोधनमें-हे सर्वं
हे सर्वा हे सर्वे ।* यहाँ रेखाद्भित रूपोंपर दृष्टिपात
कीजिये। साधारण अकारान्त शब्दोंकी अपेक्षा
सर्वनाम शब्दोके रूपोंमें भिन्नताके पाँच ही स्थल
हैं। इसके बाद ' पूर्व" शब्द आता है । यह सर्वनाम
होनेपर भी अन्य सर्वनामोंसे कुछ विलक्षण रूप
रखता है । पूर्व, पर, अवर, दक्षिण, उत्तर, अपर,
अधर--ये व्यवस्था और असंज्ञामें सर्वनाम है ।
“स्व' तथा "अन्तर" शब्द भी अर्थ-विशेषमें ही
सर्वनाम हैं। अतः उससे भिन्न अर्थमें वे असर्वनामवत्
रूप धारण करते हैँ । प्रथमाके बहुवचने तथा
पञ्चमी - सपतमीके एकवचने पूर्वादि शब्दोके रूप
सर्वेनामवत् होते है, किंतु विकल्पसे। अतः
खद्गपाभ्याम्, खड्गपाभ्यः। ६--खड्गपः,
खड्गपोः, खड्गपाम्। ७-- खड्गपि, खड्गपोः,
खडङ्गपासु। सम्बो०-हे खड्गपाः, हे खड्गपौ,
हे खड्गपाः। इसी तरह विश्वपा (विश्वपालक),
गोपा (गोरक्षक), कीलालपा (जल पीनेवाला),
शङ्खुध्मा ( शङ्खं बजानेवाला) आदि शब्दोकि रूप
होगे । (अब हस्व इकातन्त 'बह्लि' शब्दका रूप
प्रस्तुत करते है-) ९-- बहिः, वद्वी, बह्यः।
२ --वह्निम्, वही, वह्वीन्। ३-- वद्धिना, वह्धिभ्याम्,
वह्धिभिः। ४-वहये, वद्धिभ्याम्, वह्धिभ्यः।
५-- वदः, वद्धिभ्याम्, वद्भ्यः । ६ -- वद्धः, वह्वयोः,
वह्वीनाम्। ७- बह्नौ, बह्वयः, बद्धिषु। सम्बो०--
हे बहवे, हे वही, हे बह्मयः। 'वहि'का अर्थ है
अग्नि। इसी तरह अग्रि, रवि, कवि, गिरि, पवि
पक्षान्तरमें उनके असर्वनामवत् रूप भी होते ही | इत्यादि शब्दोकिं रूप होंगे। इकारान्त शब्दोंमें * सखि"
हैं--जैसे पूवे पूर्वाः, परे पराः, इत्यादि । पूर्वस्मात् | ओर “पति' शब्दोंके रूप कुछ भिन्नता रखते हैं।
पुर्वात्। पूर्वस्मिन् पूर्वे इत्यादि । प्रथम, द्वितीय तथा | जैसे--१--सखा, सखायौ, सखाय:। २-- सखायम्,
तृतीय--ये शब्द सर्वनाम नहीं हैं, तथापि "प्रथम ' | सखायौ, सखीन्। तृत्तीयाके एकवचनमें - सख्या,
शब्दके प्रथमा बहुवचनमें - प्रथमे प्रथमाः - यह | चतुर्धीके एकवचने सख्ये, पञ्चमी और षष्ठीके
* यहाँ यह ध्यात्रमें रखना चाहिये कि यदि किसीका जाम ' सर्वं रख दिया जाय तो उस “सर्व” का रूप वृक्षकी तरह हौ होगा।
“सब' इस अर्ध प्रयुक्त सर्वं ' शब्दका ही रूप ऊपर बताये अनुसार होगा। यही बात अन्य सर्वनामोके विषयमें भो समझनी चाहिये। संज्ञा
एवं उपसर्जवीभूत 'सर्व' आदि शब्दोंकी सर्वनामोंघें गणना नहीं होती ।'अतिसर्व' आदि शब्दोंमें जो 'सर्व' शब्द है; वह उपसर्जन है।