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हों, उनको युद्धभूमिसे दूर हटाना, युद्धके भीतर

जाकर हाथियोंको पानी पिलाना तथा हथियार

पहंचाना-ये सब पैदल सिपाहियोंके कार्य हैं।

अपनी सेनाका भेदन करनेकी इच्छा रखनेवाले

शत्रुओंसे उसकी रक्षा करना और संगठित होकर

युद्ध करनेवाले शत्रु-वीरोंका व्यूह तोड़ डालना--

यह ढाल लेकर युद्ध करनेवाले योद्धाओंका कार्य

बताया गया है। युद्धमें विपक्षी योद्धाओंकों मार

भगाना धनुर्धर बीरोंका काम है। अत्यन्त घायल

हुए योद्धाको युद्धभूमिसे दूर ले जाना, फिर युद्धमें

आना तथा शत्रुकी सेनामें त्रास उत्पन्न करना--

यह सब रथी वीरोका कार्य बतलाया जाता है।

संगठित व्यूहको तोड़ना, टूटे हुएको जोड़ना तथा

चहारदीवारी, तोरण (सदर दरवाजा), अट्टालिका

और वृक्षोंको भज् कर डालना-यह अच्छे हाथीका

पराक्रम है। ऊँची-नीची भूमिको पैदल सेनाके

लिये उपयोगी जानना चाहिये, रथ और घोड़ोंके

लिये समतल भूमि उत्तम है तथा कीचड्से भरी

हुई युद्धभूमि हाथियोंके लिये उपयोगी बतायी

गयी है॥ ४४--४९ ३ ॥

इस प्रकार व्यूह-रचना करके जब सूर्य पीठकी

ओर हों तथा शुक्र, शनैश्वर और दिक्पाल अपने

अनुकूल हों, सामनेसे मन्द-मन्द हवा आ रही

हो, उस समय उत्साहपूर्वक युद्ध करे तथा नाम

एवं गोत्रकी प्रशंसा करते हुए सम्पूर्ण योद्धाओंमें

उत्तेजना भरता रहे। साथ ही यह बात भी

बताये कि “युद्धमें विजय होनेपर उत्तम-उत्तम

भोगोंकी प्राप्ति होगी और मृत्यु हो जानेपर स्वर्गका

सुख मिलेगा।' वीर पुरुष शत्रुओंको जीतकर

मनोवाउिछत भोग प्राप्त करता है और युद्धमें

प्राणत्याग करनेपर उसे परमगति मिलती है। इसके

सिवा वह जो स्वामीका अनन खाये रहता है,

शरीरसे जब रक्त निकलता है, तब वे पापमुक्त हो

जाते हैं। युद्धमें जो शस्त्र-प्रहार आदिका कष्ट

सहना पड़ता है, वह बहुत बड़ी तपस्या है। रणमें

प्राणत्याग करनेवाले शूरबीरके साथ हजारों सुन्दरी

अप्सराएँ चलती हैं। जो सैनिक हतोत्साह होकर

युद्धसे पीठ दिखाते हैं, उनका सारा पुण्य

मालिकको मिल जाता है और स्वयं उन्हें पग-

पगपर एक-एक ब्रह्महत्याके पापका फल प्राप्त

होता है। जो अपने सहायकॉंको छोड़कर चल

देता है, देवता उसका विनाश कर डालते हैं। जो

युद्धसे पीछे पैर नहीं हटाते, उन बहादुरोंके लिये

अश्वमेध-यज्ञका फल बताया गया है ॥ ५०--५६ ॥

यदि राजा धर्मपर दृढ़ रहे तों उसको विजय

होती है। योद्धाओंको अपने समान योद्धाओंके

साथ ही युद्ध करना चाहिये। हाथीसवार आदि

सैनिक हाथीसवार आदिके ही साथ युद्ध करें।

भागनेवालोंकों न मारें। जो लोग केवल युद्ध

देखनेके लिये आये हों, अथवा युद्धमें सम्मिलित

होनेपर भी जो शस्त्रहीन एवं भूमिपर गिरे हुए हों,

उनको भी नहीं मारना चाहिये। जो योद्धा शान्त

हो या थक गया हो, नींदमें पड़ा हो तथा नदी

या जंगलके बीचमें उतरा हो, उसपर भी प्रहार

न करे। दुर्दिनमें शत्रुके नाशके लिये कूटयुद्ध

(कपटपूर्ण संग्राम) करे। दोनों बाहें ऊपर उठाकर

जोर-जोरसे पुकारकर कहे -' यह देखो, हमारे

शत्रु भाग चले, भाग चले। इधर हमारी ओर

मित्रोंकी बहुत बड़ी सेना आ पहुँची; शत्रुओंकी

सेनाका संचालन करनेवाला मार गिराया

गया। यह सेनापति भी मौतके घाट उतर गया।

साथ ही शत्रुपक्षके राजाने भी प्राणत्याग कर

दिया! ॥ ५७ --६०॥

भागते हुए विपक्षी योद्धाओंको अनायास ही

उसके ऋणसे छुटकारा पा जाता है; अतः युद्धके | मारा जा सकता है । धर्मके जाननेवाले परशुरामजी !

समान श्रेष्ठ गति दूसरी कोई नहीं दै । शूरवीरोंके

शत्रुओंको मोहित करनेके लिये कृत्रिम धूपकी

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