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यजमानका अभिषेक करे--

सहस्त्राक्ष॑ शतधारमृषिभि: पावनं कृतम्‌॥

तेन त्वामभिषिञ्चामि पावमान्यः पुनन्तु ते।

"जो सहस्रं नेत्रों (अनेक प्रकारकी शक्तियो ) -

से युक्त हैं, जिसकी सैकड़ों धाराएँ ( बहुत-से

प्रवाह) हैं और जिसे महर्षियोंने पावन बनाया है,

उस पवित्र जलसे मैं (विनायकजनित उपद्रवसे

ग्रस्त) तुम्हारा (उक्त उपद्भरबकी शान्तिके लिये)

अभिषेक करता हूँ। यह पावन जल तुम्हें पवित्र

करे! ॥ १--९\॥

(तदनन्तर दक्षिण दिशामें स्थित द्वितीय कलश

लेकर नीचे लिखे मन्त्रकों पढ़ते हुए अभिषेकं

करे-)

भगं ते वरुणो राजा भगं सूर्यो युहस्पतिः।

भगमिन्द्रश्च वायुश्च भगं सप्तर्षयो ददुः॥

"राजा वरुण, सूर्य, बृहस्पति, इन्द्र, वतु

तथा सप्तर्षिगणने तुम्हें कल्याण प्रदान किया

है'॥१०६॥

(फिर तीसरा पश्चिम कलश लेकर निम्नाङ्कित

मन्त्रसे अभिषेक करे-)

यत्ते केशेषु दौर्भाग्यं सीमन्ते यच्च मूर्धनि॥

ललाटे कर्णयोरश्ष्णोरापस्तदध्नन्तु सर्वदा ।

"तुम्हारे केशोंमें, सीमन्तमे, मस्तकपर्‌,

ललाठमें, कानोंमें और नेत्रोंमें भी जो दुर्भाग्य (या

अकल्याण) है, उसे जलदेवता सदाके लिये शान्त

करं'॥१९१२॥

(तत्पश्चात्‌ चौथा कलश लेकर पूर्वोक्तं तीनों

मन्त्र पढ़कर अभिषेक करे ।) इस प्रकार स्नान

करनेवाले यजमानके मस्तकषर बायें हाथमे लिये

हुए कुशोंकों रखकर आचार्य उसपर गूलरकी

सनुवासे सरसोंका तेल उठाकर डाले॥ १२-१३॥

(उस समय निम्नाड्धित मन्त्र पदे

* ॐ मिताय स्वाहा । ॐ सम्मिताय स्वाहा।

ॐ शालाय स्वाहा । ॐ कण्टकाय स्वाहा । ॐ

कूष्माण्डाय स्वाहा । ॐ राजपुत्राय स्वाहा ।

इस प्रकार स्वाहासमन्वित इन मितादि नामोंके

द्वारा सरसेकि तैलकी मस्तकपर आहुति दे। मस्तकपर

तैल डालना ही हवन है॥ १४-१५॥

(मस्तकपर उक्त होमके पश्चात्‌ लौकिक अग्रिमे

भी स्थालीपाककी विधिसे चरु तैयार करके उक्त

छः मन्त्रोंसे ही उसी अग्रिमे हवन करे |) फिर

होमशेष चसरुद्वारा 'नम:' पदयुक्तं इन्द्रादि नामोंको

बलि-मन्त्र बनाकर उनके उच्चारणपूर्वक उन्हें बलि

अर्पित करे। तत्पश्चात्‌ सूपमें सब ओर कुश बिछाकर,

उसमें कच्चे-पके चावल, पीसे हुए तिलसे मिश्रित

भात तथा भाँति-भाँतिके पुष्प, तीन प्रकारकी

(गौडी, माधवी तथा पैष्टी) सुरा, मूली, पूरी,

मालपृआ, पीठेकी माला, दही -मित्रित अन,

खीर, मीठा, लड्डू और गुड़-इन सबको एकत्र

रखकर चौराहेपर रख दे और उसे देवता, सुपर्ण,

सर्प, ग्रह, असुर, यातुधान, पिशाच, नागमाता,

शाकिनी, यक्ष, वेताल, योगिनी और पूतना आदिको

अर्पित करे। तदनन्तर विनायकजननी भगवती

अम्बिकाको दूर्वांदल, सर्षप एवं पुष्पोंसे भरी हुई

अर्घ्यरूप अञ्जलि देकर निम्नाड्धित मन्त्रसे उनका

उपस्थान करें--'सौभाग्यवती अम्बिके ! मुझे रूप,

यश, सौभाग्य, पुत्र एवं धन दीजिये। मेरी सम्पूर्ण

कामनाओंको पूर्ण कीजिये*।' इसके बाद ब्राह्मणोंको

भोजन करावे तथा आचार्यको दो वस्त्र दान करे।

इस प्रकार विनायक और ग्रहोंका पूजन करके

मनुष्य धन और सभी कार्योंमें सफलता प्राप्त

करता है॥ १६--२०॥

इस प्रकार आदि आग्रेय महापुर्णमें “विनायक-लानकथन नामक

दो सौ छाछठवाँ अध्याय पूरा हुआ॥ २६६ ॥

ए...

* रूपं देहि यशो देहि सौभाग्य सुभगे मम। पुत्रं देहि धन देहि सर्वान्‌ कामांश्च देहि मे ॥ (अग्रिपु० २६६। १९)

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