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आहूति दे। तत्पश्चात् पूर्णाहुति देकर अभिषेक 4
१ अभ्विपुराण #
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वस्त्र आदि देकर
गौ, अश्च, हाथी तथा
करे। इससे सम्पूर्णं मनोरथ सिद्ध होता है। साधक | गुरुदेवकी पूजा करे॥ २१-२२॥
इस प्रकार आदि आग्रेय महापुराणमें “ गणपति- पूजनके विधानका कथन” नामक
तीन सौ अठारहवाँ अध्याय पूरा हुआ ॥ ३१८५
तीन सौ उन्नीसवोँ अध्याय
वागीश्वरीकी पूजा एवं मन्त्र आदि
भगवान् शिव कहते हैँ स्कन्द ! अब मैं | पाया बनाये। चार पदोंमें आठ कमल बनाये ।
मण्डलसहित “बागी श्वरी-पूजन'की विधि बता
रहा हूँ । ऊहक (ऊ)-को काल (घ)-से संयुक्त
करके उसका चन्द्रमा (अनुस्वार) -से योग करें
तो वह एकाक्षर मन्त्र बनेगा (घूं) । निषादपर
ईश्वर (ई)-का योग करके उसे बिन्दु-विसर्गसे
समन्वित करे। इस एकाक्षर मन््रका उपदेश
सबको नहीं देना चाहिये । वागीश्वरीदेवौका ध्यान
इस प्रकार करे -' देवीकी अङ्गकान्ति कुन्दकुसुम
तथा चनद्रमाके समान उज्वल है। वे पचास
वर्णोका मालामय रूप धारण करती है । मुक्ताकी
माला तथा शतपुष्पके हासे सुशोभित है । उनके
चार हाथोंमें क्रमश: वरद, अभय, अक्षमाला तथा
पुस्तक शोभा पते हैं। वे तीन नेत्रोंसे युक्त हैं।'
इस प्रकार ध्यान करके उक्त एकाक्षर-मन््रका
एक लाख जप करे। ' देवी पैरोंसे लेकर मस्तकपर्यन्त
अथवा कंधोंतक ककारसे लेकर क्षकारतककी
वर्णमाला धारण करती हैं'--इस प्रकार उनके
स्वरूपका स्मरण करे॥ १--४॥
गुरु दीक्षा देने या मन्त्रोपदेश करनेके लिये
एक मण्डल बनाये। वह सूर्याग्र हो और इन्दुसे
विभक्त हो। दो भागोंमें कमल बनाये। वह कमल
साधकके लिये हितकर होता है। फिर वीथी और
उनके बाह्मभागमें वीथी और पदिकाका निर्माण
करे। दो-दो पदोंद्वारा प्रत्येक दिशामें द्वार बनाये।
इसी तरह उपद्वारोंका भी निर्माण करे। कोणोंमें
दो-दो पट्टिकाएँ निर्मित करे। अब नौ कमल
(वर्णाब्ज तथा दिशाओंसे सम्बद्ध कमल) श्वेतवर्णके
रखे । कर्णिकापर सोनेके रंगका चूर्ण गिराकर उसे
पीली कर दे। केसररोको अनेक रंगोंसे
रैगकर कोणोंको लाल रंगसे भरे। व्योमरेखान्तर
काला रखे द्वारका मान इनद्रके हाथीके मानके
अनुसार रखे । मध्यकमलमें सरस्वतीको, पूर्वगत
कमले वागीशीको, फिर अग्नि आदि कोणोंके
क्रमसे हल्लेखा, चित्रवागीशी, गायत्री, विश्वरूपा,
शाङ्करी, मति और धृतिको स्थापित करके उन
सबका पूजन करे। नामके आदिमे “हं ' तथा
नामके आदि अक्षरको बीज-रूपोंमें बोलकर
पूजा करनी चाहिये । यथा - पूर्वमे ' हीं वां वागीश्यै
नमः ` इत्यादि। सरस्वती ही वागीश्चरीके रूपमे
ध्येय हैं। जप पूरा करके कपिला गायके घीसे
हवन करे । ऐसा करनेवाला साधक संस्कृत तथा
प्राकृत भाषाओं काव्य-रचना करनेवाला कवि
होता है और काव्यशास्त्र आदिका विद्वान् हो
जाता है॥ ५--११॥
इस प्रकार आदि आग्रेय महाएराणमें 'वायीश्वरी-पूणा' नामक
तीन सौ उन्नीसवाँ अध्याय पूरा हुआ॥ ३१९ #
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