ॐ लं नमः वापकपोले। ॐ एं नमः, ऊध्वि ।
ॐ> ऐं नमः, अधरोष्ठे। ॐ ओं नमः, ऊर्घ्वदन्तपड्ौ।
ॐ ओं नमः, अधोदन्तपङ्कौ । ॐ अं नमः, मूर्धि ।
ॐ अः नमः, मुखवृत्ते। ॐ कं नमः,
दक्षिणबाहुमूले। ॐ ख॑ नमः, दश्चिणकू्पर ।
ॐ गं नमः, दक्षिणमणिबन्धे । ॐ घं नमः,
दक्षिणहस्ताडुलिमूले। ॐ ऊ नमः,
दक्षिणहस्ताडुल्यग्रे। ॐ चं नमः, वामबाहुमूले ।
ॐ छं नमः, वामकू्परे। ॐ जं नमः,
वापममणिबन्धे । ॐ झ॑ नमः वामहस्ताडुलिमूले
ॐ जं नमः, वामहस्ताडुल्यग्रे। ॐ टं नमः,
दक्षिणपादमूले। ॐ ठं नपः, दक्षिणजानुनि । ॐ
ङं नमः, दक्षिणगुल्फे। ॐ ढं नमः,
दक्षिणपादाडुलिमूले। ॐ णं नमः,
दक्षिणपादाङ्ुल्यग्र । ॐ तं नमः, वामपादमूले।
ॐ थं नमः, वामजानुनि । ॐ दं नमः, वामगुल्फे ।
ॐ धं नमः, वामपादाद्भुलिमूले । ॐ नं नमः,
वामपादाडुल्यग्रे। ॐ पं नमः, दक्षिण पाश्च । ॐ
फं नमः, वामपाश्चं। ॐ बं नपः, पृष्ठे। ॐ भं नमः,
नाभौ । ॐ मं नमः, उदरे । ॐ यं त्वगात्मने नमः,
हृदि! ॐ रं असृगात्मने नमः, दक्षांसे। ॐ लं
मांसात्मने नमः, ककुदि। ॐ वं मेदात्मने नमः,
वामांसे। ॐ शं अस्थ्यात्मने नमः, हदयादि-
दश्चहस्तान्तम्। ॐ घं मग्जात्मने नमः, हृदयादि-
वामहस्तान्तम्। ॐ सं शुक्रात्मने नमः, हदयादि-
दक्षपादान्तम्। ॐ हं आत्मने नमः, हदयादि-
वामपादान्तम्। ॐ लं परमात्मने नमः, जरे । ॐ
क्षं प्राणात्मने नमः, मुखे।' इस प्रकार आदियें
"प्रणव ' ओर अन्ते "नमः ' पद जोड़कर लिपी धर्यों -
मातृकेशवरोका न्यास किया जाता है ॥ ३७--४०॥
श्रीकण्ठ, अनन्त, सूक्ष्म, त्रिमूर्ति, अमरेश्वर,
अर्धीश, भारभूति, तिथीश, स्थाणुक, हर, झिण्टीश,
भौतिक, सद्योजात, अनुग्रहेश्वर्, अक्रूर तथा
महासेन - ये सोलह ' स्वर-मूर्तिदेवता' हैं। क्रोधीश,
चण्डीश, पञ्चान्तक, शिवोत्तम, एकरूद्र, कुर्म,
एकनेत्र, चतुरानन, अजेश, सर्वेश, सोमेश, लाङ्गलि,
दारुक, अर्धनारीश्वर, उमाकान्त, आषाढी, दण्डी
अद्रि, मीन, मेष, लोहित, शिखी, छगलाण्ड,
द्विरण्ड, महाकाल, कपाली, भुजङ्गेश, पिनाकी,
खड्गीश, बक, श्वेत, भृगु, नकुली, शिव
तथा संवर्तक--ये “व्यञ्जन -मूर्तिदेवता' माने गये
हैं॥ ४१--४६॥ ॥
उपर्युक्त श्रीकण्ठ आदि रुद्रॉका उनकी
शक्तियोंसहित क्रमशः न्यास करे। ( श्रीविद्यार्णव-
तन्त्रमें इनकी शक्तियोंके नाम इस प्रकार दिये गये
हैं--पूर्णोदरी, विरजा, शाल्मली, लोलाक्षी, वर्तुलाक्षी,
दीर्घघोणा, सुदीर्घमुखी, गोमुखी, दीर्घजिद्ना,
कुण्डोदरी, ऊर्ध्वकेशी, विकृतमुखी, ज्वालामुखी,
उल्कामुखी, श्रामुखी तथा विद्यामुखी-ये रुद्रोंकी
*स्वर-शक्तियाँ' हैं। महाकाली, महासरस्वती,
सर्वसिद्धि, गौरी, त्रैलोक्यविद्या, मन्त्रशक्ति,
आत्मशक्ति, भूतमाता, लम्बोदरी, द्राविणी, नागरी,
खेचरी, मञ्जरी, रूपिणी, वीरिणी, काकोदरी, पूतना
भद्रकाली, योगिनी, शङ्खिनी, गिनी, कालरात्रि,
कूर्दिनी, कपर्दिनी, वश्रिका, जया, सुमुखी, रेवती,
माधवी, वारुणी, वायवी, रक्षोविदारिणी, सहजा,
लक्ष्मी, व्यापिनी ओर महामाया -ये ' व्यञ्जनस्वरूपा
रुद्रशक्तियाँ' कही गयी है ।)
इनके न्यासकी विधि इस प्रकार है-"हसौं
अं श्रीकण्ठाय पूर्णोदर्य नमः। हसं आं अनन्ताय
विरजायै नमः।' इत्यादि। इसी तरह अन्य
स्वरशक्ति्योका न्यास करना चाहिये। व्यज्जन-
शक्तियोकि न्यासके लिये यही विधि है।
यथा--'हसौं कं क्रोधीशाय महाकाल्ये नमः।
हसौ खं चण्डीशाय महासरस्वत्ये॑नमः।'
इत्यादि । साधकको चाहिये कि उदयादि अब्गौका
भी न्यास करे; क्योकि सम्पूर्णं मन्त्र साङ्ग
होनेपर ही सिद्धिदायक होते हैं। इल्लेखाको
व्योम-बौजसे युक्त करके इन अड्जोंका न्यास
करना चाहिये! हदयादि अङ्ग मन्त्रौको अन्तमें