आदि प्राणियोंमें पाया जाता है एवं ल्
*स्थावर' विष, जिसके अन्तर्गत शृङ्गी (सिंगिया)
आदि विषभेद हैं॥ १-२॥
` शान्तस्वरसे युक्त ब्रह्मा (क्षौ), लोहित (हीं)
तारक (ॐ ) ओर शिव (हौ )- यह चार अक्षका
वियति-सम्बन्धी नाममन्त्र है*। इसे शब्दमय
तार्यं (गरुड) माना गया है ॥ ३-४॥
*ॐ ज्वल महामते हृदयाय नमः, गरुड विशाल
शिरसे स्वाहा, गरुड शिखायै वषट्, गरुडविषभञ्जन
प्रभेदन प्रभेदन वित्रासय वित्रासय विमर्दय विमर्दय
कवचाय हुम्, उग्ररूपधारक सर्वभयंकर भीषय
भीषय सर्वं दह दह भस्मीकुरु कुरु स्वाहा,
नेत्रत्रयाय वौषट्) अप्रतिहतशासनं वं हूं फर्
अस्त्राय फट् ।'
मातृकामय कमल बनावे। उसके आठों
दिशाओंमें आठ दल हों । पूर्वादि दलोंमें दो-दोके
क्रमसे समस्त स्वरवर्णोको लिखे । कवर्गादि सात
वर्गोंक अन्तिम दो-दो अक्षरोंका भी
दलमें उल्लेख करे। उस कमलके केसरभागको
वर्गके आदि अक्षरोंसे अवरुद्ध करे तथा कर्णिकामें
अग्रिबीज 'रं' लिखे। मन्त्रका साधक उस कमलको
हृदयस्थ करके बायें हाथकी हथेलीपर उसका
चिन्तन करे। अङ्गु आदिमे वियति-मन्त्रके वर्णोका
न्यास करे और उनके द्वारा भेदित कलाओंका भी
चिन्तन करे। तदनन्तर चौकोर * भू-पुर' नामक
मण्डल बनावे, जो पीले रंगका हो और चारों
ओरसे वज़द्वारा चिह्नित हो। यह मण्डल इनद्रदेवताका
होता है। अर्धचन्द्राकार वृत्त जलदेवता-सम्बन्धी
है। कमलका आधा भाग शुक्लवर्णका है । उसके
देवता वरुण हैं। फिर स्वस्तिक-चिहसे युक्त
त्रिकोणाकार तेजोमय वहिदेवताके मण्डलका चिन्तन
करे । वायुदेवताका मण्डल बिन्दुयुक्त एवं वृत्ताकार
है। वह कृष्णमालासे सुशोभित है, ऐसा चिन्तन
करे॥ ५--८॥
ये चार भूत अज्जुछ, तर्जनी, मध्यमा और
अनामिका-इन चार अँगुलियोंके मध्यपवॉमें
स्थित अपने निवासस्थानोंमें विराजमान हैं और
सुवर्णमय नागवाहनसे इनके वासस्थान आवेष्टित
हैं। इस प्रकार चिन्तनपूर्वक क्रमशः पृथ्वी आदि
तत्त्वोंका आदिके मध्यपर्वमें न्यास करे।
साथ ही -मन्त्रके चार वर्णोको भी क्रमशः
उन्होंमें विन्यस्त करे। इन वर्णोंकी कान्ति उनके
सुन्दर मण्डलोंके समान है। इस प्रकार न्यास
कटनेके पश्चात् रूपरहित शब्दतन्मात्रमय शिवदेवताके
आकाशतत्त्वका कनिष्ठाके मध्यपर्वमें चिन्तन करके
उसके भीतर बेदमन्त्रके प्रथम अक्षरका न्यास
करे। पूर्वोक्त नागोंके नामके आदि अक्षरोंका
उनके अपने मण्डलोंमें न्यास करे। पृथ्वी आदि
भूतोंके आदि अक्षरोंका अङ्गुष्ठ आदि अँगुलियोंके
अन्तिम पर्वोपर न्यास करे तथा विद्वान् पुरुष
गन्धतन्मात्रादिके गन्धादि गुणसम्बन्धी अक्षरोंका
पाँचों अँगुलियोमें न्यास करे ॥ ९--१२॥
इस प्रकार न्यास-ध्यानपूर्वक तार्क्ष्य-मन्त्रसे
रोगीके हाथका स्यर्शमात्र करके मन्त्रज्ञ विद्वान्
उसके स्थावर-जंगम दोनों प्रकारके विषोंका नाश
कर देता है। विद्वान् पुरुष पृथ्वीमण्डल आदिमे
विन्यस्त वियति-मन््रके चारों वर्णोका अपनी श्रेष्ठ
दो अँगुलियोंद्वारा शरीरके नाभिस्थानोँ और पर्वोभिं
न्यास करें। तदनन्तर गरुडके स्वरूपका इस
प्रकार ध्यान करे--' पक्षिराज गरुड दोनों घुटनोंतक
सुनहरी आभासे सुशोभित हैं। घुटनोंसे लेकर
नाभितक उनकी अड्भकान्ति बर्फके समान सफेद
है। वहाँसे कण्ठतक वे कुङ्कुमके समान अरुण
प्रतीत होते हैं और कण्ठसे केशपर्यन्त उनकी
* इन चारों अक्षरंका उद्धार 'तन्त्ाभिधानकोष 'के अनुसार किया गया है।