* अध्याय २६२ *
हवन करके होता सम्पूर्ण दोषोंका विनाश कर
देता है। निम्नाद्भित अठारह प्रकारकौ शान्तियोंमें
इन दस गणोंके द्वारा होम करना चाहिये। (वे
अठारह शान्तियाँ ये हैं--) वैष्णवी, पेन, ब्रह्म,
रौद्री, वायव्या, वारुणी, कौवेरी, भार्गवी, प्राजापत्या,
त्वाष्टी, कौमारी, आग्रेयी, मारुद्गणी, गान्धर्वी,
नैतिकी, आर्खिरसी, याम्या एवं कामनाओंको
पूर्ण करनेवाली पार्थिवी शान्ति ॥ १--८ \ ॥
"यस्त्वां मृत्यु:०' इत्यादि आथर्वण-मन्त्रका
जप मृत्युका नाश करनेवाला दै । * सुपर्णस्त्वा° '
(४।६। ३)--इस मन्त्रसे होम करनेपर मनुष्यको
सर्पोंसे बाधा नहीं प्राप्त होती । "इन्द्रेण दत्तो०'
(२।२९।४)- यह मन्त्र सम्पूर्ण कामनाओंको सिद्ध
करनेवाला है । “इन्द्रेण दत्तो०' यह मन्त्र समस्त
बाधाओंका भी विनाश करनेवाला है। "इमा या
देवी" (२।१०।४)-- यह मन्त्र सभी प्रकारकी
शान्तियोंके लिये उत्तम है। "देवा मरुतः'-- यह
मन्त्र समस्त कामनाओंको सिद्ध करनेवाला है ।
"यमस्य लोकाद्०' (१९।५६। १)-यह मन्त्र
दुःस्वप्नका नाश करनेमें उत्तम है। “इन्द्रश्च
पञ्च वणिजः०'-- यह मन्त्र परमपुण्यका लाभ
करनेवाला है । ' कामो मे वाजी०' मन््रसे हवन
करनेपर स्त्रियोंक सौभाग्यकी वृद्धि होती दै।
"तुभ्यमेव ०" (२। २८।१) इत्यादि मन्त्रको नित्य
दस हजार जप करते हुए उसका दशांश हवन करे
एवं "अग्रे गोभिर्नः०' मन्त्रसे होम करे तो उत्तम
मेधाशक्तिकौ वृद्धि होती है। 'श्रुवं श्रुवेण० '
(७।८४। १) इत्यादि मन्तरसे होम किया जाय तो
वह स्थानकी प्राप्ति कराता है । ' अलक्तजीवेति
शुना० '--यह मन्त्र कृषि-लाभ करानेका साधन
है। 'अहं ते भग्ः'- यह मन्त्र सौभाग्यकौ वृद्धि
करनेवाला है। "ये मे पाशा:०' मन्त्र बन्धनसे
छुटकारा दिलाता है । ' शपत्वहन्० ' - इस मन््रका
जप एवं होम करनेसे मनुष्य अपने शत्रुओंका
विनाश कर सकता है । “ त्वमुत्तमम्° ' -- यह मन्त्र
यश एवं बुद्धिका विस्तार करनेवाला है । “यथा
मृगाः०' (५।२१।४)-यह मन्त्र स्तियोके
सौभाग्यको बढ़ानेवाला है। "येन चेह दिशं
चैव०'-- यह मन्त्र गर्भकी प्राप्ति करानेवाला है ।
"अयं ते योनिः०' (३।२०।१)-इस मन्त्रके
अनुष्ठानसे पुत्रलाभ होता है । *शिवः शिवाभिः०'
इत्यादि मन्त्र सौभाग्यवर्धक है । * बृहस्पतिर्नः परि
पातुर ' (७।५१। १) इत्यादि मन््रका जप मार्ममें
मङ्गल करनेवाला है। “मुझख़ामि त्वा०'
(३।११।१)- यह मन्त्र अपमृत्युका निवारक है ।
अथर्वशीर्षका पाठ करनेवाला समस्त पापोंसे मुक्त
हो जाता है। यह मैंने तुमसे प्रधानतया मन्त्रोके
द्वारा साध्य कुछ कर्म बताये हैं। परशुराम! यज्ञ-
सम्बन्धी वृक्षोंकी समिधां सबसे मुख्य
हविष्य हैं। इसके सिवा घृत, धान्य, श्वेत सर्षप,
अक्षत, तिल, दधि, दुग्ध, कुश, दूर्वा, बिल्व और
कमल-ये सभी द्रव्य शान्तिकारक एवं
पुष्टिकारक बताये गये हैं। धर्मज्ञ! तेल, कण, राई,
रुधिर्, विष एवं कण्टकयुक्त समिधा्ओंका
अभिचारकर्ममें प्रयोग करे। जो मन््त्रोंके ऋषि,
देवता, छन्द और विनियोगकों जानता है, वही
उन-उन मन्त्रोंद्राग कथित कर्मोंका अनुष्ठान
करे॥ ९--२५॥
इस प्रकार आदि आग्रेय महापुराणमें 'अथर्वाविधान” कामक
दो सौ बासठवाँ अध्याय पूरा हुआ॥ २६२ #
न~