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प्रकारका होता है। काव्यमें प्रातिलोम्य और | पर्यन्त ऊपर ले जाय। इस तरह तीन प्रकारका

आनुलोम्यसे विकल्पना होती है। ' प्रातिलोम्य

और “आनुलोम्ब' शब्द और अर्थके द्वारा भी

होता है । विविध वृत्तोंके वर्णविन्यासके द्वारा उन-

उन प्रसिद्ध वस्तुओंकि चित्रकर्मादिकी कल्पनाको

“अन्ध' कहते हैँ । बन्धके निम्नद्भित आठ भेद

माने जते हैं--गोमृत्रिका, अर्द्धश्रमक, सर्वतोभद्र,

कमल, चक्र, चक्रान्जक, दण्ड ओर मुरज । जिसमें

श्लोकके दोनों-दोनों अर्द्धभागों तथा प्रत्येक

पादमें एक-एक अक्षरके व्यवधानसे अक्षरसाम्य

प्रयुक्त हो, उसको “गोमृत्रिका-बन्ध' कहते हैं।

*गोमूत्रिका-बन्ध 'के दो भेद कहे जाते हैं--' पूर्वा

गोमूत्रिका' जिसको कुछ काव्यवेत्ता 'अश्वपदा'

भी कहते हैं, वह प्रति अर्द्धभागमें एक-एक

अक्षरके बाद अक्षरसाम्यसे युक्त होती है । ' अन्त्या

गोमृत्रिका' जिसको 'धेनुजालबन्ध' भी कहते हैं,

वह प्रत्येक पदमें एक-एक अक्षरके अन्तरसे

अक्षरसाम्यसमन्वित होती दै ॥ २२-३८ ॥

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गोमूत्रिका-बन्धके पूर्वोक्त दोनों भेदोंका

क्रमश: अर्द्धभागों और अर्द्धपादोंसे विन्यास करना

चाहिये॥ ३८ ६ ॥

यहाँ क्रमश: नीचे-नीचे विन्यस्त वर्णोका,

नीचे-नीचे स्थित वर्णोका जबतक चतुर्थ पाद पूर्ण

न हो जाय, तबतक नयन करे। चतुर्थ पाद पूर्ण

हो जानेपर प्रतिलोमक्रमसे अक्षरोंकों पादार्ध-

सर्वतोभद्र-मण्डल' बनता है। कमलबन्धके तीन

प्रकार हैं-चतुर्दल, अष्टदल और षोडशदल।

चतुर्दल कमलको इस प्रकारसे आबद्ध किया

जाता है-प्रथम पादके ऊपरी तीन पदोँवाले

अक्षर सभी पादोंके अन्तमें रखे जाते हैं। पूर्वपादके

अन्तिम वर्णको पिछले पादके आदिमे

प्रातिलोम्यक्रमसे रखा जाय । अन्तिम पादके अन्तिम

दो अक्षरोंको प्रथम पादके आदिमे निविष्ट किया

जाय। यह स्थिति चतुर्दल कमलमें होती है।

अष्टदल कमलमें अन्त्य पादके अन्तिम तीन

अक्षरोको प्रथम पादके आदिमे विन्यस्त किया

जाता है। षोडशदलं कमले दो अक्षरोके बीचमें

कर्णिका -- मध्यवती एक अक्षरका उच्चारण होता

है। कर्णिकाके अन्तमें ऊपर पत्राकार अक्षरोंकी

पङ्क लिखे और उसे कर्णिकामें प्रविष्ट कराये। यह

बात चतुर्दल कमलके विषयमें कही गयी है।

कर्णिकामें एक अक्षर लिखे और दिशाओं तथा

विदिशाऑमें दो-दो अक्षर लिखे; प्रवेश और

निर्गमका मार्ग प्रत्येक दिशामें रखे। यह बात

"अष्टदल कमल'के विषयमें कही गयी है। चारों

ओर विषम-वर्णोका उतनी ही पत्रावली बनाकर

न्यास करे और मध्यकर्णिकामें सम अक्षरोका एक

अक्षरके रूपमे न्यास करे । यह बात * षोडशदल

कमलके विषयमे बतायी गयी है । चक्रबन्ध '

दो प्रकारका होता है-एक चार अरोंका और

दूसरा छः अरोंका। उनमें जौ आदिम, अर्थात्‌ चार

अर्योवाला चक्र है, उसके पूर्वार्द्धमें समवर्णोंकी

स्थापना करे और प्रत्येक पादके जो प्रथम, पञ्चम

आदि विषमवर्ण हैं, उनको एवं चौथे और

आठवें, दोनों समवर्णोको क्रमशः उत्तर, पूर्व,

दक्षिण और पश्चिमके अरोंमें रखे ॥ ३९--४९॥

उत्तर पादार्धके चार अक्षरोंकों नाभिमें रखे

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