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अपामार्ग एवं तण्डुलोंसे युक्त हबन-सामग्रीद्वारा

होम करे । विप्रवर ! इसी मन्त्रसे गोरोचनको सहस्र

बार अभिमन्त्रित करके उसका तिलक करनेसे

मनुष्य लोकप्रिय हौ जाता है । रुद्र-मन्त्रोंका जप

सम्पूर्ण पापोंका विनाश करनेवाला है । उनके द्वारा

किया गया होम सम्पूर्ण कर्मोका साधक और

सर्वत्र शान्ति प्रदान करनेवाला है। धर्मज्ञ भृगुनन्दन !

बकरी, भेड, घोड़े, हाथी, गौ, मनुष्य, राजा,

बालक, नारी, ग्राम, नगर और देश यदि विविध

उपद्रवोंसे पीड़ित एवं रोगग्रस्त हो गये हों, अथवा

महामारी या शत्रुओंका भय उपस्थित हो गया हो

तो धृतमिश्रित खीरसे रुद्रदेवताके लिये किया

गया होम परम शान्तिदायक होता है । रुद्रमन्त्रोंस

कूष्माण्ड एवं घृतका होम सम्पूर्णं पापका विनाश

करता है । नरश्रेष् जो मानव केवल रातमें सत्त,

जौकी लप्सी एवं भिक्षान भोजन करते हुए एक

मासतक बाहर नदौ या जलाशये स्नान करता

है, वह ब्रह्महत्याके पापसे मुक्त हो जाता है।

"मधुवाता ' (१३। २७) इत्यादि मन्तरसे होम

आदिका अनुष्ठान करनेपर सब कुछ मिलता दै ।

"दधिक्राव्णो°' (२३।३२)--इस मन्त्रसे हवन

करके गृहस्थ पुत्रोंको प्राप्त करता है, इसमें संशय

नहीं है । इसी प्रकार "घृतवती भुवनानामभि°

(३४। ४५)- इस मन्तरसे किया गया घृतका होम

आयुको बढ़ानेवाला है। "स्वस्ति न इन्द्रोऽ'

(२५। १९)-- यह मन्त्र समस्त बाधार्ओंका निवारण

करनेवाला दै । "इह गावः प्रजायध्वम्‌० '--यह

मन्त्र पुष्टिवर्धक है। इससे घृतकी एक हजार

आहुतियाँ देनेपर दरिद्रताका विनाश होता है।

"देवस्य त्वा० '--इस मन्त्रसे ख्ुवाद्वारा अपामार्ग

और तण्डुलका हवन करनेपर मनुष्य विकृत

अभिचारसे शीघ्र छुटकारा पा जाता है, इसमें

संशय नहीं है। “रुद्र यत्ते०' (१०।२०) मन्त्रसे

पलाशकी समिधाओंका हवन करनेसे सुवर्णकी

* अग्निपुराण +

उपलब्धि होती है । अग्निके उत्पाते मनुष्य 'शिवो

भव०' (११।४५) मन्त्रसे धान्यकी आहति दे।

“या सेनाः०' (११।७७)--इस मन्त्रसे किया गया

हवन चोरोंसे प्राप्त होनेवाले भयको दूर करता

है । ब्रह्मन्‌! जो मनुष्य “यो अस्मभ्यमरातीयात्‌०'

(११।८०)-- इस मन्त्रसे काले तिर्लोकी एक हजार

आहुति देता है, वह विकृत अभिचारसे मुक्त हो

जाता है। अन्नपते°' (११।८३)-इस मन्तरसे

अनका हवन करनेसे मनुष्यको प्रचुर अन्न प्राप्त

होता है । "हंसः शुचिषत्‌" (१०। २४) इत्यादि

मन्त्रका जले किया गया जप समस्त पार्पोका

नाश करता है। "चत्वारि भृङ्खा०' (१७।९१)

इत्यादि मन्त्रका जले किया गया जप समस्त

पार्पोका अपहरण करनेवाला है। "देवा

यज्ञमतन्वत० ' (१९। १२) इसका जप करके साधक

ब्रह्मलोके पूजित होता है । " वसन्तो स्यासीद्‌ '

(३१। १४) इत्यादि मन्त्रसे धृतकी आहुति देनेपर

भगवान्‌ सूर्यसे अभीष्ट वरकी प्राप्ति होती है।

"सुपर्णोऽसि ' (१७। ७२) इत्यादि मन्त्रसे साध्यकर्म

व्याह्ृति-मन्त्रोंसे साध्यकर्मक समान ही होता है।

“नमः स्वाहा०' आदि मन्त्रको तीन बार जप

करके मनुष्य बन्धनसे मोक्ष प्राप्त कर लेता है।

जलके भीतर "द्रुपदादिव मुमुचान:०' (२०। २०)

इत्यादि मन्त्रकी तीन आवृत्तियाँ करके मनुष्य

समस्त पापोंसे मुक्त हो जाता है। “इह गावः

प्रजायध्वम्‌० '--इस मन्त्रसे घृत, दधि, दुग्ध अथवा

खीरका हवन करनेपर बुद्धिकौ वृद्धि होती है।

शं नो देवी:०' (३६। १२)--इस मन््रसे पलाशके

फलोंकी आहति देनेसे मनुष्य आरोग्य, लक्ष्मी

और दीर्घं जीवन प्राप्त करता है। "ओषधीः

प्रतिमोदध्वम्‌०' (१२।७७)- इस मन््रसे बीज

बोने ओर फसल काटनेके समय होम करनेपर

अर्थकी प्राप्ति होती है। “अश्वावतीर्गोमतीर्न

उषासो०' (३४। ४०) मन्त्रसे पायसका होम करनेसे

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