हरिप्रबोधिनी एकादशीके अवसरपर, पाँच दिनतक | किसी पटपर भद्रकालीका चित्र अङ्कित करके
उत्सव करे। भाद्रपदके शुक्लपक्षमें, प्रतिपदा तिथिको
शिबिरके पूर्वदिग्भागमें इन्द्रपूजाके लिये भवन-
निर्माण करावे। उस भवनपें इन्द्रध्वज (पताका)-
की स्थापना करके वहाँ प्रतिपदासे लेकर अष्टमीतक
शची और इन्द्रकी पूजा करे। अष्टमीको वाद्य-
घोषके साथ उस पताकामें ध्वजदण्डका प्रवेश
करावे। फिर एकादशीको उपवास रखकर द्वादशीको
ध्वजका उत्तोलन करे। फिर एक कलशपर वस्त्रादिसे
युक्त देवराजे इन्द्र एवं शचीकी स्थापना करके
उनका पूजन करे ॥ १--५॥
( इन्द्रदेवकी इस प्रकार प्रार्थना करे-- )
*शत्रुविजयी वुत्रनाशन पाकशासन! महाभाग
देवदेव ! आपका अभ्युदय हो। आप कृपापूर्वक
इस भूतलपर पधार है । आप सनातन प्रभु, सम्पूर्ण
भूतोंके हितमें तत्पर रहनेवाले, अनन्त तेजसे सम्पन्न,
विराट् पुरुष तथा यश एवं विजयकी वृद्धि करनेवाले
हैं। आप उत्तम वृष्टि करनेवाले इन्द्र हैं, समस्त
देवता आपका तेज बढ़ायें। ब्रह्मा, विष्णु, शिव,
कार्तिकेय, विनायक, आदित्यगण, वसुगण, रुद्रगण,
साध्यगण, भृगुकुलोत्पन महर्षि, दिशाएँ, मरुद्गण,
लोकपाल, ग्रह, यक्ष, पर्वत, नदियाँ, समुद्र, श्रीदेवी,
भूदेवी, गौरी, चण्डिका एवं सरस्वती-ये सभी
आपके तेजको प्रदीप्त करं । शचीपते इन्द्र आपकी
जय हो । आपकी विजयसे मेरा भी सदा शुभ हो।
आप नेशो, ब्राह्मणों एवं सम्पूर्ण प्रजा्ओंपर
प्रसन होइये। आपके कृपाप्रसादसे यह पृथ्वी
सदा सस्यसम्पन हौ। सबका विघ्नरहित
कल्याण हो तथा ईतियाँ पूर्णतया शान्त हों।' इस
अभिप्रायवाले मन्त्रसे इनद्रकी अर्चना करनेवाला
भूपाल पृथ्वीपर विजय प्राप्त करके स्वर्गको प्राप्त
होता है ॥ ६--१२६॥
अश्विन मासके शुक्लपक्षको अष्टमी तिथिको
राजा विजयको प्राप्तिके लिये उसकी पूजा करे।
साथ ही आयुध, धनुष, ध्वज, छत्र, राजचिह
(मुकुट, छत्र तथा चंवर आदि) तथा अस्त्र-शस्त्र
आदिकौ पुष्प आदि उपचारोँसे पूजा करे । रात्रिके
समय जागरण करके देवीको बलि अर्पित
करे। दूसरे दिन पुनः पूजन करे। (पूजाके
अन्तम इस प्रकार प्रार्थना करें--) + भद्रकालि,
महाकालि, दुरगतिहारिणि दुर्ग, त्रैलोक्यविजयिति
चण्डिके! मुझे सदा शान्ति और विजय प्रदान
कीजिये" ॥ १३- १५६ ॥
अब मैं 'नीराजन'कौ विधि कहता हूँ।
ईशानकोणे देवमन्दिरका निर्माण करावे। वहाँ
तीन दरवाजे लगाकर मन्दिरके गर्भगृहे सदा
देवताओंकी पूजा करे । जब सूर्य चित्रा नक्षत्रको
छोडकर स्वाती नक्षत्रम प्रवेश करते है,
उस समयसे प्रारम्भ करके जबतक स्वातीपर सूर्य
स्थित रहें, तबतक देवपूजन करना चाहिये । ब्रह्मा,
विष्णु, शिव, इन्द्र, अग्नि, वायु, विनायक, कार्तिकेय,
वरुण, विश्रवाके पुत्र कुबेर, यम, विश्वेदेव एवं
कुमुद, एेरावत, पद्म, पुष्पदन्त, वामन, सुप्रतीक,
अञ्जन और नील--इन आठ दिग्गजोंकी गृह आदियें
पूजा करनी चाहिये। तदनन्तर पुरोहित घृत, समिधा,
श्वेत सर्षप एवं तिलोंका होम करे । आठ कलशॉंकी
पूजा करके उनके जलसे उत्तम हाथियोंको लान
कराये। तदनन्तर घोड़ोंकों स्नान कराये और उन
सबके लिये ग्रास दे। पहले हाथियोंको तोरणद्वारसे
बाहर निकाले; परंतु गोपुर आदिका उल्लङ्घन न
करावे। तदनन्तर सब लोग वहसि निकलें और
राजचिहोकौ पूजा घरमे हौ कौ जाय । शतभिषा
नक्षत्रे वरुणका पूजन करके रात्रिके समय
भूतोको बलि दे। जब सूर्य विशाखा नक्षत्रपर्
जाय, उस समय राजा आश्रमे निवास करे । उस