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प्राप्ति होती है। यदि दही, मधु और घीसे मिले

हुए चावलसे आहुति दी जाय तो सौभाग्यकी

सिद्धि एवं वशित्वकी प्राप्ति होती है ॥ ११\॥

घोष (ह), असुक्‌ (र), प्राण (य), शान्ति

(ओ), अर्घी (उ) तथा दण्ड (अनुस्वार) - यह

सब मिलकर सूर्यदेवका "हौ ॐ '- ऐसा

"मार्तण्डभैरव ' नामक बीज होता है । इसको बिम्ब-

बीजसे' सम्पुटित कर दिया जाय तो यह साधकोँको

धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्ष- चारों पुरुषार्थोकौ

प्राप्ति करानेवाला होता है । पाँच हस्व अक्षरीको

आदिमे बीज बनाकर उनके द्वारा पाँच मूर्तियोंका

न्यास करे। यथा-" अं सूर्याय नमः। इं भास्कराय

नमः उं भानवे नमः। ए रवये नमः। ओं दिवाकराय

नमः दीर्घस्वरोंके बीजसे हृदयादि अङ्गन्यास

करे। यथा--आं हृदयाय नमः।' इत्यादि। इस

प्रकार न्यास करके ध्यान करें--' भगवान्‌ सूर्य

ईशानकोणमें विराजमान हैं। उनकी अङ्गकान्ति

सिन्दूरके सदृश अरुण है । उनके आधे वामाङ्गे

उनकी प्राणवल्लभा विराज रही है '॥ १२-१३२॥

(* श्रीविद्यार्णव-तन्त्र'में मार्तण्डभैरव-बीजको

ही दीर्घं स्वरसे युक्त करके उनके द्वारा हृदयादि-

न्यासका विधान किया गया है। यथा--'हणं

हृदयाय नमः।' 'हथ्ीं शिरसे स्वाहा।' इत्यादि।)

फिर ईशानकोणे कृतान्तके लिये निर्माल्य और

चण्डके लिये दीप्ततेज ( दीपज्योति) अर्पित करे।

रोचना, कुङ्कुम, जल, रक्त चन्दन, अक्षत, अङ्कुर,

तिल तथा राई और जपाके फूल अर्घ्वपात्रमे डाले।

फिर उस अर्घ्यपात्रको सिरर रखकर दोनों घुटने

धरतीपर टिका दे और सुर्यदेवको अर्घ्यं अर्पित

करे। अपने मन्त्रसे अभिमन्त्रित नौ कलशॉद्वारा

ग्रहोका पूजन करके ग्रहादिकी शान्तिके लिये

शान्ति-कलशके जलसे सान एवं सूर्यमन्त्रका जप

करनेसे मनुष्य सब कुछ पा सकता है । (एक सौ

अड़तालीसवें अध्याये कथित) ' संग्रामविजय-

मन्त्र "मँ बीजपोषक बिन्दुयुक्त अग्नि -रकार अर्थात्‌

“र₹' जोड़कर उस सम्पूर्ण मन्त्रका मूर्धासि लेकर

चरणपर्यन्त व्यापकन्यास करके मूलमन्त्रका, अर्थात्‌

उसके उच्वारणपूर्वक सूर्यदेवका ' आवाहनी' आदि

मुद्राओंके प्रदर्शनपूर्वक पूजन करे। तदनन्तर यथोक्त

अङ्गन्यास करके अपने-आपका रविके रूपें

चिन्तन करे। अर्थात्‌ मेरी आत्मा सूर्यस्वरूप है, ऐसी

भावना करे। मारण और स्तम्भनकर्ममें सूर्यदेवके

पीतवर्णका, अप्यायनमें थ्वेतवर्णका, शत्रुघातकी क्रियामें

कृष्णवर्णका तथा मोहनकर्ममें इन्द्रधनुषके समान

वर्णका चिन्तन करे। जो सूर्यदेवके अभिषेक,जप,

ध्यान, पूजा और होमकर्ममें सदा तत्पर रहता है,

यह तेजस्वी, अजेय तथा श्रीसम्पन होता है और

युद्धम विजय पाता है। ताम्बूल आदिमे उक्त मन्त्रका

न्यास करके जपपूर्वक उसमें खसका इत्र डाले तथा

अपने हाथमें भी “संग्राम-विजय' के बीजोंका

न्यास करके उस हाथसे किसीको वह ताम्बूल

अर्पण करें, अथवा उस हाथसे किसीका स्पर्श कर

वेणुबीज, जौ, अगहनी, धानका चावल, साबाँ, | ले तो बह उसके वशमें हो जाता है॥ १४--२२॥

“इस ग्रकार आदि आग्रेय महाएुराणमें “गणपति तथा सूर्यकी अर्थाका कथन” नामक

तीन सौ एकवां अध्याय पूरा हआ # ३०९१४

व 5०

१. 'शारदातिलक ' में बिप्बबोज * हिं" बताया गया है । उसका उद्धार यों किया गवा है -' यान्तं दहकनेत्रेन्द्सहित तदुदीस्तिम्‌! ( १४। १७)

२. सूर्यादि पाँच सूर्तियोंका उ्तेख ' शास्दातिलक ' में है ।

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