Home
← पिछला
अगला →

५३४

दो सौ तिरसठवाँ अध्याय

नाना प्रकारके उत्पात ओर उनकी शान्तिके उपाय

पुष्कर कहते हैँ -- परशुराम ! प्रत्येक वेदके

श्रीसूक्त 'को जानना चाहिये । वह लक्ष्मीकी वृद्धि

करनेवाला है । ' हिरण्यवर्णा हरिणी ' इत्यादि पंद्रह

ऋचाएँ ऋग्वेदीय श्रीसूक्त है । ' रथे०' (२९-- ४३)

अक्षराजाय (३०। १८) " वाजः० ', (१८। ३४)

एवं 'चतस्त्र:०' (१८। ३२)--ये चार मन्त्र यजुर्वेदीय

श्रीसूक्त हैं। ' श्रावन्तीय-साम' सामवेदीय श्रीसूक्त

है तथा 'श्रियं धातर्मयि धेहि" यह अथर्ववेदका

श्रीसूक्त कहा गया है । जो भक्तिपूर्वक श्रीसूक्तका

जप एवं होम करता है, उसे निश्चय ही लक्ष्मीक

प्राप्ति होती है। श्रीदेवीकी प्रसननताके लिये

कमल, बेल, घी अथवा तिलकौ आहुति देनी

चाहिये ॥ १--३ ३ ॥

प्रत्येक वेदे एक ही ' पुरुषसूक्त ' मिलता है,

जो सब कुछ देनेवाला है। जो स्नान करके

"पुरूपसृक्त के एक-एक मन्तरसे भगवान्‌ श्रीविष्णुको

एक-एक जलाञ्जलि ओर एक-एक फूल समर्पित

करता है, वह पापरहित होकर दूसरोके भी

पापका नाश करनेवाला हो जाता है। स्नान

करके इस सूक्तके एक-एक मन्त्रके साथ

श्ीविष्णुको फल समर्पित करके पुरुष सम्पूर्ण

कामनाओंका भागी होता है । “ पुरुषसूक्त 'के जपसे

महापातकं और उपपातकोंका नाश हो जाता है।

कृच्छूब्रत करके शुद्ध हुआ मनुष्य स्लानपूर्वक

"पुरुषसूक्त का जप एवं होम करके सब कुछ पा

लेता है॥ ४--६ \॥

अठारह शान्तियोंमें समस्त उत्पातोंका उपसंहार

करनेवाली अमृता, अभया और सौम्या-ये तीन

शान्तियाँ सर्वोत्तम हैं। ' अमृता शान्ति" सर्वदैवत्या,

"अभया ' ब्रह्मदैवत्या एवं ' सौम्या" सर्वदैवत्या है ।

इनमेंसे प्रत्येक शान्ति सम्पूर्ण कामनाओंको देनैवाली

है। भृगुश्रेष्ठ! ! अभया" शान्तिके लिये वरुणवृक्षके

मूलभागकौ मणि बनानी चाहिये। “अमृता'

शान्तिके लिये दूर्वामूलकी मणि एवं ' सौम्या ' शान्तिके

लिये शङ्घमणि धारण करे। इसके लिये उन-

उन शान्तियोके देवताओंसे सम्बद्ध मन्त्रोंको सिद्ध

करके मणि बाँधनी चाहिये । ये शान्तियाँ दिव्य,

आन्तरिक्ष एवं भौम उत्पारतोका शमन करनेवाली

हैं। "दिव्य", " आन्तरिक्ष" और ' भौम" यह तीन

प्रकारका अद्भुत उत्पात बताया जाता है, सुनो ।

ग्रहों एवं नक्षत्रोंकी विकृतिसे होनेवाले उत्पात

“दिव्य' कहलाते हैं। अब 'आन्तरिक्ष' उत्पातका

वर्णन सुनो । उल्कापात, दिग्दाह, परिवेश, सूर्यपर

घेरा पड़ना, गन्धर्वं नगरका दर्शन एवं विकारयुक्त

वृष्टि-ये अन्तरिक्ष-सम्बन्धी उत्पात हैं। भूमिपर

एवं जंगम प्राणियोंसे होनेवाले उपद्रव तथा

भूकम्प--ये ' भौम" उत्पात हैं। इन त्रिविध उत्पातोंके

दीखनेके बाद एक सप्ताहके भीतर यदि वर्षा हो

जाय तो वह 'अद्भुत' निष्फल हो जाता है। यदि

तीन वर्षतक अद्भुत उत्पातकी शान्ति नहीं की

गयी तो बह लोकके लिये भयकारक होता है।

जब देवताओंकी प्रतिमाएँ नाचती, काँपती, जलती,

शब्द करती, रोती, पसीना बहाती या हँसती हैं,

तब प्रतिमाओंके इस विकारकी शान्तिके लिये

उनका पूजन एवं प्राजापत्य-होम करना चाहिये।

जिस राष्ट्रमें बिना जलाये ही घोर शब्द करती हुई

आग जल उठती है ओर इन्धन डालनेपर भी

प्रज्वलित नहीं होती, वह राष्ट्र राजाओंके द्वारा

पीड़ित होता है॥७-१६॥

भृगुनन्दन ! अग्रि-सम्बन्धी विकृतिकी शान्तिके

लिये अग्रिदैवत्य-मन्त्रोंसे हवन बताया गया है।

जब वृक्ष असमये ही फल देने लगें तथा दूध

और रक्त बहावें तो वृक्षजनित भौम-उत्पात होता

है। वहाँ शिवका पूजन करके इस उत्पातकी

← पिछला
अगला →