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और यगण हों, उसका नाम “तनुमध्या" है। [यह

गायत्री छन्दका वृत्त है।] जिसके प्रत्येक चरणमें

जगण, सगण और एक गुरु हो, उसे ' कुमारललिता ^

कहते हैं। [यह उष्णिक्‌ छन्दका वृत्त है। इसमें

तीन, चार अक्षरोपर विराम होता है।] दो भगण

और दो गुरुसे जिसके चरण बनते हों, वह

*चित्रपदा' है। [यह अनुष्टुप्‌ छन्दका वृत्त है,

इसमें पादान्ते ही यति होती है।] जिसके प्रत्येक

पादमें दो मगण और दो गुरु हों, उसका नाम

“विद्युन्माला” है। [इसमें चार-चार अक्षरोपर

विराम होता है। यह भी अलुष्टपूका ही वृत्त है।]

जिसके प्रत्येक चरणमें भगण, तगण, एक

लघु और एक गुरु हो, उसको 'माणवकाक्रीडितक ^

कहते हैं। [इसमें भी चार-चार अक्षरोंपर विराम

होता है।] जिसके प्रति चरणमें रगण, नगण और

सगण हो, वह “इलमुखी ^ नामक छन्द है।

[इसमें तीन, पाँच, छः अक्षरोंपर विराम होता है,

यह बृहती छन्दका वृत्त है ।] ॥ १-२॥

जिसके प्रत्येक चरण्मे दो नगण ओर एक

मगण हो, वह भुजङ्गशिशुभृता नामक छन्द है ।

[इसमें सात और दो अक्षरोपर विराम है । यह भी

बृहतीमें ही है ।] मगण, नगण ओर दो गुरुसे युक्त

पादवाले छन्दको 'हंसरुत* कहते हैँ । जिसके

प्रत्येक चरणमें मगण, सगण, जगण और एक गुरु

हों, वह * शुद्धविराट्‌ ^ नामक छन्द कहा गया है।

(यहाँसे इन्द्रवज्राके पहलेतकके छन्द पङ्क छन्दके

अन्तर्गत हैं; इसमें पादान्ते विराम होता है।]

जिसके प्रत्येक पाद्मे मगण, नगण, यगण और

एक गुरु हों, वह "पणव" नामक छन्द है।

[इसमें पाँच-पाँचपर विराम होता है।] रगण,

जगण, रगण और एक गुरुयुक्त चरणवाले छन्दका

नाम ' मयूरसारिणी "^ है । [इसमें पादान्ते विराम

होता है ।] मगण, भगण, सगण और एक गुरुयुक्त

चरणवाला छन्द "मत्ता" कहलाता है। [इसमें

चार-छःपर विराम होता है।] जिसके प्रत्येक

पादमें तगण, दो जगण और एक गुरु हो, उसका

नाम "उपस्थिता ^* है । [इसमें दो-आठपर विराम

होता है ।] भगण, मगण, सगण और एक गुरुसे

युक्त पादवाला छन्द ' रुक्मवती * कहलाता है ।

[इसमें पादान्ते विराम होता है।] जिसके प्रत्येक

चरणमें दो तगण, एक जगण ओर दो गुरु हों

उसका नाम ' इन्द्रवज्रा ^“ है। [इसमें पादान्ते

विराम होता है। यहाँसे ' वंशस्थ के पहलेतकके

छन्द वृहतीके अन्तर्गत हैं।] जगण, तगण, जगग

६. उदाहरण- धन्वा त्रिषु नीचा कन्या तनुमध्या । श्ओोणीस्तवगर्वो रामा रमणोया ॥

२. उदाहरण-- यदीह पतिसेयारता भवति योषा । कुमारललितासौ सदैव नमनो ३

३. उदाहरण--यस्य मुखे प्रिवाणो चेतसि सज्जनता च । चित्रपदापि च लक्ष्मीस्तं पुरुषं न जहाति #

४. डदाहरण-विधुन्मालालोलान्‌ भोगान्‌ मुक्त्वा मुक्तौ यत्नं कुर्यात्‌। ध्यानोत्पननं निस्सामान्यं सौख्यं भोक्तु यद्याकाइश्षेत्‌ ४

५. उदाहरण--माणवकाक्रौडितक॑ य: कुस्ते युद्धवयाः । हास्यमसौ याति जने भिक्षुरिव स्त्रौचपलः ॥

६.

७.

११. उदाहरण--या चनान्तराण्युपैति कृष्ण ्रषटमत्सुका शिखण्डमौलिम्‌। बर्हिणं विलोक्य राधिका में सा मयूरसारिणी प्रनम्या ॥

६२. उदाहरण- स्वैरालावैः श्रुतिपुटपेयैगीति: शौरिक्षरित चिरोषैः। स्यापप्रम्णा त्रजवनिताना मध्ये मत्ता विलसति कपि ॥

१३. उदाहरण- एषा जगदेकमनोहरा कन्या कतकोज्वलदोधिति: । लक्ष्मीरिव दानवसूदनं पुण्यैर्नरनाथमुपस्थिता #

१४. उदाहरण-- पादठ्ले पद्मोदरगौरे राजति यस्या ऊर्ध्वगरेखा। सा भवति स्त्री लक्षणयुक्ता स्वमयतती सौ भाग्ययतौ च ॥

९५. उदाहरण--ये दुष्टदैत्या इह भूमिलोके द्वेषं व्यधुरगोदरिजदेवसंषे। तानिन्द्रवख़ादपि दारुणाङ्गावजौयतद्‌ य: सततं नमस्ते #

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