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4 | ऋकऋक कक छह इक 62 28666 हक छ छ छ छछक छछछ-बऊ्नन्ब्न्य

दूसरे चरणमें जगण, तगण, जगण एवं दो गुरु हों, | तथा दूसरेमें एक नगण, दो जगण, एक रगण और

उसे “आख्यानिकी” कहते हैं। इसके विपरीत यदि | एक गुरु हो, उसका नाम "पुष्पिताग्रा ^ है। जिसके

प्रथम चरणमें जगण, तगण, जगण एवं दो गुरु हों | पहले चरणमें रगण, जगण, रगण, जगण हो तथा

और द्वितीय चरणमें दो तंगण, एक जगण तथा दो | दूसरे जगण, रगण, जगण, रगण और एक गुरु

गुरु हों तो उसकी “ विपरीताख्यानकी ^ संज्ञा | हो उसे 'यवमती" कहते हैं। जिसके प्रथम और

होती है। जिसके पहले पादमें तीन सगण, एक | तृतीय चरणोॉमें अट्ठाईस लघु और अन्ते एक गुरु

लघु और एक गुरु हों तथा दूसरेमें नगण, भगण, | हो तथा दूसरे एवं चौथे चरणोंमें तीस लघु एवं

भगण एवं रगण मौजूद हों, उस छन्दका नाम | एक गुरु हो तो उसका नाम 'शिखा" होता है।

*हरिणप्लुता" है। जिसके प्रथम चरणमें दो नगण, | इसके विपरीत यदि प्रथम और तृतीय चरणोंमें

एक रगण, एक लघु और एक गुरु हो तथा दूसरे | तीस लघु और एक गुरु हो तथा द्वितीय एवं

चरणमें एक नगण, दो जगण और एक रगण हो, | चतुर्थ चरणोंमें अट्टाईस लघुके साथ एक गुरु हो

वह 'अपरवक्त्र” नामक छन्द है। जिसके प्रथम | तो उसे “खज्जा* कहते हैं। अब “समवृत्त'का

पादमें दो नगण, एक रगण और एक यगण हो | दिग्दर्शन कराया जाता है॥ १--६॥

इस शकार आदि आग्रेय महापुराणमें 'अर्थस्रमवृत्का वर्णन” नामक

तीन सौ तैँतीसवाँ अध्याय पूरा हुआ॥ २२२ `

न तब

तीन सौ चौंतीसवाँ अध्याय

समतवृत्तका वर्णन |

4 कहते हैं--'यति' नाम है विच्छेद | होनेपर तथा कहीं-कहीं पादके मध्यमे भी ' यति"

या विरामका। [पाके अन्तर्मे श्लोकार्धं पूरा होती है ।] जिसके प्रत्येक चरणमें क्रमशः तगण

१. भृङ्गाक्लीमङ्गतगीतनारैर्जनस्वय चित्ते मुदमादधाति।

कथं स्यादाख्यानिकौ चेद्‌ :४

आख्यानिकौके दोनों भेद उपजातिके अन्तर्गत है । यहाँ चिशेष संज्ञा-विधानके लिये पढ़े गये है ।

३. तब मुझ नराधिष ` विद्विषां भयवियर्जितकेतुलघीयसाम्‌।

रणभूमिपराङ्मुखकर्त्मनां भवति शीघ्रगति् रिणीप्लुता ॥

४. "अषरवकत्र कमक छन्द 'सैतालीय' छन्दक अन्तरगत है; फिर भी विशेष संज्ञा-विधानके लिये यहाँ पढ़ा गया है । उदाहरण--

सकृदपि कृषणेन चश्ुष्ठ नरवर पश्यतति यस्तवाननम्‌ ।

नै पुनरपरवक्मौक्चते स हि :8

५. यह छन्द ' औपच्छन्दसक 'के अन्तर्गत है, तो भी विशेष संज्ञा देनेके लिये इस प्रकरणे इसका पाठ किया गया है । उदाहरण--

समसितदशना मृगायताक्षी स्मितसुधगा प्रिववादिनी विदग्धा। .

| विकसित विविधकुसुमसुलभसुरधिशरमदननिहतसकलजने ज्वलयति मम इदयमविरतमिह सुतनु रव चिरहदह्तविषमशिखा ॥

८. "शिखा" छन्दके ही समान ' खञ्ज ` भो उदाहरण होगा । उसका सम इसका विषम होगा और ठसका विषम इसका सम होगा ।

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