हो जाते हैं और वह ज्वरग्रस्त रहता है। इसके | बालकको पूर्ववत् ज्ञान आदि कर्म कराये।
निमित्त पाँच दिनतक पूरी, मालपूए, दधि और
अनकी बलि देनी चाहिये। बालक का निम्बपत्रोंसे
धूपन और कूटका अनुलेपन करे। ग्यारहवें वर्षमें
कुमारको “देवदूती' नामकी ग्रही ग्रहण करती है।
इससे वह कठोर वचन बोलता है। 'देवदूती 'के
उद्देश्यसे पूर्ववत् बलिदान और लेपादिक करे।
बारहवें वर्षमें बलिका"से आक्रान्त बालक धास-
रोगसे युक्त होता है। इसके निमित्त भी पूर्वोक्त
विधिसे बलि एवं लेपादि करे। तेरहवें वर्षमें
"वायवी ' ग्रहीका आक्रमण होता है । इससे पीड़ित
कुमार मुखरोग तथा अद्भशैथिल्यसे युक्त होता है ।
वायवीको अनन, गन्ध, माल्य आदिकी बलि दे
और बालकको पञ्चपत्रसे स्नान करावे। राई और
निम्बपत्रोंसे धूपित करे। चौदहवें वर्षमें 'यक्षिणी '
बालकपर अधिकार करती है। इससे वह शूल,
ज्वर, दाह आदिसे पीड़ित होता है। यक्षिणी के
उद्देश्यसे पूर्वोक्त विविध भक्ष्य-पदार्थोंकी बलि
विहित है। इसकी शान्तिके लिये पूर्ववत् स्नान
आदि भी करने चाहिये । पंद्रहवें वर्षमे बालकको
*मुण्डिका' ग्रहीसे कष्ट प्राप्त होता है। उससे पीड़ित
बालकके सदा रक्तपात होता रहता है। इसकी
चिकित्सा नहीं करनी चाहिये॥ ३९--४७॥
सोलहवीं 'वानरी' नामकी ग्रही है। इससे
पीड़ित नवयुवक भूमिपर गिरता है और सदा
निद्रा तथा ज्वरसे पीड़ित रहता है। वानरीको
तीन दिनतक पायस आदिकी बलि दे एवं
सत्रहवें वर्षमें 'गन्धवती' नामकी ग्रही आक्रमण
करती है। इससे ग्रस्त बालकके शरीरमें उद्वेग
बना रहता है और वह जोर-जोरसे रोता है।
इस ग्रहीको कुल्माष आदिकी बलि दे और
पूर्ववत् स्नान, धूपन तथा लेपन आदि कर्म
करे। दिनकी स्वामिनी ग्रही ' पूतना" कही जाती
है ओर वर्ष-स्वामिनी * सुकुमारी ' ॥ ४८--५०॥
ॐ नमः सर्वमातृभ्यो बालपीडासंयोगं भुख
भुञ्ज चुट चुट स्फोटय स्फोटय स्फुर स्फुर गृह
गृह्यक्रन्दयाऽऽक्रन्दय एवं सिद्धरूपो ज्ञापयति।
हर हर निर्दोषं कुरु कुरु बालिकां बालं स्त्रियं
पुरुषं वा सर्वग्रहाणामुपक्रमात्। चामुण्डे नमो
देखी हूं इ हों अपसर अपसर दुहान हू तद्यथा
गच्छन्तु गृह्यकाः, अन्यत्र रुद्रो
ज्ञापयति ॥ ५१-५२ ॥
-इस सर्वकामप्रद मन्त्रका बालग्रहोंके शान्त्यर्थं
प्रयोग करे॥५३॥
ॐ नमो भगवति चामुण्डे मुञ्च मुञ्च बालं
बालिकां वा बलिं गृहण गृह जय जय वस
बस॥ ५६॥
--इस रक्षाकारी मन्तरका सर्वत्र बलिदानकर्ममें
पाठ किया जाता है। ब्रह्मा, विष्णु, शिव,
कार्तिकेय, पार्वती, लक्ष्मी एवं मातृकागण ज्वर
तथा दाहसे पीड़ित इस कुमारको छोड़ दें और
इसकी भी रक्षा करें। (इस मन्त्रसे भी बालग्रहजनित
पीड़ाका निवारण होता है।) ॥ ५५॥
इस गकार आदि आग्रेय महापुराणमें “बालादिग्रहहर कालतन्व-कथत ' नामक
दो सौ निन्यानवे अध्याय पूरा हुआ॥# २९९॥
तीन सौवाँ अध्याय
ग्रहबाधा एवं रोगोंको हरनेवाले मन्त्र तथा ओषध आदिका कथन
अग्निदेव कहते हैं--वसिष्ठ ! अब मैं ग्रहोंके | ग्रहौको शान्त करनेवाले हैं। हर्ष, इच्छा, भय और
उपहार और मन्त्र आदिका वर्णन करूँगा, जो | शोकादिसे, प्रकृतिके विरुद्ध तथा अपवित्र भोजनसे