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* अध्याय २७५ *

वशीभूत रहनेवाला था। उससे उसकी पन्न | पुनर्वसु ओर उनके पुत्र आहुक हुए। ये आहुकीके

शैव्याके गर्भसे विदर्भकी उत्पत्ति हुई। विदर्भके

कौशिक, लोमपाद और क्रथ नामक पुत्र हुए।

इनमें लोमपाद ज्येष्त थे। उनसे कृतिका जन्म

हुआ। कौशिकके पुत्रका नाम चिदि हुआ।

चिदिके वंशज राजा ' चैद्य 'के नामसे प्रसिद्ध हुए।

विदर्भपुत्र क्रथसे कुन्ति ओर कुन्तिसे धृष्टकका

जन्म हुआ। धृष्टकके पुत्र धृति और धृतिके विदूरथ

हुए। ये "दशाहं ' नामसे भी प्रसिद्ध थे। दशाहके

पुत्र व्योम और व्योमके पुत्र जीमूत कहे जाते हैं।

जीमूतके पुत्रका नाम विकल हुआ और उनके पुत्र

भीमरथ नामसे प्रसिद्ध हुए। भीमरथसे नवरथ

और नवरथसे हृढरथ हुए। दृद्रथसे शकुन्ति तथा

शकुन्तिसे करम्भ उत्पन्न हुए। करम्भसे देवरातका

जन्म हुआ। देबरातके पुत्र देवक्षेत्र कहलाये। देवक्षेत्रसे

मधु नामक पुत्र उत्पन्न हुआ और मधुसे द्रवरसने

जन्म ग्रहण किया । द्रवरसके पुरुहूत और पुरुहूतके

पुत्र जन्तु थे। जन्तुक पुत्रका नाम सात्वत था। ये

यदुवंशियोमे गुणवान्‌ राजा थे। सात्वतके भजमान,

वृष्णि, अन्धक तथा देवावृध -ये चार पुत्र हुए।

इन चारोकि वंश विख्यात हैँ । भजमानके बाह्य,

वृष्टि, कृमि ओर निमि नामक पुत्र हुए । देवावृधसे

बश्रुका जन्म हुआ। उनके विषयमे इस श्लोकका

गान किया जाता है -* हम जैसा दूरसे सुनते हैं,

वैसा ही निकटसे देखते भी है । बभ्रु मनुष्योंमें

श्रेष्ठ है ओर देवावृधं देवताओंके समान हैं।'

बश्रुके चार पुत्र हुए। वे सभी भगवान्‌ वासुदेवके

भक्तं थे। उनके नाम है - कुकुर, भजमान, शिनि

ओर कम्बलवर्हिष। कुकुरके धृष्णु नामक पुत्र

हुए। धृष्णुसे धृति नामवाले पुत्रकौ उत्पत्ति हुई।

धृतिसे कपोतरोमा और उनके पुत्र तित्तिरि हए।

तित्तिरिके पुत्र नर और उनके पुत्र आनकदुन्दुभि

नामसे विख्यात हुए। आनकटुन्दुभिकौ परम्परामें

गर्भसे उत्पन्न हुए थे। आहुकसे देवक और उग्रसेन

हुए। देवकसे देववान्‌, उपदेव, सहदेव और

देवरक्षित-ये चार पुत्र हुए। इनकी सात बहिनें

थीं, जिनका देवकने वसुदेवके साथ व्याह कर

दिया। उन सातोंके नाम हैं-देवकी, श्रुतदेवी,

मित्रदेवी, यशोधरा, श्रीदेवी, सत्यदेवी और सातवीं

सुरापी । उग्रसेनके नौ पुत्र हुए, जिनमें कंस ज्येष्ठ

था। शेष आठ पुत्रके नाम इस प्रकार हैं--

न्यग्रोध, सुनामा, कङ्क, राजा शङ्कु, सुतनु, राष्ट्रपाल,

युद्धमुष्टि और सुमुष्टिक। भजपानके पुत्र विदूरथ

हुए, जो रथियोंमें प्रधान थे। उनके पुत्र राजाधिदेव

और शुर नामसे विख्यात हुए। राजाधिदेवके दो

पुत्र हुए शोणश्च और श्वेतवाहन। शोणाधके

शमी और शत्रुजित्‌ आदि पाँच पुत्र हुए। शमीके

पुत्र प्रतिक्षेत्र, प्रतिक्षेत्रे भोज और भोजके इृदिक

हुए। हृदिकके दस पुत्र थे, जिनमें कृतवर्मा,

शतधन्वा, देवाह और भीषण आदि प्रधान हैं।

देवाहसे कम्बलबर्हि ओर कम्बलवर्हिसे असमौजाका

जन्म हुआ। असमौजाके सुदं, सुवास और धृष्ट

नामक पुत्र हुए। धृष्टकी दो पत्नियाँ थी - गान्धारी

और माद्री। इनमें गान्धारीसे सुमित्रका जन्म

हुआ और माद्रीने युधाजित्‌को उत्पन किया।

धृष्टसे अनमित्र और शिनिका भी जन्म हुआ।

शिनिसे देवमीदुष उत्पन्न हुए। अनमित्रके पुत्र

निघ्न और निघ्नके प्रसेन तथा सत्राजित्‌

हए । इनमें प्रसेनके भाई सत्राजित्को सूर्यसे

स्यमन्तकमणि प्राप्त हुई थी, जिसे लेकर प्रसेन

जंगलमें मृगयाके लिये विचर रहे थे। उन्हें एक

सिंहने मारकर वह मणि ले ली । तत्पश्चात्‌ जाम्बवानने

उस सिंहको मार डाला (और मणिको अपने

अधिकारमें कर लिया) । इसके बाद भगवान्‌

श्रीकृष्णने जाम्बवान्‌को युद्धमेँ परास्त किया और

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