(ब्रह्मसन्ध्र)-में अमृतका चिन्तन करके सुषुम्णानाड़ीके | रखे हैं। उनकी समस्त इन्द्रियाँ पूर्णकाम हैं।
मार्गसे आती हुई अमृतकी धाराओंसे अपने
शरीरको बाहर और भीतरसे भी आप्लावित
करे॥ ७ --११॥
इस प्रकार शुद्धशरीर होकर मूलमन्त्रसे तीन
बार प्राणायाम करे। फिर मस्तक और मुखपर
तथा गुह्यभाग, ग्रीवा, सम्पूर्ण दिशा, हृदय, कुक्षि
एवं समस्त शरौरमें हाथ रखकर उनमें शक्तिका
न्यास करे। इसके बाद सूर्यमण्डलसे सम्परात्माका
आवाहन करके ब्रह्मरन्श्रके मार्गससे इृदय-कमलमें
लाकर चिन्तन करें। वे परात्मा समस्त शुभ
लक्षणोंसे सम्पन्न हैं। प्रणवका उच्चारण करते हुए
परात्माका स्मरण करना चाहिये॥ १२--१४॥
उनके स्मरणके लिये गायत्री-मन्त्र इस प्रकार
है--'त्रैलेक्यमोहनाय विद्यहे। स्पराय धीमहि।
तन्नो विष्णु: प्रचोदयात्। इति।' परात्माका अर्चन
करनेके पश्चात् यज्ञसम्बन्धी द्रव्यो ओर शुद्ध
पात्रका प्रोक्षण करे। विधिपूर्वक आत्मपूजा करके
वेदीपर उसकी अर्चना करें॥ १५-१६॥
कूर्म-अनन्त आदिके रूपमे कल्पित पीठपर
कमल एवं गरुड्के आसनपर विराजमान
त्रैलोक्यमोहन भगवान् विष्णु सर्वङ्गसुन्दर हैं और
वयके अनुरूप लावण्य तथा यौवनको प्राप्त हैं।
उनके अरुणनयन मदसे घूर्णित हो रहे हैं। वे परम
उदार तथा स्मरसे बिह्नल ह । दिव्य माला, वस्त्र
और अनुलेषप उनकी शोभा बढ़ाते हैं। मुखपर
मन्दहास्यकी छरा छिटक रही है। उनके परिवार
और परिकर अनेक हैं। वे लोकपर अनुग्रह
करनेवाले, सौम्य तथा सहस्नों सूर्योके समान
उनके आठ भुजाएँ हैं। देवाडुनाएँ उन्हें घेरकर
खड़ी हैं। उनकी दृष्टि लक्ष्मीदेवीके मुखपर
गड़ी है। ऐसे भगवान्का भजन करें। उनके आठ
हाथोंमें क्रमशः चक्र, शङ्खं, धनुष, खङ्ग, गदा,
मुसल, अङ्कुश और पाश शोभा पाते है । आवाहन
आदिके द्वारा उनकी अर्चना करके अन्ते उनका
विसर्जन करना चाहिये ॥ १७ --२१॥
यह भी चिन्तन करे कि भगवान् अपने ऊरु
तथा जंघापर श्रीलक्ष्मीजीको यैठाये हुए हैं और
वे दोनों हाथोंसे पतिका आलिङ्गनं करके स्थित
हैं। उनके बायें हाथमें कमल है। वे शरीरसे हष्ट-
पुष्ट हैं तथा श्रीवत्स और कौस्तुभसे सुशोभित हैं।
भगवानूके गलेमें वनमाला है ओर शरीरपर पीताम्बर
शोभा पाता है। इस प्रकार चक्र आदि आयुरधोसे
सम्पन्न श्रीहरिका पूजन करे ॥ २२-२३॥
* ॐ सुदर्शन महाचक्रराज दह दह सर्वदुष्टभयं
कुरु कुरु छिन्द छिन्द विदारय विदारय परमन्त्रान्
ग्रस ग्रस भक्षय भक्षय भूतानि त्रासय त्रासय हुं
फट् स्वाहा '-- इस मन्त्रसे चक्र सुदर्शनकी पूजा करे ।
"ॐ महाजलचराय हं फट् स्वाहा ।
पाञ्चजन्याय नमः।'
-इस मन्त्रसे शङ्खको पूजा करे ।
"महाखङ्ग तीक्ष्ण छिन्द छिन्द हं फट् स्वाहा
खङ्गाय नमः॥'-- इससे ख्गकी पूजा करे ।'
“शाङ्गाय ! सशराय नमः।'--इससे धनुष और
बाणकी पूजा करें। "ॐ भूतग्रामाय विगाहे ।
चतुर्विधाय धीमहि । तनो ब्रह्म प्रचोदयात् ।'-- यह
भूतग्रामः गायत्री है । संवर्तक मुशल पोधय पोथय
तेजस्वी है । उन्होने हाथोंमें पाँच बाण धारण कर | हुँ फट् स्वाहा।'-इस मन्त्रये मुशलकी* पूजा
१. " महाशाङ्गाय सशराय हुं फट् स्वाहा, शङ्खाय नमः ।'-- यह सर्बसम्मत शा््धनुष-सम्बन्धी मन्त्र है। (शारदातिलकसे)
२. यह ' भूतग्राम-गायत्रौ' क्रमप्राप्त गदामनत्रके लिये आयी जान पड़ती है । इससे गदाका पूजन करना चाहिये । 'शारदातिलक 'में
कौमोदकौ गदाके मन्त्रका स्वरूप यों उद्धृत हुआ है--
*महाकौमोदकि महावले सर्वासुरान्तकि प्रसौद प्रसीद हं फट् स्वाहा, कौमोदक्यै तम:।'
३, "संक महामुशल पोधय पोधय हुं फट् स्थाहा, मुशलाय जमः ।'--थह पूरा-पूरा मुशल-मन््र' है।