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(ॐ ) नमः परमात्मने पराय कामदाय

परमेश्वराय योगाय योगसम्भवाय सर्वकराय कुरु

कुरु सद्य सद्य भव भव भवोद्धव वामदेव

सर्वकार्यकर पापप्रशमन सदाशिव प्रसन नमोऽस्तु

ते ( स्वाहा )॥ ३४॥

--यह सतहत्तर अक्षरोका हदय-यन्त्र है, जो

सम्पूर्ण मनोरथोंको देनेवाला है । [ कोष्ठके दिये

गये अशक्षरोको छोडकर गिननेपर सतहत्तर अक्षर

होते है ।] ॥ ३५॥

(इस मन्त्रको पढ़कर ' हृदयाय नमः ' बोलकर

हृदयका स्पर्श करना चाहिये ।)

"ॐ शिव शिवाय नमः ।'-- यह शिरोमन्त्र

है, अर्थात्‌ इसे पढ़कर “शिरसे स्वाहा' बोलकर

दाहिने हाथसे सिरका स्पर्श करना चाहिये । * ॐ

शिवहृदये ज्वालिनी स्वाहा, शिखायै खट्‌! बोलकर

शिखाका स्पर्श करे।

"ॐ शिवात्मक महातेज: सर्वज्ञ प्रभो संवर्तय

महाघोरकवच पिड्ुल आयाहि पिङ्गल नमो

महाकवच शिवाज्ञया हदयं बन्ध बन्ध घूर्णय

चूर्णय चूर्णय चूर्णय सूक्ष्मासूक्षक वज्रधर

वच्रपाशधनु्व॑ज्राशानिवच्रशरीर मच्छरीरमनुप्रविश्य

सर्वदुष्टान्‌ स्तम्भय स्तम्भय हुम्‌ ` ' ॥ ३६॥

--यह एक सौ पाँच अक्षका कवच-मन््र है ।

अर्थात्‌ इसे पढ़कर "कवचाय हुम्‌' बोलते हुए दोनों

हाथोंसे एक साथ दोनों भुजाओंका स्पर्श करे ॥ ३७॥

"ॐ ओजसे नेत्रत्रयाय वौषट्‌' ऐसा बोलकर

दोनों नेत्रोंका स्पर्श करें। इसके बाद निम्नाद्धित

मन्त्र पढ़कर अस्त्रन्यास करे--' ॐ हीं स्फुर स्फुर

प्रस्फुर प्रस्फुर घोरघोरतरतनुरूप चट चट प्रचट

प्रचट कह कह वम वम बन्ध बन्ध घातय घातय

हुं फट्‌।' यह (प्रणवसहित बावन अक्षरोका)

" अघोरास्त्-मन्त्र' है ॥ ३८॥

इस प्रकार आदि आग्रेय महापुराणं “अनेकविध मन्त्रोंके साथ ईशान आदि मन्त्र तथा छः अङ्गोसहिति

अपोरात्तका कथनत ' नामक तीत सौ तेईसर्वाँ अध्याय पूरा हुआ॥ ३२३ ॥

तीन सौ चौबीसवाँ अध्याय

कल्पाघोर रुद्रशान्ति

महादेवजी कहते ईह -- स्कन्ध}! अब मैँ

" कल्पाघोर-शिवशान्ति'का वर्णन करता हँ । भगवान्‌

अघोर शिव सात करोड़ गणोकि अधिपति हैं तथा

ब्रह्महत्या आदि पापोंको नष्ट करनेवाले हैं। उत्तम

ओर अधम-सभी सिद्धियोकि आश्रय तथा सम्पूर्ण

रोगोकि निवारक हैं। भौम, दिव्य तथा अन्तरिक्ष-

सभी उत्पातोंका पर्दन करनेवाले हैँ । विष, ग्रह

ओर पिशाचोंको भी अपना ग्रास बना लेनेवाले

"एकवीर 'का सर्वङ्गिमँ न्यास करके सदा

पञ्चमुख शिवका ध्यान करे। (विभिन कर्मोमिं

उनके विभिन शुक्ल-कृष्ण आदि वर्णोको ध्यान

किया जाता है। यथा--) शान्ति तथा पुष्टि-कर्ममें

भगवान्‌ शिवका वर्णं शुक्ल है, ऐसा चिन्तन करे ।

वशीकरणमें उनके रक्तवर्णका, स्तम्भनकर्ममिं

पीतवर्णका, उच्चाटन तथा मारणकर्ममें धूप्रवर्णका,

आकर्षणे कृष्णवर्णका तथा मोहन-कर्मपें

तथा सम्पूर्ण मनोर्थोको पूर्णं करनेवाले है । | कपिलवर्णका चिन्तन करना चाहिये । (अघोरमन्त्र

पापसमृहको पीड़ा देकर दूर भगानेके लिये वे

उस प्रबल प्रायशचित्तके प्रतीक हैं, जो दुर्भाग्य तथा

दुःखका विनाशक ह ॥ १-३॥

* पाठान्तर 'हम्‌'।

बत्तीस अक्षरोंका मन्त्र बताया गया है ।) वे बत्तीस

अक्षर वेदोक्त अघोरशिवके रूप है । अतः उतने

अक्षरोंके मन्त्रस्वरूप अधोरशिवकी अर्चना करनी

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