कुवलाश्च नामक राजाका जन्म हुआ। इन्होंने
पूर्वकालमें धुन्धु नामसे प्रसिद्ध दैत्यका वध किया
था, अत: उसीके नामपर ये ' धुन्धुमार ' कहलाये।
धुन्धुमारसे तीन पुत्र हुए। वे तीनों ही राजा थे।
उनके नाम थे-दृढाश्च, दण्ड और कपिल। दृढाश्वसे
हर्यश्च और प्रमोदकने जन्म ग्रहण किया। हर्यश्वसे
निकुम्भ और निकुम्भसे संहताश्रकी उत्पत्ति हुई।
संहताश्चके दो पुत्र हुए--अकृशाश्च तथा रणाश्।
रणाश्चके पुत्र युवनाश्च और युवनाश्वके पुत्र राजा
मांधाता हुए। मांधाताके भी दो पुत्र हुए, जिनमें
एकका नाम पुरुकुत्स था और दूसरेका नाम
मुचुकुन्द ॥ १७--२४॥
पुरुकुत्ससे त्रसदस्युका जन्म हुआ। वे नर्मदाके
गर्भसे उत्पन्न हुए थे। उनका दूसरा नाम ' सम्भूत '
भी था। सम्भूतके सुधन्वा और सुधन्वाके पुत्र
त्रिधन्वा हुए। त्रिधन्वाके तरुण और तरुणके पुत्र
सत्यव्रत थे । सत्यत्रतसे सत्यरथ हुए, जिनके पुत्र
हरिश्वन्द्र थे। हरिशन्द्रसे रोहिताश्चका जन्म हुआ,
रोहिताश्चसे वृक हुए, वृकसे बाहु और बाहुसे
सगरकी उत्पत्ति हुई । सगरकी प्यारी पत्नी प्रभा
थी, जो प्रसन हुए ओर्व मुनिकी कृपासे साठ
हजार पुत्रोंकी जननी हुई तथा उनकी दूसरी पत्नी
भानुमतीने राजासे एक ही पुत्रको उत्पन्न किया,
जिसका नाम असमझस था। सगरके साठ हजार
पुत्र पृथ्वी खोदते समय भगवान् कपिलके क्रोधसे
भस्म हो गये। असमञ्ञसके पुत्र अंशुमान् ओर
अंशुमान्के दिलीप हुए । दिलीपसे भगीरथका जन्म
हुआ, जिन्होनि गङ्गाको पृथ्वीपर उतारा था। भगीरथसे
नाभाग और नाभागसे अम्बरीष हुए । अम्बरीषके
सिन्धुद्वीप और सिन्धुद्रीपके पुत्र शतायु हए । श्रुतायुके
ऋतुपणं ओर ऋतुपर्णके पुत्र कल्माषपाद थे।
कल्माषपादसे सर्वकर्मा और सर्वकर्मासि अनरण्य
हुए । अनरण्यके निघ्न और निघ्नके पुत्र दिलीप
हुए। राजा दिलीपके रघु और रघुके पुत्र अज थे।
अजसे दशरथका जन्म हुआ। दशरथके चार पुत्र
हृए- वे सभी भगवान् नारायणके स्वरूप थे। उन
सबमें ज्येष्ठ श्रीरामचन्द्रजी थे। उन्होंने रावणका
वध किया था। रघुनाथजी अयोध्याके सर्वश्रेष्ठ
राजा हुए। महर्षि वाल्मीकिने नारदजीके मुँहसे
उनका प्रभाव सुनकर (रामायणके नामसे) उनके
चरित्रका वर्णन किया था। श्रीरामचन्द्रजीके दो
पुत्र हुए, जो कुलकी कीर्ति बढ़ानेवाले थे। वे
सीताजीके गर्भसे उत्पन्न होकर कुश और लवके
नामसे प्रसिद्ध हुए। कुशसे अतिथिका जन्म हुआ।
अतिथिके पुत्र निषध हुए। निषधसे नलकी उत्पत्ति
हुई (ये सुप्रसिद्ध राजा दमयन्तीपति नलसे भिन
हैं); नलसे नभ हुए। नभसे पुण्डरीक और पुण्डरीकसे
सुधन्वा उत्पन्न हुए। सुधन्वाके पुत्र देवानीक और
देवानीकके अहीनाश्च हुए। अहीनाश्रसे सहस्ताश्व
और सहस्राश्चसे चन्द्रालोक हुए। चन्द्रालोकसे
तारापीड, तारापीडसे चनद्रगिरि ओर चन्द्रगिरिसे
भानुरथका जन्म हुआ । भानुरथका पुत्र श्रुतायु नामसे
प्रसिद्ध हुआ। ये इक्ष्वाकुवंशमें उत्पन्न राजा सूर्ववंशका
विस्तार करनेवाले माने गये हैं॥ २५--३९ ॥
इस प्रकार आदि आग्रेय महापुराणमे 'सूर्यवशका वर्णन” नामक
दो सौ तिहत्तरवाँ अध्याय एव हअ॥ २७३ ॥
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