* अध्याय २५९ *
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दो सौ उनसठवाँ अध्याय
ऋग्विधान-- विविध कामनाओंकी सिद्धिके लिये प्रयुक्त
होनेवाले ऋष्वेदीय मन्त्रोंका निर्देश
अग्निदेव कहते हैं-- वसिष्ठ ! अब मैं महर्षि
पुष्करक द्वारा परशुरामजीके प्रति वर्णित ऋग्वेद,
यजुर्वेद, सामवेद ओर अथर्ववेदका विधान कहता
हूँ, जिसके अनुसार मन्त्रोंक जप और होमसे भोग
एवं मोक्षकी प्राप्ति होती है॥१॥
पुष्कर बोले-- परशुराम ! अब मैं प्रत्येक वेदके
अनुसार तुम्हारे लिये कर्तव्यकर्मोंका वर्णन करता
हूँ। पहले तुम भोग और मोक्ष प्रदान करनेवाले
“ऋग्विधान'को सुनो। गायत्री-मन्त्रका विशेषतः
प्राणायामपूर्वक जलमें खड़े होकर तथा होमके
समय जप करनेवाले पुरुषकी समस्त मनोवाडिछत
कामनाओंको गायत्री देवी पूर्ण कर देती हैं।
ब्रह्मन्! जो दिनभर उपवास करके केवल सात्रिमें
भोजन करता और उसी दिन अनेक बार लान
करके गायत्री-मन्त्रका दस सहस्र जप करता है,
उसका वह जप समस्त पापोंका नाश करनेवाला
है। जो गायत्रीका एक लाख जप करके हवन
करता है, वह मोक्षका अधिकारी होता है। ' प्रणव'
परब्रह्म है। उसका जप सभी पापोंका हनन करनेवाला
है। नाभिपर्यन्त जलमें स्थित होकर ३#कारका सौ
बार जप करके अभिमन्त्रित किये गये जलको
जो पीता है, वह सब पापोंसे मुक्त हो जाता है।
गायत्रीके प्रथम अक्षर प्रणवकी तीन मात्राएँ--
अकार, उकार और मकार--ये ही 'ऋक् ', ' साम'
और “यजुष्'-तीन वेद हैं, ये ही ब्रह्मा, विष्णु
और शिव-तीनों देवता हैं तथा ये ही गार्हपत्य,
आहवनीय और दक्षिणाग्रि--तीनों अग्रियाँ हैं।
गायत्रीकी जो सात महाव्याहतियाँ हैं, वे ही सातों
लोक हैं। इनके उच्चारणपूर्वक गायत्री-मन्त्रसे किया
हुआ होम समस्त पापोंका नाश करनेवाला होता
है। सम्पूर्ण गायत्नी-मन्त्र तथा महाव्याहतियाँ--ये
सब जप करनेयोग्य एवं उत्कृष्ट मन्त्र हैं।
परशुरामजी ! अघमर्षण- मन्त्र 'ऋतं च सत्यं च०
(१०। १९०। १--३) इत्यादि जलके भीतर डुबकी
लगाकर जपा जाय तो सर्वपापनाशक होता है।
'अग्रिमीक्ठे पुरोहितम्०' (ऋग्वेद १।१।१)--
यह ऋग्वेदका प्रथम मन्त्र अग्रिदेवताका सूक्तं है।
अर्थात् "अग्नि" इसके देवता हैं। जो मस्तकपर
अग्निका पात्र धारणं करके एक वर्षतक इस
सूक्तका जप करता है, तीनों काल स्नान करके
हवन करता है, गृहस्थोंके घरमें चूल्हेकी आग
बुझ जानेपर उनके यहाँसे भिक्षान लाकर उससे
जीवननिर्वाह करता है तथा उक्त प्रथम सूक्तके
अनन्तर जो वायु आदि देवताओंके सात सूक्त
(१।१।२ से ८ सूक्त) कहे गये हैं, उनका भी
जो प्रतिदिन शुद्धचित्त होकर जप करता है, वह
मनोवाज्छित कामनाओंको प्राप्त कर लेता है। जो
मेधा (धारण-शक्ति)-को प्राप्त करना चाहे, वह
प्रतिदिन 'सदसस्पति० ' (१।१८। ६--८) इत्यादि
तीन ऋचाओंका जप करे॥ २--११॥
"अप्यो यन्त्यध्वभिः°' (१। २३। १६-- २४)
आदि-ये नौ ऋचाएँ अकालमृत्युका नाश
करनेवाली कही गयी हैं। कैदमें पड़ा हुआ
या अवरुद्ध (नजरबंद) द्विज "शुनःशेषो
यमह्वद्गुभीतः०' (१। २४। १२--१४) इत्यादि तीन
ऋचाओंका जप करे । इसके जपसे पापी समस्त
पापोंसे छूट जाता है ओर रोगी रोगरहित हो जाता
है। जो शाश्वत कामनाकी सिद्धि एवं बुद्धिमान्
मित्रकी प्राप्ति चाहता हो, वह प्रतिदिन इन्द्रदेवताके
*उन्द्रस्थ>" आदि सोलह ऋचाओंका जप करे।
“हिरण्यस्तृपः° ' (१०। १४९।५) इत्यादि मन्त्रका
जप करनेवाला शत्रुओंकी गतिविधिमें बाधा पहुँचाता