पुत्र हुए। उनके नाम थे-यति, ययाति, उत्तम,
उद्धव, पञ्चक, शर्याति और मेघपालक। यति
कुमारावस्थामें होनेपर भी भगवान् विष्णुका
ध्यान करके उनके स्वरूपको प्राप्त हो गये।
उस समय शुक्राचार्यकी कन्या देवयानी तथा
उत्पन हुए। देवयानीने वदु और तुर्वसुको जन्म
दिया और वृषपर्वाकी पुत्री शर्मिष्ठाने द्यु, अनु
और पूरु--ये तीन पुत्र उत्पन्न किये। इनमेंसे यदु
और पूरु-ये दो ही सोमवंशका विस्तार करनेवाले
वृषपर्वाकी पुत्री शर्मिष्टा-ये दो राजा ययातिकी | हुए॥ १३--२३ ॥
इस प्रकार आदि आग्रेय महापुराणमें 'सोमक्शका वर्णन” नामक
दो सौ चौहत्तरवाँ अध्याय पूरा हुआ॥ २७४॥
न 35 7 ~
दो सौ पचहत्तरवाँ अध्याय
यदुवंशका वर्णन
अग्निदेव कहते हैं-- वसिष्ठ ! यदुके पाँच पुत्र | देशके महाराज थे। जयध्वजसे तालजड्डूका जन्म
थे -नीलञ्जिक, रघु, क्रोौष्ठ, शतजित् और सहस्नजित्।
इनमें सहस्रजित् सबसे ज्येष्ठ थे। शतजित॒के हैहय,
रेणुहय और हय--ये तीन पुत्र हुए। हैहयके
धर्मनेत्र और धर्मनेत्रके पुत्र संहत हुए। संहतके
पुत्र महिमा तथा महिमाके भद्रसेन थे। भद्रसेनके
दुर्गम और दुर्गमसे कनकका जन्म हुआ। कनकसे
कृतवीर्य, कृताग्नि, करवीरक और चौथे कृतौजा
नामक पुत्रकी उत्पत्ति हुई । कृतवीर्यसे अर्जुन हुए ।
अर्जुने तपस्या की, इससे प्रसन होकर भगवान्
दत्तात्रेयने उन्हें सातों द्वीपोँकी पृथ्वीका आधिपत्य,
एक हजार भुजाएँ ओर संग्राममे अजेयताका वरदान
दिया। साथ ही यह भी कहा -' अधर्मे प्रवृत्त
होनेपर भगवान् विष्णुके (अवतार श्रीपरशुरामजीके)
हाथसे तुम्हारी मृत्यु निश्चित है।' राजा अर्जुने
दस हजार यज्ञोंका अनुष्ठन किया । उनके स्मरणमात्रसे
राष्ट्रमें किसीके धनका नाश नहीं होता था। यज्ञ,
दान, तपस्या, पराक्रम और शास्त्रज्ञानके द्वारा
कोई भी राजा कृतवीर्यकुमार अर्जुनकी गतिको
नहीं पा सकता। कार्तवीर्य अर्जुनके सौ पुत्र थे,
उनमें पाँच प्रधान थे। उनके नाम हैं--शूरसेन,
शुर, धृशेक्त, कृष्ण और जयध्वज | जयध्वज अवन्ती-
हुआ और तालजड्डूसे अनेक पुत्र उत्पन्न हुए, जो
तालजहूके ही नामसे प्रसिद्ध थे। हैहयवंशी क्षत्रियोंकि
पाँच कुल हैं-- भोज, अवन्ति, वीतिहोत्र, स्वयंजात
और शौण्डिकेय। वीतिहोत्रसे अनन्तकी उत्पत्ति
हुई और अनन्तसे दुर्जय नामक राजाका जन्म
हुआ॥ १--११॥
अब क्रोष्टुके वंशका वर्णन करूँगा, जहाँ
साक्षात् भगवान् विष्णुने अवतार धारण किया था।
क्रोष्ठसे वृजिनीवान् ओर वृजिनीवान्से स्वाहाका
जन्म हुआ। स्वाहाके पुत्र रुषदगु और उनके पुत्र
चित्ररथ थे। चित्ररथसे शशबिन्दु उत्पन्न हुए,
जो चक्रवर्ती राजा थे। वे सदा भगवान् विष्णुके
भजन्मे ही लगे रहते थे। शशबिन्दुके दस हजार
पुत्र थे। वे सब-के-सब बुद्धिमान्, सुन्दर, अधिक
धनवान् ओर अत्यन्त तेजस्वी थे; उनमें पृथुश्रवा
ज्येष्ठ थे। उनके पुत्रका नाम सुयज्ञ था। सुयज्चके
पुत्र उशना और उशनाके तितिश्चु हुए। तितिक्षुसे
मरुत्त और मरुत्तसे कम्बलवर्हिष (जिनका दूसरा
नाम रुक्मकवच था) हुए । रुक्मकवचसे रुवमेषु,
पृथुरुक्मक, हवि, ज्यामघ और पापघ्न आदि पचास
पुत्र उत्पन्न हुए। इनमें ज्यामघ अपनी स्त्रीके