जो लोभी हो और आर्थिक दृष्टिसे क्षीण हो |
चला हो, उसको दानद्रारा सत्कारपूर्वक वशमें
करे। परस्पर शङ्कासे जिनमें फूट पड़ गयी हो
तथा जो दुष्ट हों, उन सबको दण्डका भय दिखाकर
वशमे ले आये । पुत्र और भाई आदि बन्धुजनोको
सामनीतिद्वारा एबं धन देकर वशीभूत करे ।
सेनापतियों, सैनिकों तथा जनपदके लोगोको दान
ओर भेदनीतिके द्वारा अपने अधीन करे । सामन्तं
(सीमावर्ती नरेशों ), आटविको ( वन्य-प्रदेशके
शासकों) तथा यथासम्भव दूसरे लोगोंको भी भेद
ओर दण्डनीतिसे वशमें करे ॥ ६१-६२॥
देवताओंकी प्रतिमाओं तथा जिनमें देवताओंकी
मतिं खुदी हो, ऐसे खंभोके बड़े-बड़े छिद्रोंमें
छिपकर खड़े हुए मनुष्य "मानुषी माया' हैं।'
स्त्रीके कपड़ोंसे ढँका हुआ अथवा रत्रिमे अद्धुतरूपसे
दर्शन देनेवाला पुरुष भी ' मानुषी माया' है। वेताल,
मुखसे आग उगलनेवाले पिशाच तथा देवताओंके
समान रूप धारण करना इत्यादि ' मानुषी माया"
है। इच्छानुसार रूप धारण करना, शस्त्र, अग्रि,
पत्थर और जलकी वर्षा करना तथा अन्धकार
आँधी, पर्वत ओर मेघोकौ सृष्टि कर देना-यह
"अमानुषी माया" है । पूर्वकल्पकी चतुर्युगीमें जो
द्वापर आया था, उसमें पाण्डुवंशी भीमसेनने स्त्रीक
समान रूप धारण करके अपने शत्रु कौचकको
मारा था॥ ६३--६५॥
अन्याय (अदण्ड्यदण्डन आदि), व्यसन
(मृगया आदि) तथा बड़ेके साथ युद्धमें प्रवृत्त हुए
आत्मीय जनको न रोकना ' उपेक्षा' है । पूर्वकल्पवर्ती
भीमसेनके साथ युद्धमें प्रवृत्त हए अपने भाई
हिडिम्बको हिडिम्बाने मना नहीं किया, अपने
स्वार्थकी सिद्धिके लिये उसकी उपेक्षा कर दी ॥ ६६॥
मेघ, अन्धकार, वर्षा, अग्रि, पर्वत तथा अन्य
अद्भुत वस्तुओंको दिखाना, दूर खड़ी हुई
ध्वजशालिनी सेनाओंका दर्शन कराना, शत्रुपक्षके
सैनिकोंको कटे, फाड़े तथा विदीर्ण किये गये
और अज्जोंसे रक्तकी धारा बहाते हुए दिखाना-
यह सब 'इन्द्रजाल' है। शत्रुओंको डरानेके लिये
इस इन्द्रजालकी कल्पना करनी चाहिये॥ ६७-६८ ॥
इस ग्रकार आदि आग्रेय महापुराणमें "साय आदि उपायोका कथन" नामक
दो सौँ इकतालीसयाँ अध्याय पूरा हज ॥ २४९ #
व ० अमन
दो सौ बयालीसवाँ अध्याय
सेनाके छः भेद, इनका बलाबल तथा छः अङ्ग
श्रीराम कहते हैं-- छः प्रकारकी सेनाको | करें। मौल, भृत, श्रेणि, सुहदू, शत्रु तथा आटविक--
कवच आदिसे संनद्ध एवं व्यूहबद्ध करके इष्ट | ये छः प्रकारके सैन्य हैं।' इनमें परकी अपेक्षा
देवताओंकी तथा संग्रामसम्बन्धी दुर्गा आदि | पूर्व-पूर्व सेना श्रेष्ठ कही गयी है। इनका व्यसन
देवियोंकी पूजा करनेके पश्चात् शत्रुपर चढ़ाई | भ इसी क्रमसे गरिष्ठ माना गया है। पैदल,
१. बहाँ छिपे हुए मनुष्य यधास्तसमय निकलकर शत्रुपर टूट पड़ते हैं या वहाँसे शतुके विनाशकी सूचना देते हैं। शत्रुपर यह प्रभाव
डालते हैं कि विजिगोपुकी सेकासे प्रसने होफर हम देवता ही उस्तकों सहायता कर रहें हैं।
२. मूलभूत पुरुषके सम्बन्धोंसे चली आनेवालों वंशपम्पगगत्त सेना ' मील ' कही गयी है। आजीविका देकर जिसका भरण-पोपण
किया गया हो, बह ' भूत" बल है। जनपदफे अन्तर्गत जो व्यब्सायियों तथा कारोंगरोंका संष है, उनको सेना ' ब्रेणियल ' है । सहायताके
लिये आये हुए मिन्रकी सेना 'सुददबल' है। अपनी दण्डशक्तिसे वराम को गयी सेवा “शत्रुबल” है तथा स्वमण्डलके अन्तर्गत अटयो
( जंगल) - का उपभोग करनेवालॉको " आटयिक' कहते हैं। उनको सेना आटविकं बल ' है।