Home
← पिछला
अगला →

दो सौ इक्यावनवाँ अध्याय

पाशके निर्माण और प्रयोगकी विधि तथा तलवार और लाठीको अपने

पास रखने एवं शत्रुपर चलानेकी उपयुक्त पद्धतिका निर्देश

अग्निदेव कहते हैं-- ब्रह्मन्‌! जिसने हाथ, मन

और दृष्टिको जीत लिया है, ऐसा लक्ष्यसाधक

नियत सिद्धिको पाकर युद्धके लिये वाहनपर आखूदढ

हो। 'पाश” दस हाथ बड़ा, गोलाकार और हाथके

लिये सुखद होना चाहिये। इसके लिये अच्छी

मूँज, हरिणकी ताँत अथवा आकके छिलकोंकी

डोरी तैयार करानी चाहिये। इनके सिवा अन्य

सुदृढ़ (पटसूत्र आदि) वस्तुओंका भी सुन्दर पाश

बनाया जा सकता है। उक्त सूत्रों या रस्सियोंको

कई आवृत्ति लपेटकर खूब बट ले। विज्ञ पुरुष

तीस आवृत्ति करके बटे हुए सूत्र या रस्सीसे ही

पाशका निर्माण करे॥ १--३॥

शिक्षकोंको पाशकी शिक्षा देनेके लिये कक्षाओंमें

स्थान बनाना चाहिये। पाशको बायें हाथमे लेकर

दाहिने हाथसे उधेडे। उसे कुण्डलाकार बना, सब

ओर घुमाकर शत्रुके मस्तकके ऊपर फेंकना चाहिये।

पहले तिनकेके बने और चमड़ेसे मदे हुए पुरुषपर

उसका प्रयोग करना चाहिये। तत्पश्चात्‌ उछलते-

कूदते और जोर-जोरसे चलते हुए मनुष्योंपर

सम्यक्रूपसे विधिवत्‌ प्रयोग करके सफलता प्राप्त

कर लेनेपर ही पाशका प्रयोग करे। सुशिक्षित

योद्धाको पाशद्वारा यथोचित रीतिसे जीत लेनेपर

ही शत्रुके प्रति पाश-बन्धनकी क्रिया करनी

चाहिये॥ ४-६ | ॥

तदनन्तर कमरमें म्यानसहित तलवार बोधकर

उसे बायीं ओर लटका ले और उसकी म्यानको

बायें हाथसे दृढ़ताके साथ पकड़कर दाये हाथसे

तलवारको बाहर निकाले। उस तलवारकी चौड़ाई

छः अङ्गुल और लंबाई या ऊँचाई सात हाथकी

हो ॥ ७-८ ॥

लोहेकी बनी हुई कई शलाकाएँ और नाना

प्रकारके कवच अपने आधे या समूचे हाथमें लगा

ले; अगल-बगलमें और ऊपर-नीचे भी शरीरकी

रक्षाके लिये इन सब वस्तुओंको विधिवत्‌ धारण

करे॥९॥

युद्धरमे विजयके लिये जिस विधिसे जैसी

योजना बनानी चाहिये, वह बताता हूँ, सुनो ।

तूणीरके चमड़ेसे मढ़ी हुई एक नयी और मजबूत

लाठी अपने पास रख ले। उस लाठीको दाहिने

हाथकी अँगुलियोंसे उठाकर बह जिसके ऊपर

जोरसे आघात करेगा, उस शत्रुका अवश्य नाश

हो जायगा। इस क्रियामें सिद्धि मिलनेपर वह

दोनों हाथोंसे लाठीको शत्रुके ऊपर गिराबे। इससे

अनायास ही वह उसका वध कर सकता है। इस

तरह युद्धमें सिद्धिकी बात बतायी गयी। रणभूमिमें

भलीभाँति संचरणके लिये अपने वाहनोंसे श्रम

कराते रहना चाहिये, यह बात तुम्हें पहले बतायी

गयी है॥ १०--१२॥

इस ग्रकार आदि आग्रेय महापुराणमें 'धनुर्वेदका कथत” नामक

दो सौ इक्यावनयाँ अध्याय पूरा हुआ॥ २५१ #

(य+

← पिछला
अगला →