* अध्याय २८४ *
कफ फू कफ कफ क ऋ ऋ कर कक ऊ।
एवं निशोथ, सैंधव लवण-इनका चूर्ण (या
क्राथ) भी शोथको शान्त करता है ॥ ३१--४०॥
निशोथ एवं गुड़के साथ त्रिफलाका क्राथ
विरेचन करनेवाला है। वच और मैनफलके
क्लाथका जल वमनकारक होता है। भृङ्गराजके
रसमें भाविते त्रिफला सौ पल, बायविडंग और
लोहचूर दस भाग एवं शतावरी, गिलोय और
चिचक पचीस पल ग्रहण करके उसका चूर्ण बना
ले। उस वर्णको मधु, घृत और तेलके साथ
चाटनेसे मनुष्य वलौ और पलितसे रहित होता
है। अर्थात् उसके मुँहपर झुर्रियाँ नहीं होतीं और
बाल नहीं पकते। इसके सिवा वह सम्पूर्ण रोगोंसे
मुक्त होकर सौ वर्षोतक जीवित रहता है। मधु
और शर्कराके साथ त्रिफलाका सेवन सर्वरोगनाशक
है। त्रिफला और पीपलका मिश्री, मधु और
घृतके साथ भक्षण करनेपर भी पूर्वोक्त सभी फल
या लाभ प्राप्त होते हैं। ह, चित्रक, सोंठ,
गिलोय और मुसलीका चूर्ण गुड़के साथ खानेपर
रोगोंका नाश होता है और तीन सौ वर्षोंकी आयु
प्राप्त होती है। जपा-पुष्पको धोडा मसलकर
जलमें मिला ले। उस चूर्णजलको थोडी-सी
मात्रामें तेलमें मिला देनेपर तैल घृताकार हो जाता
है। जलगोह* (बिल्ली)-की जरायु (गर्भकी
झिल्ली)-की धूप देनेसे चित्र दिखलायी नहीं
देता। फिर शहदकी धूप देनेसे पूर्ववत् दिखायी
देने लगता है। पाड्रकी जड़, कपूर, जोंक और
मेढकका तेल--इनकों पीसकर दोनों पैरोंमें
लगाकर मनुष्य जलते हुए अज्भारोंपर चल सकता
है। तृणोत्थापन (तृणोंकों आगमें ऊपर फेंकता-
उछालता हुआ) आश्चर्यजनक खेल दिखलाता
हुआ चल सकता है। विषोंका रोकना (अथवा
विष एवं ग्रह-निवारण), रोगका नाश एवं तुच्छ
क्रीडां कामनापरक हैं। इहलौकिक तथा
पारलौकिक दोनों सिद्धियोंके देनेवाले कर्मोंको
मैंने तुम्हें बतलाया है, जो छः कर्मासि युक्त हैं।
मन्त्र, ध्यान, ओषध, कथा, मुद्रा और यज्ञ-ये
छः जहाँ मुष्टि (भुजाके रूपसे सहायक) हैं, वह
कार्य धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्षरूप चतुर्वर्ग
फलको देनेवाला कर्म बताया गया। इसे जो
पढ़ेगा वह स्वर्गमें जायगा॥ ४१-५१॥
इस प्रकार आदि आग्रेय महापुराणमें “नानारोगहारौ ओषधियोंका वर्णन” नामक
दो सौ तिरासीयाँ अध्याय पूरा हुआ॥ २८३॥
दो सौ चौरासीवाँ अध्याय
मन्त्ररूप औषधोंका कथन
धन्वन्तरिजी कहते हैं--सुश्रुत! 'ओंकार'
आदि मन्त्र आयु देनेवाले तथा सब रोगोंकों
दूर करके आरोग्य प्रदान करनेवाले हैं। इतना
ही नहीं, देह छूटनेके पश्चात् वे स्वर्गकी भी
प्राप्ति करानेवाले हैं। “ऑकार' सबसे उत्कृष्ट
मन्त्र है। उसका जप करके मनुष्य अमर हो
जाता है--आत्माके अमरत्वका बोध प्राप्त करता
है, अथवा देवतारूप हो जाता है। गायत्री भी
उत्कृष्ट मन्त्र है। उसका जप करके मनुष्य
भोग और मोक्षका भागी होता है। "ॐ नमो
नारायणाय।'-- यह अष्टाक्षर-मन्त्र समस्त
मनोरथोंको पूर्णं करनेवाला है। ॐ नमो
भगवते वासुदेवाय ।'-- यह द्वादशाक्षर- मन्त्र सब
कुछ देनेवाला है । ' ॐ हूं विष्णवे नमः।'--
यह मन्त्र उत्तम ओषध है। इस मन्त्रका जप
करनेसे देवता और असुर श्रीसम्पन्न तथा नीरोग
* * श्ोतरविंडष्लो मार्जारो वृषदंशक आखुभाक् ।' (अमरकोष, सिंहादियर्ग)