उसमें एक और मिला देनेसे १३ होगा, यही उत्तर
है। तात्पर्य यह है कि 'तनुमध्या' छन्द गायत्रीका
तेरहवाँ समवृत्त है। [अब बिना प्रस्तारके ही
वृत्तसंख्या जाननेका उपाय बतलाते हैं। इस
उपायका नाम “संख्यान' है। जैसे कोई पूछे छः
अक्षरवाले छन्दकौ समवृत्त-संख्या कितनी होगी ?
इसका उत्तर-] जितने अक्षरके छन्दकी संख्या
जाननी हो, उसका आधा भाग निकाल दिया
जायगा। इस क्रियासे दोकी उपलब्धि होगी,
[जैसे छः अक्षरोंमेंसे आधा निकालनेसे ३ बचा,
किंतु इस क्रियासे जो दोकी प्राप्ति हुई] उसे
अलग रखेंगे। विषम संख्यामेंसे एक घटा दिया
जायगा। इससे शून्यकी प्राप्ति होगी। उसे दोके
नीचे रख दें। [जैसे ३ से एक निकालनेपर दो
बचा, किंतु इस क्रियासे जो शून्यकी प्राति हुई,
उसे २ के नीचे रखा गया। तीनसे एक निकालनेपर
जो दो बचा था, उसे भी दो भागोंमें विभक्त
करके आधा निकाल दिया गया। इस क्रियासे
पूर्ववत् दोकी प्राप्ति हुई और उसे शून्यके नीचे
रख दिया गया। अब एक बचा। यह विषम
संख्या है-इसमेंसे एक बाद देनेपर शून्य शेष
रहा। साथ ही इस क्रियासे शून्यकी प्राप्ति हुई, इसे
पूर्ववत् २ के नीचे रख दिया गया।] शून्यके
स्थानमें दुगुना करे। [इस नियमके पालनके लिये
निचले शून्यकों एक मानकर उसका दूना किया
गया।] इससे प्राप्त हुए अद्भूकों ऊपरके अर्धस्थानमें
रखे और उसे उतनेसे ही गुणा करे। [जैसे
शून्यस्थानको एक मानकर दूना करने और
उसको अर्धस्थानमें रखकर उतनेसे ही गुणा
करनेपर ४ संख्या होगी। फिर शून्यस्थानमें उसे ले
जाकर पूर्ववत् दूना करनेसे ८ संख्या हुई; पुनः
इसे अर्धस्थानमें ले जाकर उतनी ही संख्यासे गुणा
करनेपर ६४ संख्या हुई। यही पूर्वोक्त प्रश्नका उत्तर
है। इसी नियमसे 'उष्णिक्'के १२८ ओर 'अनुष्टप्'के
२५६ समवृत्त होते हैं।] इस प्रश्नको इस प्रकार
लिखकर हल करे--
अर्धस्थान २,८४८
शुन्यस्थान ०, ४ » २ ८
अर्धस्थान २, २» २ डे
शून्यस्थान ०, १»%२ २
गायत्री आदि छन्दोकी संख्याको दूनी करके
उसमेंसे दो घटा देनेपर जो संख्या हो, वह
वहाँतकके छन््दोंकी संयुक्त संख्या होती है। जैसे
गायत्रीकी वृत्त-संख्या ६४ को दूना करके २
घटानेसे १२६ हुआ। यह एकाक्षरसे लेकर षडक्षरपर्यन्त
सभी अक्षरोंके छन्दोंकी संयुक्त संख्या हुई। जब
छन्दके वृत्तोंकी संख्याको द्विगुणित करके उसे
पूर्ण ज्यों-का-त्यों रहने दिया जाय, दो घटाया न
जाय, तो वह अङ्क बादके छन्दकौ वृत्तसंख्याका
ज्ञापक होता है । गायत्रीकी वृत्तसंख्या ६४ को दूना
करनेसे १२८ हुआ। यह “उष्णिक् " कौ वृत्त-
संख्याका योग हुआ। [ अब एकद्यादि लग क्रियाकी
सिद्धिके लिये "मेर प्रस्तार" बताते हैं--] अमुक
छन्दरमे कितने लघु, कितने गुरु तथा कितने वृत्त
होते हैं, इसका ज्ञान “मेरु-प्रस्तार'से होता है ।
सबसे ऊपर एक चौकोर कोष्ठ बनाये । उसके
नीचे दो कोष्ठ, उसके नीचे तीन कोष्ठ, उसके
नीचे चार कोष्ठ आदि जितने अभीष्ट हों, बनाये।
पहले कोष्ठमे एक संख्या रखे, दूसरी पड्डिके दोनों
कोरष्टोमिं एक-एक संख्या रखे, फिर तीसरी पद्मे
किनारेके दो कोष्ठोंमें एक-एक लिखे ओर बीचमें
ऊपरके कोष्ठके अङ्क जोड़कर पूरे-पूरे लिख दे।
चौथी पह्निमें किनारेके कोष्ठोंमे एक-एक लिखे
और बीचके दो कोष्टोंमें ऊपरके दो-दो कोष्टोंके
अङ्क जोड़कर लिखे। नीचेके कोष्ठोंमें भी यही
रीति बरतनी चाहिये। उदाहरणके लिये देखिये-
द