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* अध्याय ३३० ०५ ६७९

7.

तीन सौ उनतीसवाँ अध्याय

गायत्री आदि छन्दोका वर्णन

अग्निदेव कहते हैं-- वसिष्ट ! (गायत्री छन्दके | उन सबको ` ब्राह्मी-गायत्री ', ' ब्राह्मी -उष्णिक्‌ '

आठ भेद हैं--आर्षी, दैवी, आसुरी, प्राजापत्या, | आदि छन्द समझना चाहिये । इसी प्रकार याजुषीके

याजुषी, साम्नी, आर्ची तथा ब्राह्मी) छन्द" शब्द | पहले जो दैवी, आसुरी और प्राजापत्या नामक

अधिकारमें प्रयुक्त हुआ है, अर्थात्‌ इस पूरे | तीन भेद हैं, उनके अक्षरोको पृथक्‌-पृथक्‌ छः

प्रकरणे छन्द-शब्दकी अनुवृत्ति होती है । ' दैवी ' | कोष्ठोंमें जोड़नेपर जितने अक्षर होते हैं, वे ' आर्षी

गायत्री एक अक्षरकी, ' आसुरी" पंद्रह अक्षरोंकी, | गायत्री “आर्षी उष्णिक्‌" आदि कहलाते है ।

"प्राजापत्या" आठ अक्षरोंकी, " याजुषी ' छः अक्षरॉंकी, | इन भेदोंको स्पष्टरूपसे समझनेके लिये चौसठ

"साम्नी" गायत्री बारह अक्षरोकी तथा " आर्ची ' | कोष्टोंमें लिखना चाहिये ॥ १--५॥

अठारह अक्षरोंकी है। यदि साम्नी गायत्रीमें (कोष्ठक इस प्रकार है- )

क्रमशः दो-दो अक्षर बढ़ते हुए उन्हें छः

कोष्ठोंमें लिखा जाय, इसी प्रकार आर्ची गायत्रे

तीन-तीन, प्राजापत्या-गायत्रीमे चार-चार तथा

अन्य गायत्रियोंमें अर्थात्‌ दैवी और याजुषीमें

क्रमशः एक-एक अक्षर बढ़ जाय एवं आसुरी

गायत्रीका एक-एक अक्षर क्रमशः छः कोष्ठे

घटता जाय तो उन्हें ' साम्नी ' आदि भेदसहित

क्रमशः उष्णिक्‌, अनुष्टुप्‌, वृहती, पङ्क, त्रिष्ठप्‌

और जगती छन्द जानना चाहिये। याजुषी, साम्नी

तथा आर्ची -इन तीन भेदोंवाले गायत्री आदि

प्रत्येक छन्दके अक्षरोको पृथक्‌-पृथक्‌ जोड़नेपर

इस प्रकार आदि आग्नेय महापुराणमें "छन्दस्सारका कथन" कामक

तीत सौ उनतीसवाँ अध्याय पूरा हआ ॥ ३२९ ॥

=

तीन सौ तीसवाँ अध्याय

“गायत्री से लेकर "जगती ' तक छन्दोके भेद तथा उनके

देवता, स्वर, वर्ण और गोत्रका वर्णन

अग्रिदेव कहते हैं--इस प्रकरणकौ पूर्ति | आठ अक्षरकी पूर्तिके लिये ' वरेण्यम्‌ ' के स्थानमें

होनेतक "पादः ' पदका अधिकार (अनुवर्तन) है । | 'बरेणियम्‌' समझ लिया जाता है । ' स्वःपते'के

जहाँ गायत्री आदि छन्दोम किसी पादकी अक्षर- | स्थानम ‹ सुवःपते" माना जाता है ।) गायत्री

संख्या पूरी न हो, वहाँ “इय्‌ ', उव्‌" आदिके द्वारा छन्दका एक पाद आठ अक्षरोका होता है । अर्थात्‌

उसकी पूर्ति की जाती है । (जैसे ' तत्सवितुवरेण्यम्‌ ' में | जहाँ " गायत्रीके पाद'का कथन हो, वहाँ आठ

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