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* अग्निपुराण *
४४७४४ ७४७४७४४४४ ७४ ४ ४४ ४७४४४ ४ ४७७४४ ७४७४ ४७४ ७७७४७ ४ ४४ ७७४४ ७ ४४५४५ ४ ७५ ४ ४ ४ ऋ ७४ ४ ४ ४ ४ ७४ ४४ ४७४४ ४४ ७४४ ७ ४७ ४ ४४४७ ४४४ ७५७७७ ४७७ ७
प्राप्ति होती है। संतानकी अभिलाषा रखनेवाला
वरुणदेवता-सम्बन्धी तीन ऋचाओंका नित्य जप
करें॥ ४४--५०॥
“स्वस्ति न इन्द्रो" (१।८९। ६--८) आदि
तीन ऋचाओंका सदा प्रातःकाल जप करे। यह
महान् स्वस्त्ययन है । "स्वस्ति पन्थामनु चेम"
(५।५१। १५) --इस ऋचाका उच्चारण करके मनुष्य
मार्गमे सकुशल यात्रा करता है । "वि जिहीष्व
वनस्यते० ' (५।७८।५)-के जपसे शत्रु रोगग्रस्त
हो जाते हैं। इसके जपसे गभवेदनासे मूच्छित
स्त्रीको गभकि संकटसे भलीभांति छुटकारा मिल
जाता है। वृष्टिकी कामना करनेवाला निराहार
रहकर भीगे वस्त्र पहने हुए "अच्छा वद०' (५।८३)
आदि सूक्तका प्रयोग करे। इससे शीघ्र ही प्रचुर
वर्षा होती है। पशुधनकी इच्छा रखनेवाला मनुष्य
"मनसः कामम्०' (श्रीसूक्त १०) इत्यादि ऋचाका
जप करे। संतानाभिलाषी पुरुष पवित्र व्रत ग्रहण
करके 'कर्दमेन० ! ( श्रीसूक्त ११)--इस मचसे स्नान
करे। राज्यकी कामना रखनेवाला मानव ' अश्चपूर्वार'
(श्रीसूक्त ३) इत्यादि ऋचाका जप करता हुआ
स्नान करे। ब्राह्मण विधिवत् रोहितचर्मपर, क्षत्रिय
व्याप्रचर्मपर एवं वैश्य बकरेके चर्मपर स्नान करे।
प्रत्येकके लिये दस-दस सहस्र होम॒ करनेका
विधान है। जो सदा अक्षय गोधनकी अभिलाषा
रखता हो, वह गोष्ठमें जाकर 'आ गावो अग्पनुत
भद्रम्०' (६।२८।१) ऋचाका जप करता हुआ
लोकमाता गौको प्रणाम करें और गोचरभूमितक
उसके साथ जाय। राजा 'उप०” आदि तीन ऋचाओंसे
अपनी दुन्दुभियोंकों अभिमन्त्रित करे। इससे वह
तेज और बलकी प्राप्ति करता है और शत्रुपर भी
काबू पाता है। दस्युओंसे धिर जानेपर मनुष्य
हाथमें वृण लेकर ' रक्षोघ्न-सूक्त' (१०। ८७)-का
जप करे। "ये के च ज्मा०' (६।५२। १५)-इस
ऋचाका जप करनेसे दीर्घायुकी प्राप्ति होती है।
राजा “जीमूत-सूक्त से सेनाके सभी अज्ञोंको उसके
चिहके अनुसार अभिमन्त्रित करे। इससे वह रफक्षेत्रमें
शत्रुओंका विनाश करनेमें समर्थ होता है। 'प्राग्रये '
(७।५) आदि तीन सूक्तोंके जपसे मनुष्यको
अक्षय धनकी प्राप्ति होती है। *अमीवहा०'
(७।५५) --इस सूक्छका पाठ करके रात्रिमें भूतोंकी
स्थापना करे । फिर संकट, विषम एवं दुर्गम स्थलमें,
बन्धनमें या बन्धनमुक्त अवस्था, भागते अथवा
पकड़े जाते समय सहायताकी इच्छासे इस सूक्तका
जप करे। तीन दिन निवमपूर्वक उपवास रखकर
खीर और चरु पकावे । फिर ' त्रयम्बकं यजामहे०'
(७।५९। १२) मन्त्रसे उसकी सौ आहुतियाँ भगवान्
महादेवके उद्देश्यसे अग्निमें डाले तथा उसीसे
पूर्णाहुति करे। दीर्घकालतक जीवित रहनेकी
इच्छावाला पुरुष स्नान करके 'तच्चक्षुदेवहितम्० '
(७।६६। १६)--इस ऋचासे उदयकालिक एवं
मध्याह्कालिक सूर्यका उपस्थान करे। “न हि०' आदि
चार ऋचाओंके पाठसे मनुष्य महान् भयसे मुक्त हो
जाता है। 'पर ऋणा सावी:०' (२। २८। ९-१०)
आदि दो ऋचाओंसे होम करनेपर ऐश्वर्यको
उपलब्धि होती है। “इन्द्रा सोमा तपतम्०'
(७। १०४) -से प्रारम्भ होनेवाला सूक्त शत्रुओंका
विनाश करनेवाला कहा गया है। मोहवश जिसका
व्रत भङ्ग हो गया अथवा ब्रात्य-संसर्गके कारण
जो पतित हो गया है, वह उपवास करके 'त्वमग्ने
व्रतपा०' (८।११। १)--इस ऋचासे घृतका होम
करे। '“आदित्य' और “सप्राजा'--इन दोनों
ऋचाओंका जप करनेवाला शास्त्रार्थमें विजयी होता
है। “मही०” आदि चार ऋचाओंके जपसे महान्
भयसे मुक्ति मिलती है । 'यदि०' इत्यादि ऋचाका
जप करके मनुष्य सम्पूर्ण कामनाओंको प्राप्त कर
लेता है । इन्द्रदेवतासम्बन्धिनी बयालीसवीं ऋचाका
जप करनेसे शत्रुओंका विनाश होता है। “वाच
मही० '-- इस ऋचाका जप करके मनुष्य