गज-चिकित्सक आदिको दक्षिणा देनी चाहिये।
तत्पश्चात् कालज्ञ विद्वान् गजराजपर आरूढ़ होकर
उसके कानमें निम्नाद्धित मन्त्र कहे। उस नागराजके
मृत्युकों प्राप्त होनेपर शान्ति करके दूसरे हाथीके
कानमें मन्त्रका जप करे-- ॥ ५ --१५॥
“महाराजने तुमको श्रीगज के पदपर नियुक्त
किया है। अबसे तुम इस राजाके लिये 'गजाग्रणी'
(गजोंके अगुआ) हो। ये नरेश आजसे गन्ध,
माल्य एवं उत्तम अक्षतोंद्वारा तुम्हारा पूजन करेंगे।
उनकी आज्ञासे प्रजाजन भी सदा तुम्हारा अर्चन
करेंगे। तुमको युद्धभूमि, मार्ग एवं गृहमें महाराजकी
सदा रक्षा करनी चाहिये। नागराज! तिर्यग्भाव
(टेढ़ापन )-को छोड़कर अपने दिव्यभावका स्मरण
करो। पूर्वकालमें देवासुर-संग्राममें देवताओंने
ऐरावतपुत्र श्रीमान् अरिष्ट नागको श्रीगज'का पद
प्रदान किया था। श्रीगजका वह सम्पूर्ण तेज
तुम्हारे शरीरमें प्रतिष्ठित है। नागेन्द्र! तुम्हारा
कल्याण हो तुम्हारा अन्तर्निहित दिव्यभावसम्पन
तेज उद्बुद्ध हो उठे। तुम रणाङ्गणमें राजाकी रक्षा
करो '”॥ १६--२० ॥
राजा पूर्वोक्त अभिषिक्त गजराजपर शुभ मुहूर्तमें
आरोहण करे। शस्त्रधारी श्रेष्ठ वीर उसका अनुगमन
करें। राजा हस्तिशालामें भूमिपर अद्धित कमलके
बहिर्भागमें दिक्पालोंका पूजन करे। केसरके स्थानपर
महाबली नागराज, भूदेवी ओर सरस्वतीका यजन
करे । मध्यभागमें गन्ध, पुष्प और चन्दनसे डिपण्डिमकी
पूजा एवं हवन करके ब्राह्मणोंकों रसपूर्ण कलश
प्रदान करे। पुनः गजाध्यक्ष, गजरक्षक और ज्यौतिषौका
सत्कार करे। तदनन्तर, डिपण्डिम गजाध्यक्षको
प्रदान करे। वह भी इसको बजावे। गजाध्यक्ष
नागगजके जघनप्रदेशपर आरूढ होकर शुभ एवं
गम्भीर स्वरम डिण्डिमवादन करे ॥ २१--२४॥
इस प्रकार आदि आघ्रेव महापुराणमें “गज - शान्तिका कथन” नामक
दो सौ इक्यानवेवां अध्याय पूरा हुआ॥ २९१॥
न
दो सौ बानबेवां अध्याय
गवायुर्वेद
धन्वन्तरि कहते है- सुश्रुत! राजाको गौओं
और ब्राह्मणोका पालन करना चाहिये। अब मैं
'गोशान्ति'का वर्णन करता हूँ। गौएँ पवित्र एवं
मङ्गलमयी हैं। गौओंमें सम्पूर्ण लोक प्रतिष्ठित है।
गौओंका गोबर और मूत्र अलक्ष्मी (दरिद्रता)-के
नाशका सर्वोत्तम साधन है। उनके शरीरको
खुजलाना, सींगोंकों सहलाना और उनको जल
पिलाना भी अलक्ष्मीका निवारण करनेवाला है।
गोमूत्र, गोबर, गोदुग्ध, दधि, घृत ओर कुशोदक--
यह ' षडङ्ग ' ( पञ्चगव्य) पीनेके लिये उत्कृष्ट वस्तु
तथा दुःस्वप्रों आदिका निवारण करनेवाला है।
गोरोचना विष और राक्षसोंको विनाश करती है।
गौ ओंको ग्रास देनेवाला स्वर्गको प्राप्त होता है।
जिसके घर्मँ गौएँ दुःखित होकर निवास करती
हैं, वह मनुष्य नरकगामी होता है । दूसरेकी गायको
ग्रास देनेवाला स्वर्गको ओर गोहितमें तत्पर
ब्रह्मलोकको प्राप्त होता है । गोदान, गो- माहात्म्य
कीर्तन और गोरक्षणसे मानव अपने कुलका उद्धार
कर देता है। यह पृथ्वी गौओकि श्वाससे पवित्र होती
है । उनके स्पर्शसे पापोंका क्षय होता है । एक दिन
गोमूत्र, गोमय, चृत, दूध, दधि ओर कुशका जल
एवं एकं दिन उपवास चाण्डालको भी शुद्ध कर