हुआ ऋण अपनी वृद्धिके क्रमसे दूना होकर | किया जा सकता। यदि स्वामीने उस वस्तुको
आधिपर चढ़ जाय और धनिकको आधिसे दूना | माँगा हो और धरोहर रखनेवालेने नहीं दिया हो,
धन प्राप्त हो गया हो तो वह आधिको छोड़ दे।
(ऋणग्राहीको लौटा दे)॥ २१--२४॥
उपनिधि-प्रकरण'- यदि निक्षेप-द्रव्यके
आधारभूत वासन या पेटी आदिमं धरोहरकी
वस्तु रखकर उसे सील-मोहरसहित बन्द करके
वस्तुका स्वरूप या संख्या बताये बिना ही विश्वास
करके किसी दूसरेके हाथमे रक्षाके लिये उसे
दिया जाता है तो उसे " उपनिधि-द्रव्य ' कहते है ।
उसे स्थापकके माँगनेपर ज्यों-का-त्यों लौटा देना
चाहिये'। यदि उपनिधिकी वस्तु राजाने बलपूर्वक
ले ली हो या दैवी बाधा (आग लगने आदि)-से
नष्ट हुई हो, अथवा उसे चोर चुरा ले गये हों तो
जिसके यहाँ वह वस्तु रखी गयी थी, उसको
वह वस्तु देने या लौयनेके लिये बाध्य नहीं
उस दशामें यदि राजा आदिकी बाधासे उस वस्तुका
नाश हुआ हो तो रखनेवाला उस वस्तुके अनुरूप
मूल्य मालधनीको देनेके लिये विवश किया जा
सकता है और राजाको उससे उतना ही दण्ड
दिलाया जाय। जो मालधनीकी अनुमति लिये
बिना स्वेच्छासे उपनिधिकी वस्तुको भोगता या
उससे व्यापार करता है, वह दण्डनीय है । यदि
उसने उस बस्तुका उपभोग किया है तो वह
सृदसहित उस वस्तुको लौटाये और यदि व्यापारे
लगाकर लाभ उठाया है तो लाभसहित वह वस्तु
मालधनीको लौटाये ओर उतना ही दण्ड राजाको
दे। याचित, अन्वाहित, न्यास" और निक्षेप
आदिमे यह उपनिधि-सम्बन्धी विधान ही लागू
होता है ॥ २५--२८॥
इस प्रकार आदि आग्नेय महापुराणमें “स्यवहठारका कथन " नामक
दो सौ चौवतवां अध्याय पूरा हुआ॥ २५४॥
नदर
दो सौ पचपनवाँ अध्याय
साक्षी, लेखा तथा दिव्यप्रमाणोके विषयमे विवेचन
"साक्षी-प्रकरण'
अग्निदेव कहते हैं-- वसिष्ट! तपस्वी, कुलीन,
दानशील, सत्यवादी, कोमलहदय, धर्मात्मा, पुत्रयुक्त,
धनी, पञ्चयज्ञ आदि वैदिक क्रियाओंसे युक्त अपनी
जाति ओर वगकि पाँच या तीन साक्षी होने चाहिये।
अथवा सभी मनुष्य सबके साक्षी हो सकते हैं;
किंतु स्त्री, बालक, वृद्ध, जुआरी, मत्त (शराव
आदि पीकर मत्तवाला), उन्मत्त (भूत या ग्रहके
आवेशसे युक्त), अभिशस्त (पातकी), रंगमझपर
उत्तरनेवाला चारण, पाखण्डी, कूटकारी (जालसाज),
विकलेन्िय (अंधा, बहरा आदि), पतित, आप्त
(मित्र या सगे-सम्बन्धी), अर्थ-सम्बन्धी
१. जो वस्तु बिद्य गिनती या स्वरूप बताये सोल-मोहर करके धरोहर रखी जाती है, उसे “उपनिधि " समझे ओर जो गिनकर,
दिखाकर रखो जातो है, उसे “निश्चेप' स्डागा जाता हैं। जैसा कि नारदका कचन है--
*असंख्यातसबिज्ञातं समुद्रं यत्विधीयते। तस्जानीयादुपनिधिं निक्षेपं गणितं विदु- ॥'
२. विवाह आदि उत्स मैगनीके तौरपर माँगकर लाये हुए वस्त्र और आभूषण आदिको “याचित' कहते हैं।
३, एकके हाथमें रखी हुई वस्तुको वहाँसे लेकर दूसरेके हाथमे ररौ आय तो उसे “अन्याहित' कहते हैं।
४. घरके मालिकके परोक्षमें हौ भरव्ालोंके हाथमें जो धरोहरको वस्तु यह कहकर दी जाती है कि गृहस्थामोके आनेपर उन्हें
यह वस्तु दे दौ जाय तो उसको "न्यास" कहते है ।
५. सबके सामने गितकर, दिखाकर जो चस्तु धरोहर रखो जातो है, ठसका नाम “निश्षेप' है ।