स्नान सब स्त्रानोंसे श्रेष्ठ है ॥७--१३३॥
एकाकी मनुष्य मनमें एक कामना लेकर
विधिपूर्वकं एक ही खान करे । वह * आक्रन्दयति० '
आदि सूक्तसे अपने हाथमे मणि (मनका) बाँधे।
वह मणि कूट, पाट, वचा, सोंठ, शङ्खं अथवा
लोहे आदिकी होनी चाहिये । समस्त कामनाओंके
ईश्वर भगवान् श्रीहरि ही है, अतः उनके पूजनसे
ही मनुष्य सम्पूर्ण कामनाओंको प्राप्त कर लेता
है। जो मनुष्य घृतमिश्रित दुग्धसे स्नान कराके
श्रीविष्णुका पूजन करता है, वह पित्तरोगका नाश
कर देता है। उनके उद्देश्यसे पाँच मूँगोंकी बलि
देकर मनुष्य अतिसारसे छुटकारा पाता है। भगवान्
श्रीहरिको पञ्चगव्यसे स्नान करानेवाला वातरोगका
नाश करता है। द्विस्लेह-द्रव्यसे स्नान कराके अतिशय
श्रद्धापूर्वक उनका पूजन करनेवाला कफ-सम्बन्धी
रोगसे मुक्त हो जाता है। घृत, तैल एवं मधुद्वारा
कराया गया सान “त्रिरस-स्लान” माना गया है,
धृत और जलसे किया गया स्नान 'द्वि्लेह जान!
है तथा घृत-तेल-मिश्रित जलका स्नान 'समल-
नान ' है। मधु, ईखका रस और दूध--इन तीनोंसे
मिश्रित जलद्वारा किया गया स्नान “त्रिमधुर-स्ान'
है। घृत, इक्षुस तथा शहद यह “त्रिरस-स्नान'
लक्ष्मीकी प्राप्ति करानेवाला है। कर्पुर, उशीर एवं
चन्दनसे किया गया अनुलेप “त्रिशुक्ल' कहलाता
है। चन्दन, अगुरु, कर्पुर, कस्तूरी एवं कुछ्ठुम--
इन पाँचोंके मिश्रणसे किया गया अनुलेपन यदि
विष्णुको अर्पित किया जाय तो वह सम्पूर्ण
मनोवाज्छित फलोंको देनेवाला है। कर्पूर, चन्दन
एवं कुङ्कुम अथवा कस्तूरी, कपूर और चन्दन-
यह ` त्रिसुगन्ध' समस्त कामनाओंको प्रदान
करनेवाला है। जायफल, कर्पुर ओर चन्दन--ये
“शीतत्रय' माने गये हैं। पीला, सुग्गापंखी,
शुक्ल, कृष्ण एवं लाल-ये पञ्च वर्ण कहे गये
हैं॥ १४-२४॥
श्रीहरिके पूजनमें उत्पल, कमल, जातीपुष्प
तथा त्रिशीत उपयोगी होते हैं। कुङ्कुम, रक्त कमल
और लाल उत्पल ये “त्रिरक्त” कहे जाते हैं।
श्रीविष्ुका धूप-दीप आदिसे पूजन करनेपर
मनुष्योंको शान्तिको प्राप्ति होती है। चार
हाथके चौकोर कुण्डम आठ या सोलह ब्राह्मण
तिल, घी और चावलसे लक्षहोम या कोटिहोम
करें। ग्रहोंकी पूजा करके गायत्री-मन्त्रसे उक्त
होम करनेपर क्रमशः सब प्रकारकी शान्ति सुलभ
होती है॥ २५--२७॥
इस प्रकार आदि आग्रेव महाएगणमें 'माहेश्वर-ख्राव तथा लक्षकोटिहोम आदिका कथन” नामक
दो सौ सरसठवाँ अध्याय पूरा हुआ# २६७ ॥
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दो सौ अड़सठवाँ अध्याय
सांवत्सर-कर्म; इन्द्र-शचीकी पूजा एवं प्रार्थना; राजाके द्वारा भद्रकाली तथा
अन्यान्य देवताओंके पूजनकी विधि; वाहन आदिका पूजन तथा नीराजना
पुष्कर कहते हैं-- अन मैं राजाओंके करनेयोग्य | चन्द्रमः आदि देवताओंकौ अर्चना करे । अगस्त्य-
साँवत्सर-कर्मका वर्णन करता हँ । राजाको अपने | ताराका उदय होनेपर अगस्त्यकौ एवं चातुर्मास्यमें
जन्मनक्षत्रमें नक्षत्र-देवताका पूजन करना चाहिये । | श्रीहरिका यजन करे । श्रीहरिके शयन और
वह प्रत्येक मासमे, संक्रान्तिके समय सूर्य और | उत्थापनकालमे, अर्थात् हरिशयनी एकादशी और