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गाना-बजाना, मेघकी गम्भीर गर्जना, बिजलीकी | एक ओर सब प्रकारके शुभ शकुन और दूसरी ओर

चमक तथा मनका संतोष - ये सब शुभ शकुन हैं । | मनक प्रसन्नता -ये दोनों बराबर हैं॥९--१३॥

इस प्रकार आदि आग्नेय महापुराणमें “शकुन - कणति " नामक

दो सौ तीसवाँ अध्याय पूरा हुआ॥ २३० ॥

(द

दो सौ इकतीसवाँ अध्याय

शकुनके भेद तथा विभिन्न जीवोके दर्शनसे होनेवाले शुभाशुभ फलका वर्णन

पुष्कर कहते हैं-- राजाके ठहरने, जाने अथवा

प्रशन करनेके समय होनेवाले शकुन उसके देश

ओर नगरके लिये शुभ और अशुभ फलकी

सूचना देते है। शकुन दो प्रकारके होते हैं--

"दीप्तः और “शान्त । दैवका विचार करनेवाले

ज्यौतिषियोंने सम्पूर्णं दीप्त शकुनोंका फल अशुभ

तथा शान्त शकुनोंका फल शुभ बतलाया है।

वेलादीतत, दिग्दीप्त, देशदीस, क्रियादीप्, रुतदीप्त

और जातिदीपके भेदसे दीष शकुन छः प्रकारके

बताये गये है । उनमें पूर्व -पूर्वको अधिक प्रबल

समझना चाहिये । दिनमें विचरनेवाले प्राणी रात्रिमें

और रात्रिम चलनेवाले प्राणी दिनमें विचरते

दिखायी दें तो उसे ' वेलादीप्त' जानना चाहिये।

इसी प्रकार जिस समय नक्षत्र, लग्न और ग्रह

आदि क्रूर अवस्थाको प्राप्त हो जायं, वह भौ

*बेलादीप्त 'के ही अन्तर्गत है। सूर्य जिस दिशाको

जानेवाले हों, वह ` धूमिता", जिसमें मौजूद हों

बह 'ज्वलिता' तथा जिसे छोड़ आये हों, बह

*अंगारिणी ' मानी गयी है। ये तीन दिशाएँ ' दीप्त'

और शेष पाँच दिशाएँ "शान्त" कहलाती हैं। दीष

दिशामें जो शकुन हो; उसे “दिग्दीप्त' कहा गया

है। यदि गाँवमें जंगलो और जंगलमें ग्रामीण पशु-

पक्षी आदि मौजूद हों तो बह निन्दित देश है।

इसी प्रकार जहाँ निन्दित वृक्ष हों, वह स्थान भी

निन्द्य एवं अशुभ माना गया है ॥ १-७॥

विप्रवर! अशुभ देशमें जो शकुन होता है,

उसे 'देशदीप्त” समझना चाहिये। अपने वर्णधर्मके

विपरीत अनुचित कर्म करनेवाला पुरुष 'क्रियादीप्त'

बतलाया गया है । (उसका दिखायी देना “क्रियादीप्त'

शकुनके अन्तर्गत है ।) फटी हुई भयंकर आवाजका

सुनायी पड़ना “रुतदीप्त' कहलाता है। केवल

मांसभोजन करनेवाले प्राणीको "जातिदीस' समझना

चाहिये। (उसका दर्शन भी 'जतिदीप्त' शकुन

है।) दीप्त अवेस्थाके विपरीत जो शकुन हो, बह

"शान्त" बतलाया गया है । उसमें भी उपर्युक्त सभी

भद यलनपूर्वक जानने चाहिये । यदि शान्त ओर

दीपके भेद मिले हुए हों तो उसे “मिश्र शकुन"

कहते हैं। इस प्रकार विचारकर उसका फलाफल

बतलाना चाहिये॥ ८--१०॥

गौ, घोड़े, ऊँट, गदहे, कुत्ते, सारिका (मैना),

गृहगोधिका (गिरगिट), चरक (गौरैया), भास

(चील या मुर्गा) और कछुए आदि प्राणी ' ग्रामवासी '

कहे गये हैं। बकरा, भेड़ा, तोता, गजराज, सूअर,

भसा ओर कौआ--ये ग्रामीण भी होते हैं और

जंगली भी। इनके अतिरिक्त ओर सभी जौव

जंगली कहे गये हैं। बिल्ली और मुर्ग भी ग्रामीण

तथा जंगली होते हैं; उनके रूपमें भेद होता

है, इसीसे वे सदा पहचाने जाते हैं। गोकर्ण

(खच्चर), मोर, चक्रवाक, गदहे, हारीत, कौए,

कुलाह, कुक्कुभ, बाज, गीदड़, खञ्जरीट, वानर,

शतघ्न, चरक, कोयल, नीलकण्ठ (श्येन), कंपिज्जल

(चातक), तीतर, शतपत्र. कयूतर, खञ्जन, दात्यूह

(जलकाक), शुक, राजीव, मुर्गा, भरदूल और

सारंग - ये दिनमें चलनेवाले प्राणी हैं। वागुरी,

उल्लू, शरभ, क्रौञ्च, खरगोश, कछुआ, लोपासिका

और पिंगलिका--ये रात्रिम चलनेवाले प्राणी

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