वस्त्र आदिको धूपित या बासित करनेसे
विवाद, स्त्रीमोहन, श्रृंगार तथा कलह आदिके
अवसरपर शुभ फलका भागी होता है। कन्यावरण
तथा भाग्योदय-सम्बन्धी कार्यम भी उसे सफलता
पराप्त होती है । मायामन्त्र (हीं ) -से मन्त्रित हो,
रोचना, नागकेसर, कुङ्कुम तथा. मैनसिलका
तिलक ललाटमें लगाकर मनुष्य जिसकी ओर
देखता है, वही उसके वशमें हो जाता है।
शतावरीके वर्णको दूधके साथ पीया जाय तो वह
पुत्रकी उत्पत्ति करानेवाला होता है । नागकेसरके
चूर्णको घीमें पकाकर खाया जाय तो वह भी
पुत्रकारक होता है। पलाशके बीजकों पीसकर
पीनसे भी पुत्रकी प्राप्ति होती है ॥ १५--२०॥
( वशीकरणके लिये सिद्ध-विद्या )
"ॐ उत्तिष्ठ चामुण्डे जम्भय जम्भय मोहय
मोहय ( अमुकं ) वशमानय स्वाहा ' ॥ २९॥
-यह उछब्बीस अक्षणेंवाली 'सिद्ध-विद्या'
होमसे पुष्टिकारक होता है॥ २५॥
( मृतसंजीवनी )
“3० हूं सः हूं हूं सः, हः सौ: '॥ २६॥
-यह आठ अक्षरवाली ' मृतसंजीवनी -विद्या'
है, जो रणभूमिमें विजय दिलानेवाली है । 'ईशान'
आदि मन्त्र भी धर्म-काम आदिको देनेवाले
हैं॥ २७॥
(ईशान आदि मन्त्र )
(ॐ ) ईशान: सर्वविद्यानामी श्वर: सर्वभूतानां
ब्रह्माधिपतिद्रहाणोऽधिपतिर्बह्मा शिवो मे अस्तु
सदाशिवोम्, ॥ २८॥
( ॐ ) तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि ।
तन्नो रुद्रः प्रचोदयात्ः॥ २९॥
(ॐ ) अघोरेभ्योऽथ घोरेभ्यो घोरघोरतरेभ्य:
सर्वतः सर्वशर्वेभ्यो नमस्तेऽस्तु रुद्ररूपेभ्यः, ॥ ३०॥
(ॐ ) वाप्रदेवाय नमो ज्येष्ठाय नमः श्रेष्ठाय
ह । (यदि किसी स्तरीको वशम करना हो तो) | नमो रुद्राय नमः कालाय नमः कलविकरणाय
नदीके तीरकी मिट्टीसे लक्ष्मीजीकी मूर्ति बनाकर | नमो बलविकरणाय नमो बलाय नमो बलप्रमथनाय
धतूरके रससे मदारके पत्तेपर उस अभीष्ट स्त्रीका | नमः सर्वभूतदमनाय नमो मनोन्मनाय नमः*॥ ३१॥
नाम लिखे । इसके बाद मूत्रोत्सर्गं करनेके पश्चात् | ( ॐ ) सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै
शुद्ध हो उक्त मन्त्रका जप करे। यह प्रयोग अभीष्ट | नयो नमो भवे धवे नातिभवे भवस्व मां भवोद्धवाय
स्त्रीको अवश्य वशमें ला सकता है ॥ २२-२३॥ | नमः*॥ ३२॥
( महामृत्युंजय ) अब मैं 'पश्चत्रह्म 'के छः अङ्गका वर्णन करूँगा,
*ॐ जूँ सः वषट्'॥ २४॥ जो भोग तथा मोक्ष प्रदान करनेवाला है ॥ २२॥
ईशान आदि मन्जोंके अर्थ -
१. जो सम्पूर्ण विद्याओकि ईश्वर, समस्त भूतोके आधी श्र, ब्रह्म येदके अधिपति, ब्रह्म-यल-जीयंके प्रतिपालक तथा सक्षात् ब्रह्मा एवं
'फामात्पा है, वे सच्चिदानन्दमय नित्य कल्याणस्थरूप शिव मेरे बने रहें ॥ २८॥
२. तत्पदार्थं -परमेशवररूप अन्तर्यामी पुरुषकों हम जानें, उन महादेवका चिन्तन कर; वे भगयान् रुद्र हमें सद्धमके लिये प्रेरित करते
रहें ॥ २९ ७
३. जो अघोर है, घोर हैं, घोरसे भी घोरतर हैं, उन सर्वध्यापी, सर्वसंहारी स्द्ररूपोंके लिये ओ आपके हो स्वरूप हैं, --साक्षात् आपके
लिये मेरा बमस्कार हो॥ ३० ॥ |
४ प्रभो! आप ही वामदेव, ज्येष्ठ, ब्र, सद, कज्ल, कलवपिकरण, बलविकरण, बल, यलप्रमथन, सर्वभूतदमन तथा मनोन्मने आदि
नामोंसे प्रतिपादित होते हैं; इन सभी जाम-रूपोर्में आपके लिये मेरा थारंधार नमस्कार है ॥ ३१ ॥
५. मैं स्ोजात शिवकी शरण लेता हूँ। सच्चोजातको मेरा नमस्कार है । किसी जन्म या जगत्पें मेरा अतिभव -- पराभव न करें। आप
भवोद्धवको मेरा नमस्कार है ॥ ३२ ॥