* अध्याय २८७ +
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जिस हाथीको कम्पन होता हो, उसको पीपल | करनेके लिये दिनके पूर्वभागे इन्द्रयव, हींग,
ओर मिर्च मिलाकर मोर, तीतर ओर बटेरके | धूपसरल, दोनों हल्दी और दारुहल्दीकी पिंडी
मांसके साथ भोजन करावे अतिसाररोगके शमनके | दे। हाथियोंके उत्तम भोजने साठी चावल,
लिये गजराजको नेत्रनाला, बेलका सूखा गृदा,
मध्यम भोजनमें जौ और गेहूँ एवं अधम भोजने
लोध, धायके फूल और मिश्रीकी पिंडी बनाकर | अन्य भक्ष्य-पदार्थ माने गये हैं। जौ और ईख
खिलावे। करग्रह (सूँडके रोग) -मे लवणयुक्त | हाथियोंका बल बढ़ानेवाले है तथा सुखा तृण
घृतका नस्य देना चाहिये । उत्कर्णक-रोगमें पीपल,
उनके धातुको प्रकुपित करनेवाला है। मदक्षीण
सोंठ, कालाजीरा और नागरमोथासे साधित यवागू | हाथीको दुग्ध पिलाना प्रशस्त है तथा दीपनीय
एवं वागाहीकंदका रस दे। दशमूल, कुलथी,
अम्लवेत और काकमाचीसे सिद्ध किया हुआ
तैल मिर्चके साथ प्रयोग करनेसे गलग्रह-रोगका
नाश होता है । मूत्रकृच्छू-रोगमें अष्टलवणयुक्त सुरा
एवं घृतका पान करावे अथवा खीरिके बीजोंका
क्राथ दे। हाथीको चर्मदोषमें नीम या अडूसेका
क्राथ पिलावे। कृमियुक्त कोष्ठकी शुद्धिके
लिये गोमूत्र और वायविडंग प्रशस्त हैं। सोंठ,
पीपल, मुनक्का और शर्करासे शृत जलका पान
्षतदोषका क्षय करनेवाला है तथा मांस-रस भी
लाभदायक है। अरुचिरोगमें सोंठ, मिर्च एवं
पिप्पलीयुक्त मूँग-भात प्रशंसित है। निशोध,
त्रिकटु, चित्रक, दन्ती, आक, पीपल, दुग्ध और
गजपीपल--इनसे सिद्ध किया हुआ सरह गुल्मरोगका
अपहरण करता है । इसी प्रकार ( गजचिकित्सक)
भेदन, द्रावण, अभ्यङ्ग, सहपान ओर अनुवासनके
द्वारा सभी प्रकारके विद्रधिरोर्गोका विनाश
करे ॥ ६--२१॥
हाथीके कदुरोगोंमें मुंगकौ दाल या मूँगके
साथ मुलहठी मिलावे और नेत्रबाला एवं बेलकी
छालका लेप करे। सभी प्रकारके शूलोंका शमन
द्रव्योंसे पकाया हुआ मांसरस भी लाभप्रद है।
गुग्गुल, गठिवन, करकोल्यादिगण और चन्दन--
इनका मधुके साथ प्रयोग करे। इससे पिण्डोट्रेक-
रोगका नाश होता है। कुटकी, मत्स्य, वायविडंग,
लवण, कोशातकी (झिमनी)-का दूध और हल्दी --
इनका धूप हाथियोंके लिये विजयप्रद है। पीपल
और चावल तथा तेल, माध्वीक (महुआ या
अ रससे निर्मित सुरा) तथा मधु-इनका
परिषेक दीपनीय माना गया है। गौरिया
चिड़िया और कबूतरकी बीर, गूलर, सुखा गोबर
एवं मदिरा -इनका मज्जन हाधिर्योको अत्यन्त
प्रिय है। हाथीके नेत्रोंको इससे अञ्जित करनेपर
वह संग्रामभूमिमें शत्रुओंको मसल डालता है।
नीलकमल, नागरमोथा और तगर--इनको चावलके
जलमें पीस ले। यह हाथियोंके नेत्रोंको परम
शान्ति प्रदान करता है। नख बढ़नेपर उनके
नख काटने चाहिये और प्रतिमास तैलका सेक
करना चाहिये। हाथियोंका शयन-स्थान सूखे
गोबर और धूलसे युक्त होना चाहिये। शरद् और
ग्रीष्म-ऋतुमें इनके लिये घृतका सेक उपयुक्त
है॥ २२--३३॥
इस प्रकार आदि आग्रेय महापुराणमें “गज- चिकित्साक्ा कथन” नामक
दो सौ सत्तासीवाँ अध्याय पूरा हुआ॥ २८७॥
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