करे। जो घोड़ा कंधा कपाने लगे, उसे लगामसे
खींचकर खड़ा कर देना चाहिये ॥ ४८--५६॥
गोबर, नमक और गोमूत्रका क्राथ बनाकर
उसमें मिट्टी मिला दे और घोडेके शरीरपर उसका
लेप करे। यह मक्खौ आदिके काटनेकौ पीड़ा
तथा थकावटको दूर करनेवाला है । सवारको
चाहिये कि वह “भद्र' आदि जातिके घोड़ोंको
माँड दे। इससे सूक्ष्म कीट आदिके दंशनका कष्ट
दूर होता है। भूखके कारण घोड़ा उत्साहशून्य हो
जाता है, अतः माँड देना इसमें भी लाभदायक है।
घोड़ेको उतनी ही शिक्षा देनी चाहिये, जिससे वह
वशीभूत हो जाय। अधिक सवारीमें जोते जानेपर
घोड़े नष्ट हो जाते हैं। यदि सवारी ली ही न जाय
तो वे सिद्ध नहीं होते। उनके मुखको ऊपरकी
ओर रखते हुए ही उनपर सवारी करे। मुदरीको
स्थिर रखते हुए दोनों घुटनोंसे दबाकर अश्वकों
आगे बढ़ाना चाहिये। गोमूत्राकृति, वक्रता, वेणी,
पद्ममण्डल और मालिका--इन चिहोंसे युक्त अश्च
'पश्नोलूखलिक' कहे गये हैं। ये कार्यमें अत्यन्त
गर्वीले कहे गये हैं। इनके छः प्रकारके लक्षण
बताये जाते हैं--संक्षिप्त, विक्षिप्त, कुञ्चित, आश्चित,
वल्गित ओर अवल्गित। गलीमें या सड़कपर सौ
धनुषकी दूरीतक दौड़ानेपर 'भद्र' जातीय अश
सुसाध्य होता है । "मन्द ' अस्सी धनुषतक और
" दण्डैकमानस ' नन्वे धनुषतक चलाया जाय तो
साध्य होता है । 'मृगजद्भुघ' या मृगजातीय अश्च
संकर होता है; वह इन्टीके समन्वयके अनुसार
अस्सी या नन्वे धनुषकौ दूरीतक हॉँकनेपर
साध्य होता है ॥ ५७ -६३॥
शक्कर, मधु और लाजा (धानका लावा)
खानेवाला ब्राह्मणजातीय अश्च पवित्र एवं सुगन्धयुक्तं
होता है, क्षत्रिय-अश्व तेजस्वी होता है, वैश्य-अश्व
विनीत और बुद्धिमान् हुआ करता है और शुद्र-अश्व
अपवित्र, चञ्चल, मन्द, कुरूप, बुद्धिहीन और दुष्ट
होता है । लगामद्वारा पकड़ा जानेपर जो अश्च लार
गिराने लगे, उसे रस्सी और लगाम खोलकर पानीकी
धारासे नहलाना चाहिये । अब अश्वके लक्षण बताऊँगा,
जैसा कि शालिहोत्रने कहा था॥ ६४--६६॥
इस प्रकार आदि आग्रेय महापुराणमें ^अश्चवाहन-सार- वर्णन” नामक
दो सौ अठासीवाँ अध्याय पूरा हुआ॥ २८८ #
न
दो सौ नवासीवां अध्याय
अश्च-चिकित्सा
शालिहोत्र कहते हैं-- सुश्रुत ! अब मैं अशोक | जन्मसे ही बिना अण्डकोषका, दो ख़ुरोंवाला,
लक्षण एवं चिकित्साका वर्णन करता हूं । जो अश्च | शङ्गयुक्त, तीन रङ्गोवाला, व्याघ्रवर्ण, गर्दभवर्ण,
हीनदन्त, विषमदन्तयुक्त या बिना दाँतका, कराली | भस्मवर्ण, सुवर्णं या अग्रिवर्ण, ऊँचे ककुदवाला,
(दोसे अधिक दन्तपङ्क्तियोसे युक्त, कृष्णतालु, | श्वेतकुष्ठग्रस्त, कौवे जिसपर आक्रमण करते हों,
कृष्णवर्णकौ जिह्वासे युक्त, युग्मज (जुडवाँ पैदा), | जो खरसार * अथवा वानरके समान नेत्रोंवाला हो
* नकुलकृत अश्वशास्त्रमें खरसार' अश्वका वर्णन इस प्रकार है -
नगरे राष्ट्र निवसेद वस्व विनश्यत्यसौ राजा । खरसार: खरवर्णस्तु मण्डलैयों भवेत्तथा हतैः इ
“गर्दभके समान वर्णं एवं उसौके समान रंगवाले आवतोंसे युक्त अश्व " खरस्य" कहलाता है । ऐसा अश्च जिस रजके नगर या षट
निवास करता है, वह राजा नाशको प्राप्त होता है ।'