आरोग्यलाभ करता है। प्रयत्रपूर्वक पवित्र हो "शं
नो भव०' (८। ४८ | ४-५)-इन दो ऋचाओंके
जपपूर्वक भोजन करके हृदयका हाथसे स्पर्शं करे।
इससे मनुष्य कभी व्याधिग्रस्त नहीं होता।
स्नान करके "उत्तमेदम्० '--इस मन्त्रसे हवन करके
पुरुष अपने शत्रुओंका विनाश कर डालता है।
"शंनो अग्निर ' (७। ३५)--इस सूक्तसे हवन करनेपर
मनुष्य धन पाता है। “कन्या वाखायती०'
(८।९१)-इस सूक्तका जप करके वह दिग्भ्रमके
दोषसे छुटकारा पाता है। सूर्योदयके समय
“यदद्यकच्च०' (८।९३। ४) -- इस ऋचाका जप
करनेसे सम्पूर्ण जगत् वशीभूत हो जाता है।
“यदवाग्०' (८।१००। १०)--इत्यादि ऋचाके
जपसे वाणी संस्कारयुक्त होती है। ' वचोविदम्'
(८।१०१। १६) ऋचाका मन-ही-मन जप
करनेवाला वाक्-शक्ति प्राप्त करता है । पावमानी
ऋचाएँ परम पवित्र मानी गयी हैं। वैखानस-
सम्बन्धिनी तीस ऋचाएँ भी परम पवित्र मानी
गयी हैं। ऋषिश्रेष्ठ परशुराम ! 'परस्थ०' इत्यादि
बासठ ऋचाएँ भी पवित्र कही गयी हैं।
*स्वादिष्टया०' (९। १--६७) इत्यादि सरसठ सूक्त
समस्त पापोंके नाशक, सबको पवित्र करनेवाले
तथा कल्याणकारी कहे गये हैं। छः सौ दस
पावमानी ऋचाएँ कही गयी हैं। इनका जप और
इनसे हवन करनेवाला मनुष्य भयंकर मृत्युभयको
जीत लेता है । पाप-भयके विनाशके लिये "आपो
हि ठाः ' (१०।९। १--३) इत्यादि ऋचाका जले
स्थित होकर जप करे। “प्र देवत्रा ब्रह्मणे०'
(१०।३०। १)--इस ऋचाका मरुप्रदेशमें मनुष्य
प्राणान्तक भयके उपस्थित होनेपर नियमपूर्वकं
जप करे। उससे शीघ्र भयमुक्त होकर मनुष्य
दीर्घायु प्राप्त करता है । “प्रा वेपा मा बृहतः०'
(१०।३४। १)-इस एक ऋचाका प्रातःकाल
सूर्योदयके समय मानसिक जप करे । इससे चूतमें
विजयकौ प्राप्ति होती है। 'मा प्र गाम०'
(१०।५७। १)--इस ऋचाका जप करनेसे पथश्रान्त
मनुष्य उचित मार्गको पा जाता है। यदि अपने
किसी प्रिय सुहद्कौ आयु क्षीण हुई जाने तो स्नान
करके "यत्ते यमं०' (१०।५८। १)--इस मन्त्रका
जप करते हुए उसके मस्तकका स्पर्श करे । पाँच
दिनतक हजार बार ऐसा करनेसे वह लंबी आयु
प्राप्त करता है। विद्धान् पुरुष "इदमित्था रौद्र
गूर्तवचा° ' (१०।६१। १)--इस ऋचासे घृतकी
एक हजार आहुतियाँ दे। पशुओंकौ इच्छा
करनेवालेको गोशालामे और अर्थकामीको चौराहेपर
हवन करना चाहिये । * वयःसुपर्णा० ' (१०।७३।
११)-इस ऋचाका जप करनेवाला लक्ष्मीको
प्राप्त करता है। हविष्यान्तमजरं स्वर्विदि०'
(१०। ८८। १)-इस मन्त्रका जप करके मनुष्य
सम्पूर्ण पापोंसे मुक्त हो जाता है, उसके रोग नष्ट
हो जाते हैं तथा उसकी जठराग्रि प्रबल हो जाती
है। “या ओषधय:०' यह मन्त्र स्वस्त्ययन
(मङ्गलकारक) है। इसके जपसे रोगोंका विनाश
हो जाता है। वृष्टिकी कामना करनेवाला 'बृहस्पते
अति यदर्यो०' (२।२३। १५) आदि ऋचाका
प्रयोग करे । 'सर्वत्र० ' इत्यादि मन्त्रके जपसे अनुपम
पराशान्तिकी प्राप्ति होती है, ऐसा जानना चाहिये ।
संतानकी कामनावाले पुरुषके लिये " संकाश्य-
सूक्त *का जप सदा हितकर बताया गया है । ' अहं
रुद्रेभिर्वसुभिः° ' (१०। १२५। ६) -इस ऋचाके
जपसे मानव प्रवचनकुशल हो जाता है। "रात्री
व्यख्यदायती ' (१०।१२७। १)- इस ऋचाका
जप करनेवाला विद्वान् पुरुष पुनर्जन्मको नहीं प्राप्त
होता। रत्रिके समय “रात्रिसूक्त'का जप करनेवाला
मनुष्य रत्रिको कुशलपूर्वक व्यतीत करता है।
"कल्पयन्ती '--इस ऋचाका नित्य जप करनेवाला
शत्रुओंका विनाश करे समर्थ होता है। 'दाक्षायणसूक्त'
महान् आयु एवं तेजकी प्राप्ति कराता है। "उत
देवा:०” (१०। १३७। १)--यह रोगनाशक मन्त्र है।
ब्रतधारणपूर्वक इसका जप करना चाहिये। अग्रिसे