उसको मार डालनेपर मध्यम साहसका दण्ड दे | करवाता है, उससे उस साहसके लिये कथित
और अपराधीसे स्वामीको उस पशुका मूल्य दिलाये।
महान् पशु-हाथी-घोड़े आदिके प्रति दुःखोत्पादन
आदि पूर्वोक्त अपराध करनेपर क्षुद्र पशुओंकी
अपेक्षा दूना दण्ड जानना चाहिये। जिनकी डालियाँ
काटकर अन्यत्र लगा दी जानेपर अतह
जाती हैं, वे बरगद आदि वृक्ष "प्ररोहिशाखी '
कहलाते रै । ऐसे प्ररोही वृक्षोंकी तथा जिनकी
डालियाँ नहीं होतीं, परंतु जो
जीविका साधन बनते हैं, उन आम
आदि वृक्षोंकी शाखा, स्कन्ध तथा मूलसहित
समूचे वृक्षका छेदन करनेपर क्रमश: बीस पण,
चालीस पण और अस्सी पण दण्ड लगानेका
विधान है॥ १२--२५॥
साहस-प्रकरण
(अब 'साहस' नामक विवादपदका विवेचन
करनेके लिये पहले उसका लक्षण बताते हैं--)
सामान्य द्रव्य अथवा परकीय द्रव्यका बलपूर्वक
अपहरण ' साहस ' कहलाता है । (यहाँ यह कहा
गया कि राजदण्डका उल्लङ्घनं करके, जनसाधारणके
आक्रोशकी कोई परवा किये बिना राजकीय
पुरुषासे भिन लोगोंके सामने जो मारण, अपहरण
तथा परस्त्रीके प्रति बलात्कार आदि किया
जाता है, वह सब ' साहस "कौ कोटिमे आता
है।) जो दूसरोंके द्रव्यका अपहरण करता है,
उसके ऊपर उस अपहत द्रव्यके मूल्यसे दूना
दण्ड लगाना चाहिये! जो 'साहस' (लूट-पाट,
डकैती आदि) कर्म करके उसे स्वीकार नहीं
करता--' मैंने नहीं किया है '--ऐसा उत्तर देता है,
उसके ऊपर बस्तुके मूल्यसे चौगुना दण्ड लगाना
उचित है॥ २६॥
दण्डसे दूना दण्ड लेना चाहिये। जो ऐसा कहकर
कि “मैं तुम्हें धन दूँगा, तुम 'साहस' (डकैती
आदि) करो”, दूसरेसे 'साहस'का काम कराता
है, उससे साहसिकके लिये नियत दण्डकी
अपेक्षा चौगुना दण्ड वसूल करना चाहिये। श्रेष्ठ
पुरुष (आचार्य आदि)-की निन्दा या आज्ञाका
उल्लब्लन करनेवाले, भ्रातृपत्री (भौजाई या
भयहु)-पर प्रहार करनेवाले, प्रतिज्ञा करके न
देनेवाले, किसीके बंद घरका ताला तोड़कर
खोलनेवाले तथा पड़ोसी और कुटुम्बीजनॉंका
अपकार करनेवालेपर राजा पचास पणका दण्ड
लगावे, यह शास्त्रका निर्णय है॥ २७-२८ ॥
(बिना नियोगके) स्वेच्छाचारपूर्वक विधवासे
गमन करनेवाले, संकटग्रस्त मनुष्यके पुकारनेपर
उसकी रक्षाके लिये दौड़कर न जानेवाले, अकारण
ही लोगोंको रक्षाके लिये पुकारनेवाले, चाण्डाल
होकर श्रेष्ठ जातिवालोंका स्पर्श करनेवाले, दैव
एवं पितृकार्यमें संन्यासीको भोजन करानेवाले,
शुद्र, अनुचित शपथ करनेवाले, अयोग्य
(अनधिकारी) होनेपर भी योग्य (अधिकारी )-
के कर्म (वेदाध्ययनादि) करनेवाले, बैल एवं शुद्र
पशु- बकरे आदिको बधिया करनेवाले, साधारण
वस्तु भी ठगी करनेवाले तथा दासीका गर्भ
गिरानेवालेपर एवं पिता-पुत्र, बहिन-भाई, पति-
पत्नी तथा आचार्य -शिष्य -ये पतित न होते हए
भी यदि एक-दूसरेका त्याग करते हों तो इनके
ऊपर भी सौ पण दण्ड लगावे। यदि धोबी
दूसरोंके वस्त्र पहने तो तीन पण और यदि बेचे,
भाड़ेपर दे, बन्धक रखे या मँगनी दे, तो दस पण
अर्थदण्डके योग्य होता है”। तोलनदण्ड, शासन,
जो मनुष्य दूसरेसे डकैती आदि ' साहस ' | मान (प्रस्थ, द्रोण आदि) तथा नाणक (मुद्रा
* उपर्युक्त अपराधोंके लिये जो राजदण्ड है, वही मूलम बताया या है; परंतु जो वस्त्र उसने गायब कर दिया हो, उसका मूल्य
यह वस्त्र-स्वामीकों अलगसे दे। मनुजीने यह व्यवस्था दौ है कि "यदि वस्व एक करका धुला है तो धोबी उसके मूल्यका आष्टा
कम करक शेष मूल्य स्थामौकों चुकावे। इसी तरह कई बारके धुले हुए वस्त्रका पादश, तृतीयांश इत्यादि कम करके यह लौटाबे।'