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बताये गये हैं। हंस, मृग, बिलाव, नेवला, रीछ, सर्प,

वृकारि, सिंह, व्याघ्र, ऊँट, ग्रामीण सूअर, मनुष्य

श्वाविद, वृषभ, गोमायु. वृक, कोयल, सारस, घोड़े,

गोधा और कौपीनधारी पुरुष-ये दिन और रात

दोनोंमें चलनेवाले हैँ ॥ ११-१९॥

युद्ध और युद्धकी यात्राके समय यदि ये सभी

जीव झुंड बांधकर सामने आवे तो विजय

दिलानेवाले बताये गये हैं; किंतु यदि पीछेसे आयें

तो मृत्युकारक माने गये हैं। यदि नीलकण्ठ अपने

घोंसलेसे निकलकर आवाज देता हुआ सामने

स्थित हो जाय तो वह राजाको अपमानकौ सूचना

देता है ओर जब वह वामभागे आ जाय तो

कलहकारक एवं भोजनमें बाधा डालनेवाला होता

है । यात्राके समय उसका दर्शन उत्तम माना गया

है; उसके बायें अंगका अवलोकन भी उत्तम है।

यदि यात्राके समय मोर जोर-जोरसे आवाज दे

तो चोरोंके द्वारा अपने धनकी चोरी होनेका संदेश

देता है॥ २०--२२॥

परशुरामजी ! प्रस्थानकालमें यदि मृग आगे-

आगे चले तो वह प्राण लेनेवाला होता है। रीछ,

चूहा, सियार, बाघ, सिंह, बिलाव, गदहे--ये यदि

प्रतिकूल दिशामें जाते हों, गदहा जोर-जोरसे रकता

हो ओर कपिञ्जल पक्षी बायीं अथवा दाहिनी ओर

स्थित हो तो ये सभी उत्तम माने गये हैं। किंतु

कपिञ्जल पक्षी यदि पीछेकी ओर हो तो उसका

फल निन्दित है। यात्राकाले तीतरका दिखायी

देना अच्छा नहीं है। मृग, सूअर और चितकबरे

हिरन-ये यदि बायें होकर फिर दाहिने हो जायं

तो सदा कार्यसाधक होते हैं। इसके विपरीत यदि

दाहिनेसे बायें चले जायं तो निन्दित माने गये हैँ ।

बैल, घोडे, गीदड़, बाघ, सिंह, बिलाव और

गदहे यदि दाहिनेसे बायें जायं तो ये मनोवाच्छित

वस्तुकी सिद्धि करनेवाले होते हैं, ऐसा समझना

चाहिये । श्रृगाल, श्याममुख, छुच्छू (छृँदर),

पिंगला, गृहगोधिका, शूकरी, कोयल तथा पुँल्लिङ्ग

नाम धारण करनेवाले जीव यदि वाम-भागमें हों

तथा स्त्रीलिंग नापवाले जीव, भास, कारूष, बंदर,

श्रीकर्ण, छित्त्तर, कपि, पिप्पीक, रुरु ओर श्येन-

ये दक्षिण दिशामें हों तो शुभ हैं। याऋ्रकालमें जातिक,

सर्प, खरगोश, सूअर तथा गोधाका नाम लेना भी

शुभ माना गया है॥ २३--२९॥

रीछ और वानरोंका विपरीत दिशामें दिखायी

देना अनिष्टकारक होता है। प्रस्थान करनेपर जो

कार्यसाधक बलवान्‌ शकुन प्रतिदिन दिखायी देता

हो, उसका फल विदान्‌ पुरुषोंको उसी दिनके

लिये बतलाना चाहिये, अर्थात्‌ जिस-जिस दिन

शकुन दिखायी देता है, उसी-उसी दिन उसका

फल होता है। परशुरामजी ! पागल, भोजनार्थी

बालक तथा वैरी पुरुष यदि गाँव या नगरकी

सीमाके भीतर दिखायी दें तो इनके दर्शनका कोई

फल नहीं होता है, ऐसा समझना चाहिये। यदि

सियारिन एक, दो, तीन या चार बार आवाज

लगावे तो वह शुभ मानी गयी है। इसी प्रकार

पाँच और छ: बार बोलनेपर वह अशुभ और

सात बार बोलनेपर शुभ बतायी गयी है। सात

बारसे अधिक बोले तो उसका कोई फल नहीं

होता। यदि रासते सूर्यकी ओर उठती हुई कोई

ऐसी ज्वाला दिखायी दे, जिसपर दृष्टि पड़ते ही

मनुष्योंके रोंगटे खड़े हो जायेँ और सेनाके वाहन

भयभीत हो उठें, तो वह भय बढ़ानेवाली--

महान्‌ भयकी सूचना देनेबाली होती है, ऐसा

समझना चाहिये। यदि पहले किसी उत्तम देशमें

सारंगका दर्शन हो तो बह लिये

वर्षतक शुभकी सूचना देता है। उसे देखनेसे

अशुभे भी शुभ होता है। अतः यात्राके प्रथम

दिन मनुष्य ऐसे गुणवाले किसी सारंगका दर्शन

करे तथा अपने लिये एक वर्षतक उपर्युक्त रूपसे

शुभ फलकी प्राप्ति होनेवाली समझे ॥ ३०-३६ ॥

इस प्रकार आदि आजेय महापुराणमें 'शकुत-वर्णन” नामक

दो सौ इकतीसवाँ अध्याय पूद्ध हुआ॥ २३१ ॥

न~~

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