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गया हो तो राजा जीतनेवालेको जीतका धन | मनुष्योंके ललाटमें चिह्न करके राजा उन्हें देशसे

दिला दे, अन्यथा न दिलाये। द्यूत-व्यवहारको | निर्वासित कर दे। चोरोंको पहचाननेके लिये दयते

देखनेवाले सभासदके पदपर राजा उन जुआरियोंकों | एक ही किसीको प्रधान बनावे, यही विधि ' प्राणि-

ही नियुक्त करे तथा साक्षी भी द्यूतकारोंको ही | घृत-समाहय' (घुड़दौड़) आदिमें भी जाननी

बनाये। कृत्रिम पाशोंसे छलपूर्वक जूआ खेलनेवाले | चाहिये॥ ४९--५३ ॥

इस प्रकार आदि आग्रेय महापुराणमें 'सीमा-विवादादिके कथनका निर्णय” नामक

दो सौ सतावनवाँ अध्याय पूरा हुआ॥ २५७ ॥

~+

दो सौ अट्डवावनवाँ अध्याय

व्यवहारके वाक्पारुष्य, दण्डपारुष्य, साहस, विक्रियासम्प्रदान, सभ्भूय-समुत्थान,

स्तेय, स्त्री-संग्रहण तथा प्रकीर्णक- इन विवादास्पद विषयोंपर विचार

वाक्पारुष्य

(अब ' वाक्पारष्य' ( कठोर गाली देने आदि) -

के विषये विचार किया जाता है । इसका लक्षण

नारदजीने इस प्रकार बताया है -' देश, जाति

और कुल आदिको कोसते हुए उनके सम्बन्धे

जो अश्लील और प्रतिकूल अर्थवाली बात कही

जाती है, उसको " वाक्पारुष्य ' कहते हैं।'' प्रतिकूल

अर्थवालीसे तात्पर्य है-- उद्रेगजनक वाक्यसे। जैसे

कोई कहे--' गौडदेशवाले बडे झगड़ालू होते हैं'

तो यह देशपर आक्षेप हुआ। ' ब्राह्मण बड़े लालची

होते हैं'-यह जातिपर आक्षेप हुआ, तथा

“विश्चामित्रगोत्रीय बड़े क्रूर चरित्रवाले होते हैं '--

यह कुलपर आक्षेप हुआ। यह “वाक्पारुष्य' तीन

प्रकारका होता है--' निष्ठुर', 'अश्लील' और ' तीत्र' ।

इनका दण्ड भी उत्तरोत्तर भारी होता है । आक्षेपयुक्त

वचनको “निष्ठुर' कहते हैं, जिसमें अभद्र बात

कही जाय, वह 'अश्लील' है और जिससे किसीपर

पातकी होनेका आरोप हो, वह वाक्य 'तीत्र' है।

जैसे किसीने कहा--'तू मूर्ख है, मौगड़ है, तुझे

धिवकार है '--यह साक्षेप वचन ' निष्ठुर "की कोटिमें

आता है, किसीकी माँ-बहिनके लिये गाली निकालना

शराबी है, गुरुपब्रीगामी है '--ऐसा कटुवचन 'तीत्र'

कहा गया है। इस तरह वाक्पारुष्यके अपराधोंपर

दण्डविधान कैसे किया जाता है, इसीका यहाँ

विचार है-]

जो न्युनाङ्ग (लँगड़े-लूले आदि) हैं, न्यूनेन्द्रिय

(अन्धे-बहरे आदि) हैं तथा जो रोगी (दूषित

चर्मवाले, कोढ़ी आदि) हैं, उनपर सत्यवचन,

असत्यवचन अथवा अन्यथा-स्तुतिके द्वारा कोई

आक्षेप करे तो राजा उसपर साढ़े बारह पण दण्ड

लगाये। (“इन महोदयकी दोनों आँखें नहीं हैं,

इसलिये लोग इन्हें 'अंधा' कहते हैं''---यह

सत्यवचनद्वारा आक्षेप हुआ। “इनकी आँखें तो

सही-सलामत हैं, फिर भी लोग इन्हें *अंधा'

कहते हैं '"- यह असत्यवचनद्वारा आक्षेप हुआ।

"तुम विकृताकार होनेसे ही दर्शनीय हो गये हो"

यह “अन्यथास्तुति' है ।) ॥ १॥

जो मनुष्य किसीपर आक्षेप करते हुए इस

प्रकार कहे कि “मैं तेरी बहिनसे, तेरी मंसि

समागम करूँगा' तो राजा उसपर पचीस पणका

अर्थदण्ड लगाये । यदि गाली देनेवालेकी अपेक्षा

गाली पानेवाला अधम* है तो उसको गाली

"अश्लील ' है ओर किसीको यह कहना कि “तू | देनेके अपराधे श्रेष्ठ पुरुषपर उक्त दण्डका आधा

* गुण और आचरणक्छौ दृष्टिसे गिरा हुआ।

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