Home
← पिछला
अगला →

चाहिये। हड्डी आदि टूटनेपर लवणयुक्त प्रियङ्का

लेप करना चाहिये। तैल वातरोगका हरण करता

है। पित्तरोगमें तैलमें पकायी हुई मुलहठी, कफरोगरमें

मधुसहित त्रिकटु ( सोँठ, मिर्च और पीपल) तथा

रक्तविकारमें मजबूत नखोंका भस्म हितकर है।

भग्रक्षतमें तैल एवं घृतमें पकाया हुआ हरताल दे।

उडद, तिल, गेहूँ, दुग्ध, जल और घृत--इनका

लवणयुक्त पिण्ड गोवत्सोंके लिये पुष्टिप्रद है।

विषाणी बल प्रदान करनेवाली है। ग्रहबाधाके

विनाशके लिये धूपका प्रयोग करना चाहिये।

देवदार, वचा, जटामांसी, गुग्गुल, हिंगु और

सर्थप--इनकी धूप गौ ओके ग्रहजनित रोगोंका नाश

करनेमें हितकर है। इस धूपसे धूपित करके गौओंके

गलेमें घण्टा बाँधना चाहिये। असगन्ध और तिलोंके

साथ नवनीतका भक्षण करानेसे गौ दुग्धवती होती

है। जो वृष घरमें मदोन्मत्त हो जाता है, उसके लिये

हिगुं परम रसायन है॥ २३--३५॥

पञ्चमी तिथिको सदा शान्तिके निमित्त गोमयपर

भगवान्‌ लक्ष्मी-नारायणका पूजन करे । यह ' अपरा

शान्ति" कही गयी है । आश्चिनके शुक्लपक्षकी

सूर्य, अग्नि और लक्ष्मीका घृतसे पूजन

करे। दही भलीभाँति खाकर गोपूजन करके

अग्रिकी प्रदक्षिणा करे। गृहके बहिर्भागमें गीत

और वाद्यकी ध्वनिके साथ वृषभयुद्धका आयोजन

करे। गौओंको लवण और ब्राह्मणोंकों दक्षिणा

दे। मकरसंक्रान्ति आदि नैमित्तिक पर्वोपर भी

लक्ष्मीसहित श्रीविष्णुको भूमिस्थ कमलके मध्यमे

और पूर्वं आदि दिशाओमिं कमल-केसरपर

देवताओंकी पूजा करे। कमलके बहिर्भागमें मड्रलमय

ब्रह्मा, सूर्य, बहुरूप, बलि, आकाश, विश्चरूपका

तथा ऋद्धि, सिद्धि, शान्ति और रोहिणी आदि

दिग्धेनु, चन्द्रमा ओर शिवका कृशर (खिचड़ी )-

से पूजन करे । दिकपार्लोँकौ कलशस्थ पद्मपत्रपर

अर्चना करे। फिर अग्रिमें सर्षप, अक्षत, तण्डुले

और खैर-वृक्षकी समिधाओंका हवन करे । ब्राह्मणको

सौ-सौ भर सुवर्णं और करस्य आदि धातु दान

करे। फिर क्षीरसंयुक्त गौओंकी पूजा करके उन्हें

शान्तिके निमित्त छोड़े॥ ३६--४३॥

अग्निदेव कहते हैं-- वसिष्ट ! शालिहोत्र सुक्रतको

"अश्वायुर्ेद' ओर पालकाप्यने अ्गराजको

पूर्णिमाको श्रीहरिका पूजन करे । श्रीविष्णु, रुदर, | 'गवायुर्वेद'का उपदेश किया था॥ ४४॥

इस प्रकार आदि आग्रेय महापुराणे “ गवायुर्वेदका कथन” नामक

दो सौ वानवेवां अध्याव पूरा हुआ॥ २९२॥

दो सौ तिरानबेवाँ अध्याय

मनत्र-विद्या

अग्निदेव कहते है-- वसिष्ठ! अब मैं भोग

और मोक्ष प्रदान करनेवाली मन्त्र-विद्याका वर्णन

करता हूँ, ध्यान देकर उसका श्रवण कीजिये।

द्विजत्रेष्ठ! बीसये अधिक अक्षरोवाले मन्त्र मालामन्त्र"

दससे अधिक अक्षरोंवाले ' मन्त्र" ओर दससे कम

अक्षरोंवाले 'बीजमन्त्र' कहे गये है । "मालामन्त्र"

वुद्धावस्था्े सिद्धिदायक होते हैं, "मन्त्र"

यौवनावस्थामें सिद्धिप्रद है । पाँच अक्षरसे अधिक

तथा दस अक्षरतकके मन्त्र बाल्यावस्थामें सिद्धि

प्रदान करते हैं*। अन्य मन्त्र अर्थात्‌ एकसे लेकर

* "प्हाकपिल ' पक्कात्रमें तथा ' श्रीविद्ार्णब-तन्त्र' में मालामन्योंकों ' युद्ध ^ मरन्नोको ' युवा ' तथा पाँचसे अधिक और दस अक्षरतकके

मन्ह्रोंको आल" जताया गया है । ' भैरवी तन्त्र ' में सात अक्षरवाले सन््रको " बाल ', आठ अक्षरवाले मन्त्रको 'कुमार', सोलह अक्षरोकि

← पिछला
अगला →