* अध्याय २५८ *
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और अधिक जनसमूहकी दौड़-धूपसे चोरका
पदचिह्न मिट गया हो तो पाँच गाँवके लोग
अथवा दस गाँवके लोग मिलकर चोरको पकड॒वाने
तथा चोरीका माल वापस देनेका उत्तरदायित्व
अपने ऊपर लें। बंदीको गुप्तरूपसे जेलसे छुड़ाकर
भगा ले जानेवाले, घोड़ों और हाथियोंकी चोरी
करनेवाले तथा बलपूर्वक किसीकी हत्या करनेवाले
लोगोंको राजा शूलीपर चढ़वा दे। राजा वस्त्र
आदिकी चोरी करनेवाले और गठरी आदि
काटनेवाले चोरोंके प्रथम अपराधमें क्रमशः अङ्गुष्ठ
ओर तर्जनी कटवा दे ओर दूसरी बार वही
अपराध करनेपर उन दोनोंको क्रमशः एक हाथ
तथा एक पैरसे हीन कर दे। जो मनुष्य जान-
बूझकर चोर या हत्यारेको भोजन, रहनेके लिये
स्थान, सर्दीमें तापनेके लिये अग्नि, प्यास हृएको
जल, चोरी करनेके तौर- तरीकेकी सलाह, चोरीके
साधन और उसी कार्यके लिये परदेश जानेके
लिये मार्गव्यय देता है, उसको उत्तम साहसका
दण्ड देना चाहिये । दूसरेके शरीरपर घातक शस्त्रसे
प्रहार करने तथा गर्भवती स्त्रीके गर्भ गिरानेपर भी
उत्तम साहसका ही दण्ड देना उचित है। किसी
भी पुरुष या स्त्रीकी हत्या करनेपर उसके शील
और आचारको दृष्टिमें रखते हुए उत्तम या अधम
साहसका दण्ड देना चाहिये। जो पुरुषकी हत्या
करनेवाली तथा दूसरोंको जहर देकर मारनेबाली
है, ऐसी स्त्रीके गलेमें पत्थर बाँधकर उसे पानीमें
फेंक देना चाहिये; (परंतु यदि वह गर्भवती हो
तो उस समय उसे ऐसा दण्ड न दे।) विष
देनेवाली, आग लगानेवाली तथा अपने पति, गुरु
या संतानको मारनेवाली स्त्रीको कान, हाथ, नाक
और ओठ काटकर उसे साँड्रोंसे कुचलवाकर
मरवा डाले। खेत, घर, वन, ग्राम, रक्षित भूभाग
अथवा खलिहानमें आग लगानेवाले या राजपन्नीसे
समागम करनेवाले मनुष्यकों सूखे नरकुल या
सरकंडों-तिनकॉंसे ढककर जला दे ॥ ५५--६७॥
स्त्री-संग्रहण
(अब 'स्त्री-संग्रहण' नामक विवादपर विचार
किया जाता है। परायी स्त्री और पराये पुरुषका
मिथुनीभाव (परस्पर आलिङ्गन) 'स्त्री-संग्रहण'
कहलाता है। दण्डनीयताकी दृष्टिसे इसके तीन
भेद है -- प्रथम, मध्यम और उत्तम। अयोग्य देश
और काले, एकान्त स्थानमें, बिना कुछ बोले-
चाले परायी स्त्रीको क्ाक्षपूर्वक देखना और
हास्य करना “प्रथम साहस" माना गया है । उसके
पास सुगन्धित वस्तु -इत्र-फुलेल आदि, फूलोके
हार, धूप, भूषण और वस्त्र भेजना तथा उन्हें
खाने-पीनेका प्रलोभन देना “मध्यम साहस" कहा
गया है । एकान्त स्थानोमिं एक साथ एकं आसनपर्
बैठना, आपसे सरना, एक-दूसरेके केश पकड़ना
आदिको "उत्तम संग्रहण" या "उत्तम साहस ' माना
गया है। संग्रहणके कार्यमें प्रवृत्त पुरुषको बंदी
बना लेना चाहिये - यह बात निम्नाङ्भित श्लोकमें
बता रहे है-)
केशग्रहणपूर्वक परस्त्रीके साथ क्रीड़ा करनेवाले
पुरुषको व्यभिचारके अपराधमें पकड़ना चाहिये।
सजातीय नारीसे समागम करनेवालेको एक हजार
पण, अपनेसे नीच जातिकी स्त्रीसे सम्भोग
करनेवालेको पाँच सौ पण एवं उच्चजातिकी नारीसे
संगम करनेवालेको वधका दण्ड दे और ऐसा
करनेवाली स्त्रीके नाक-कान आदि कटवा डाले।
जो पुरुष परस्त्रीकी नीवी (कटिवस्त्र), स्तन, कञ्चुकी,
नाभि और केशोंका स्पर्श करता है, अनुचित
देशकालमें सम्भाषण करता है, अथवा उसके
साथ एक आसनपर बैठता है, उसे भी व्यभिचारके
दोषमें पकड़ना चाहिये। जो स्त्री मना करनेपर भी
परपुरुषके साथ सम्भाषण करे, उसको सौ पण
और जो पुरुष निषेध करनेपर भी परस्त्रीके साथ
सम्भाषण करे तो उसे दो सौ पणका दण्ड देना