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दाढ़ें हैं। वे चार भुजाधारी होते हुए भी अष्टबाहु

हैं। वे अपने हाथोंमें क्रमशः शङ्खं, चक्र, गदा

पद्म, मुसल, अङ्कुश, पाश और धनुष धारण

करते हैं। उनके केश पिड्जलवर्णके और नेत्र लाल

हैं। उन्होने अरोंसे त्रिलोकीको व्याप्त कर रखा

है। चक्रकी नाभि (नाहा) उस अग्रिसे आविद्ध

(व्याप्त) है। उसके चिन्तनमात्रसे समस्त रोग

तथा अरिष्टगरह नष्ट हो जाते है । सम्पूर्ण चक्र

पीतवर्णका है । उसके सुन्दर अरे रक्तवर्णकि है ।

उन अरोंका अवान्तरभाग श्यामवर्णका है। चक्रकी

नेमि श्वेतवर्णी है। उसमें बाहरकी ओरसे

कृष्णवर्णकी पार्थिवी रेखा है। अरोंसे युक्त जो

मध्यभाग है, उसमें समस्त अकारादि वर्ण हैं।'

इस प्रकार दो चक्र-चिह अङ्कित करे॥ ९--१२॥

आदि (उत्तरबर्ती) चक्रपर कलशका जल ले

अपने आगे समीपमें ही स्थापित करे। दूसरे

दक्षिण चक्रपर सुदर्शनकी पूजा करके वहाँ अग्ने

क्रमश: घी, अपामार्गकी समिधा, अक्षत, तिल,

सरसों, खीर और गोघृत--सबकी आहुतियाँ दे।

है ।'--इस मन्त्रकों पढ़कर हुतशेष जलसे बलि

समर्पित करे। किसी काष्ट-फलकपर या कलशर्मे

अथवा दूधवाले वृक्षकी लकड़ीसे बनवाये हुए

दधिपूर्णं काष्ठपात्रमें बलिकी वस्तु रखकर प्रत्येक

दिशामें अर्पित करे। यह करके ही द्विजोंके द्वारा

होम कराना चाहिये। दक्षिणासहित दो बार किया

हुआ यह होम भूत-प्रेत आदिका नाशक होता

है॥ १६--१८॥

दही लगे हुए पत्तेपर लिखित मन्त्राक्षरोंद्वारा

किया गया होम श्षुद्र रोगोंका नाशक होता है।

दूर्वासे होम किया जाय तो वह आयुकी,

कमलॉकी आहुति दी जाय तो वह श्री (ऐश्वर्य)-

की और गूलर-काष्टसे हवन किया जाय तो वह

पुत्रकी प्राप्ति करानेवाला होता है। गोशालामें

घीके द्वारा आहुति देनेसे गौओंकी प्राप्ति एवं

वृद्धि होती है। इसी प्रकार सम्पूर्ण वृक्षोंकी

समिधासे किया गया होम बुद्धिकी वृद्धि करनेवाला

होता है॥ १९-२० ॥

* ॐ क्षौ नमो भगवते नारसिंहाय ज्वालामालिने

प्रत्येक वस्तुकी एक हजार आठ आहतियौ | दीप्त दंक्षयाग्निनेत्राय सर्वक्षोघ्नाय सर्वभूतविनाशाय

पृथक्‌-पृथक्‌ देनी चाहिये ॥ १३-१४॥

विधि-विधानका ज्ञाता विद्वान्‌ प्रत्येक द्रव्य

हुतशेष भाग कलशमें डाले। तदनन्तर एक प्रस्थ

(सेर) अनद्वारा निर्मित पिण्ड उस कलशके

भीतर रखे। फिर विष्णु आदि देवोंके लिये सब

देय वस्तु वहीं दक्षिण भागम स्थापित करे ॥ १५॥

सर्वज्यरयिनाशाय दह दह पच पच रक्ष रक्ष हूं

फट्‌ *॥ २९॥'

--यह भगवान्‌ नरसिंहका मन्त्र समस्त पापोंका

निवारण करनेवाला है। इसका जप आदि किया

जाय तो यह शुद्र महामारी, विष एवं रोगोंका

हरण कर सकता दै । चूर्णीभूत मण्डूक -वयस्‌

इसके बाद ' सर्वशान्तिकर विष्णुजनों ( भगवान्‌ | | ओषध-विशेष)-से हवन किया जाय तो वह

विष्णुके पार्षदो )-को नमस्कार है। वे शान्तिके

जलस्तम्भन और अग्नि-स्वम्भन करनेवाला होता

लिये यह उपहार ग्रहण कर । उनको नमस्कार | रै ॥ २१-२२॥

ङ्त प्रकार आदि आग्नेय महापुराणमें "नरसिंह आदिके मन्त्रोक्ता कथन ' नामक

तीन सौ छठवां अध्याय पूदा हुआ॥ ३०९ ॥

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* ^ॐ क्षौ ' ज्वालामालाओंसे समलंकृत दीप्िमती दृष्टाओँसे देदीप्पमातर, अग्रिमय गेक्रवाले, सर्वग़क्षससंहारक,

सर्वज्वरापहारक भावान्‌ नरसिहको नमस्कार है। जलाओ, जलाओ, पकाओ, पकाओ, मुझे बचाओ, बचाओ हुं फर्‌ ।

- कह इस मन्त्रका अर्थं है ।

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