* अध्याय २६४१५
५३७
* धर्ममयाय नमः ', वामभागमें ' अधर्ममयाय नमः ',
बने हुए पाकमेंसे बलिवैश्वदेव करनेके बाद
घरके भीतर ' ध्रुवाय नमः ', घरके बाहर ' मृत्यवे | पाँच बलियाँ दी जाती है । उनमें सर्वप्रथम 'गो-
नमः' तथा जलाशये ' वरुणाय नमः'- इस
मन््रसे बलि अर्पित करे। फिर चरके बाहर ' भूतेभ्यो
नमः'- इस मन्त्रसे भूतबलि दे। घरके भीतर
धनदाय नमः' कहकर कुबेरको बलि दे । इसके
वाद मनुष्य घरसे पूर्वदिशामें “इन्द्राय नमः,
इन््रपुरुषेभ्यो नमः '-- इस मन्त्रसे इन्द्र और इन्द्रके
पार्षदपुरुषोंको बलि अर्पित करे । तत्पश्चात् दक्षिणमें
"यमाय नमः, यमपुरुषेभ्यो नमः'-- इस मन्त्रसे,
"वरूणाय नमः, वरुणपुरुषेभ्यो नमः '-- इस मन्त्रसे
पश्चिमर्मे, "सोमाय नमः, सोपपुरुषेभ्यो नपः'--
इस मन्त्रसे उत्तरमें और ' ब्रह्मणे वास्तोष्यतये नमः,
ब्रह्मपुरुषेभ्यो नमः '-- इस मन्त्रसे गृहके मध्यभागे
बलि दे। 'विश्वेभ्यो देवेभ्यो नम: '-- इस मन्त्रसे
घरके आकाशमें ऊपरकी ओर बलि अर्पित करे।
*स्थण्डिलाय नम: '-- इस मन्त्रसे पृथ्वीपर बलि
दे। तत्पश्चात् 'दिवाचारिभ्यो भूतेभ्यो नमः '--
इस मन्त्रसे दिनमें बलि दे तथा “रात्रिचारिभ्यो
भूतेभ्यो नम: '-- इस मन््रसे रात्रिमें बलि अर्पित
करे। घरके बाहर जो बलि दी जाती है, उसे
प्रतिदिन सायंकाल और प्रातःकाल देते रहना
चाहिये। यदि दिनमें श्राद्ध-सम्बन्धी पिण्डदान
किया जाय तो उस दिन सायंकालमें बलि नहीं
देनी चाहिये॥ १३--२२॥
पितृ-श्राद्धमें दक्षिणाग्र कुशोंपर पहले पिताको,
फिर पितामहकों और उसके बाद प्रपितामहको
पिण्ड देना चाहिये। इसी प्रकार पहले माताको,
फिर पितामहीको, फिर प्रपितामहीकों पिण्ड
अथवा जल दे। इस प्रकार 'पितृयाग” करना
चाहिये॥ २३ ६॥
बलि" है; किंतु यहाँ पहले काकबलि "का विधान
किया गया है--
काकबलि
इनद्रवारुणवायव्या याम्या वा नैर्रस्ताश्च ये॥
ते काकाः प्रतिगृह्णन्तु इमं पिण्डं पयोदधृतम्। '
“जो इन्द्र, वरुण, वायु, यम एवं निर्क्रति देवताकी
दिशामें रहते हैं, वे काक मेरेद्वारा प्रदत्त यह पिण्ड
ग्रहण करें।' इस मन्त्रसे काकबलि देकर निम्नाङ्किति
मन्त्रसे कुत्तोंके लिये अनका ग्रास दे ॥ २४-२५॥
कुक्कुर-बलि
विवस्वतः कुले जातौ द्वौ श्यामशबलौ' शनौ ।
ताभ्यां पिण्डं प्रदास्यामि रक्षतां पधि पां सदा॥
"श्याम और शबल (काले और चितकबरे)
रंगवाले दो धान विवस्वानके कुलमें उत्पन्न हुए हैं।
मैं उन दोनोंके लिये पिण्ड प्रदान करता हूँ। वे
लोक-परलोकके मार्गमे सदा मेरी रक्षा करें! ॥ २६ ॥
गो-ग्रास
सौरभेय्यः सर्वहिताः पवित्राः पापनाशना:'।
में ग्रासं गावस्तैलोक्यमातरः॥
"त्रैलोक्यजननी, सुरभिपुत्री गौएँ सबका हित
करनेवाली, पवित्र एवं पार्पोका विनाश करनेवाली
हैं। वे मेरे द्वारा दिये हुए ग्रासको ग्रहण करें ।' इस
मन्त्रसे गो-ग्रास देकर स्वस्त्ययन करे। फिर
याचकोंको भिक्षा दिलावे। तदनन्तर दीन प्राणियों
एवं अतिथियोंका अननसे सत्कार करके गृहस्थ
स्वयं भोजन करे ॥ २७-२८॥
(अनाहिताग्नि पुरुष निम्नलिखित मन्त्रोंसे जलमें
अनकौ आहुतियाँ दे-)
ॐ भू: स्वाहा । ॐ भुवः स्वाहा । ॐ स्वः
१. उत्तरार्के स्थानम यह पाठान्दर उपलब्ध होता है ~ यायसाः प्रतिगृह्णन्तु भूमौ पिण्डं मयोच्डितम्।
२. कहाँ-कहों ~ दरौ शानौ स्यामशबलौ चैयस्वतकुलोद्धवौ । ताध्यामनं प्रदास्यामि स्यातामेताव्हिंसकौ ॥--ऐसा पाट पिलता है।
३. षाठान्तर ~ पुष्यराशय:।'